Sunday, 19 February 2012 18:54 |
भारत सरकार की एजंसी 'फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी आॅफ इंडिया' ने हाल ही में यह भंडाफोड़ किया कि ओडिशा के बाजार में जो दूध बेचा जा रहा है वह पूरी तरह मिलावटी है। सोचनेवाली बात यह है कि अभी तक ऐसी सूचनाएं या जानकारियां गैरसरकारी संगठन या निजी एजंसियां दे रही थीं। तब सरकारें उन पर अतिरंजित रिपोर्ट देने का आरोप लगाती थीं और कार्रवाई वगैरह करने से बचती थीं। अब सरकारी एजंसी भी इस सच को कबूल कर चुकी है। एजंसी ने ओडिशा के बाजारों में बेचे जा रहे दूध के नमूने एकत्रित करके यह नतीजा निकाला। एजंसी ने यह टिप्पणी भी कि मिलावटखोरी करके पैसा कमाने वालों के लिए यह राज्य स्वर्ग बन गया है। एजंसी ने अपनी जांच-पड़ताल में पाया था कि ओडिशा के बाजार में मिलावटी खाद्य सामग्री बेचे जाने का औसत राष्ट्रीय औसत से भी दो फीसद ज्यादा यानी 15 फीसद है। जिस वक्त यह एजंसी अपने अध्ययन के नतीजे जारी कर रही थी उससे ठीक एक हफ्ते पहले कटक पुलिस ने छापा मारकर भारी मात्रा में मिलावटी खाद्य सामग्री बरामद की थी। दिल्ली राज्य सरकार की तरफ से कुछ दिनों पहले बताया गया था कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में हर रोज तकरीबन एक लाख लीटर सिंथेटिक दूध और तीस टन सिंथेटिक खोया तैयार किया जाता है। सिंथेटिक दूध तैयार करने में यूरिया और कॉस्टिक सोडा का इस्तेमाल किया जाता है। ये दोनों रसायन वैसे तो सभी के लिए बेहद खतरनाक हैं लेकिन अगर कोई किडनी की बीमारी से ग्रस्त है तो उसके लिए यह जानलेवा साबित हो सकता है। दिल की बीमारी का सामना करने वालों को मौत के करीब ले जाने का काम कॉस्टिक सोडा कर सकता है। मिलावटी मिठाई तैयार करने में खतरनाक रंगों और अन्य मिलावटी सामग्री का इस्तेमाल भी किया जाता है। ये भी सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। मिलावटी मिठाइयों में जिन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें से ज्यादातर में आर्सेनिक होती है जो सीधेतौर पर किडनी को क्षतिग्रस्त करती है। घी में मिलावट का काम तो बड़े पैमाने पर चल ही रहा है, अब तो वनस्पति घी भी मिलावटखोरों की नजर से बचा नहीं रह पाया है। मिलावटी वनस्पति घी तैयार करने में साबुन बनाने में काम आने वाले रसायन स्टीयरीन का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक ज्यादातर राज्यों में बिक रहे कुल वनस्पति घी में तकरीबन नब्बे फीसद मिलावटी है। मिलावटखोरी से आम लोगों की सेहत को भले ही कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन सचाई यह है कि सरकार और प्रशासन के स्तर पर इसे रोकने की कोशिशें बेहद सुस्त हैं। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि उपभोक्ताओं को भी मिलावटखोरी के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए लेकिन विडंबना है कि उपभोक्ताओं को यह पता नहीं होता कि जो सामान वे खरीद रहे हंै वह मिलावटी है। उसके पास इसकी सही जानकारी करने का जरिया भी नहीं होता। कई बार शंका होने पर उसे शिकायत करने का मंच नहीं पता होता। कई तो यह सोचकर चुप लगा जाते हैं कि ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था में शिकायत की जांच होगी भी या नहीं। क्योंकि आमतौर पर जिसे जांच करनी होती है, वह पहले ही मिलावटखोरों से मिला होता है। अगर सही मायने में सरकार मिलावटखोरी रोकने के लिए प्रतिबद्ध है तो कानून को सही ढंग से लागू कराना पक्का करना चाहिए। त्वरित सुनवाई के लिए अदालतें हों। इसके अलावा, हेल्पलाइन भी होनी चाहिए, जहां शिकायतें दर्ज कराई जा सकें। यह भी सुनिश्चित हो कि हेल्पलाइन की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई की जाए। इससे एक तो उपभोक्ताओं को मिलावटखोरी के खिलाफ जागरूकता का प्रसार होगा और मिलावटखोरी करने वालों के मन में भी यह भय रहेगा कि उसकी शिकायत कभी भी कोई उपभोक्ता कर सकता है। अगर ऐसी कोई हेल्पलाइन विकसित होती है तो मिलावटी सामान बेचने वाले दुकानदारों के मन में भी भय पैदा होगा और वे मिलावटी सामान बेचने से पहले कई बार सोचेंगे। |
Sunday, February 19, 2012
मिलावट का कारोबार, ढ़ीली ढ़ाली सरकार
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/16-highlight/12011-2012-02-19-13-28-59
मिलावट का कारोबार, ढ़ीली ढ़ाली सरकार
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