Tuesday, February 21, 2012

हिंदी में अब क्‍यों नहीं लिखे जाते यात्रा वृत्तांत?

हिंदी में अब क्‍यों नहीं लिखे जाते यात्रा वृत्तांत?



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हिंदी में अब क्‍यों नहीं लिखे जाते यात्रा वृत्तांत?

22 FEBRUARY 2012 NO COMMENT

♦ अनिल यादव

वह भी कोई देस है महराज हिंदी के यात्रा-संस्मरणों में अपने ढंग का पहला और अद्भुत वृत्तांत है। सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर लिखने वाले पत्रकार अनिल यादव का यह यात्रा-वृत्तांत पूर्वोत्तर की जमीनी हकीकत तो बयान करता ही है, वहां के जन-जीवन का आंखों देखा वह हाल बयान करता है, जो दूरबीनी दृष्टि वाले पत्रकार और इतिहासकार की नजर में नहीं आता। पेट्रोल-डीजल, गैस, कोयला, चाय देने वाले पूर्वोत्तर को हमारी सरकार बदले में वर्दीधारी फौजों की टुकड़ियां भेजती रही हैं। पूर्वोत्तर केंद्रित इस यात्रा पुस्तक में वहां के जन-जीवन की असलियत बयान करने के साथ-साथ व्यवस्था की असलियत को उजागर करने में भी अनिल ने कोई कोताही नहीं बरती है। इस यात्रा में उन्होंने छह महीने से ज्यादा समय दिया और उस अनुभव को लिखने में लगभग दस वर्ष लगाये। जाहिर है कि भावोच्छ्वास का कोई झोल न हो और तथ्यजन्य त्रुटि भी न जाए, इसका खयाल रखा गया है। यात्रा की इस पुस्तक में अनिल के कथाकार की भाषा उनकी पत्रकार-दृष्टि को इस कदर ताकत देती है कि इसे उपन्यास की तरह भी पढ़ा जा सकता है… [किताब के ब्‍लर्ब से] यह पुस्‍तक अभी अभी अंतिका प्रकाशन से छप कर आयी है। इसके बारे में कुछ और जानकारी और एक बड़ा सा अंश मशहूर ब्‍लॉग कबाड़खाना पर लगाया गया है। एक बहुत छोटा सा अंश मोहल्‍ला लाइव पर भी हम पेश कर रहे हैं…

शाश्वत ने कहा कि हरीश्चंद्र चंदोला के रिश्तेदार के घर हमें शरीफों की तरह जाना चाहिए लिहाजा क्लीन शेव्ड होने की गरज से एक हेयर कटिंग सैलून के बाहर बैग पटक दिये गये। नाई पटना के पास किसी गांव का यदाकदा अंडा खाने वाला धर्मपारायण, शाकाहारी हिंदू था। सिर और दाढ़ी में शैंपू लगाकर ध्यान मुद्रा में बिठाने के बाद, दीमापुर में जिंदगी कितनी कठिन है, यह बताने के लिए उसने एक आख्यान सुनाना शुरू किया, जो अब भी मेरे सपने में आता है। कैंची की सप्प, सप्प की संगत करती, दमे के कारण जरा कंपकंपाती उसकी आवाज के उतार-चढ़ाव पर मैं मुग्ध था।

यही कोई दस दिन पहले की बात कि एक असमिया मानु हाथी पर चावल लादकर दीमापुर आया। चावल बेचकर लौटती बारी रेलवे स्टेशन के आउटर पर हाथी का पिछला एक पैर रेल की पटरी के जोड़ में फंस गया। वह काफी देर तक स्टेशन मास्टर के दफ्तर के बाहर बैठा रहा, बाबुओं से विनती की कि वे उसका हाथी निकाल दें। बेचारे की किसी ने नहीं सुनी। काफी हाथ पैर जोड़ने के बाद स्टेशन मास्टर ने कहा, गौहाटी जाकर बड़े साहब से आर्डर लाना होगा। आने वाली गाड़ी को रोक कर पटरी बदली जाएगी, तब उसके हाथी का पैर छूट पाएगा। महावत ने पीपल की टहनियां काट कर हाथी के आगे डाली, उसका माथा सहलाया और किराये की जीप लेकर फौरन गौहाटी रवाना हो गया। महावत गया और इधर सेमा बस्ती के लोग दाव (गंडासा), चाकू लेकर हाथी पर टूट पड़े। हाथी की चिंघाड़ सुन कर हजारों लोग तमाशा देखने जमा हो गये। उनके सामने देखते-देखते उन्होंने हाथी को बोटी-बोटी काट डाला। कुल तीन घंटे, पैंतीस मिनट, सत्रह सेकेंड के बाद वहां हाथी का नामोनिशान तक नहीं था। सारा गोश्त सेमा लोगों ने बांट लिया और बड़ी-बड़ी टोकरियों में भर कर घर ले गये। शाम को महावत लौट कर आया, तो स्टेशन के प्लेटफार्म पर भूले हुए रूमाल की तरह अपने हाथी का एक कान पड़ा देखकर सदमे से पागल हो गया।


क्रिश्चियन आंटी को सबसे पहले मैंने यही किस्सा सुनाया और जानना चाहा कि क्या यह सच है।

"सेमा लोग कुछ भी खा सकता है। वैसे एलीफैंट मीट बुरा नहीं होता", उन्होंने कहा।

हम लोग क्रिश्चियन आंटी के मेहमान थे, जो छींटदार फ्रॉक, कानवेंट की अंग्रेजी और खुले दिमाग वाली महिला थीं, जिनके बच्चे बड़े होकर विदेश में नौकरियां कर रहे थे। यह सलीब, बाइबिल, गिटार, इस्टर के सचित्र अंडों और चर्च के सामने खिंचवायी तस्वीरों से सजा टिपिकल ईसाई घर था, जहां नाश्ते और डिनर के समय भूल गयी तहजीब को पहले याद करना फिर पूरा प्रयोग करना पड़ता था। बारह घंटों के दौरान उन्होंने गिन कर बताया कि नागाओं के बत्तीस कबीले हैं, जिनमें से पांच बर्मा में, सोलह नागालैंड में, सात मणिपुर में, तीन अरुणाचल के तिराप में और असम के कार्बी व नॉर्थ कछार में बसे हुए हैं। इनमें से नाइन्टी एट परसेंट ईसाई हैं। पूरी हार्दिकता से दो बार कहा, "फ्रॉम वेरी एनशिएंट टाइम दे आर सेल्फ इस्टीम्ड एंड फ्रीडम स्पिरिटेड पीपल।"

(अनिल यादव। कथाकार-पत्रकार। उन साहसी पत्रकारों में, जो नौकरी छोड़ कर महीनों तक नार्थ ईस्ट की खाक छानने और जानने के लिए किसी एसाइनमेंट या फेलोशिप का इंतज़ार नहीं करते। फिलहाल लखनऊ में पायनियर के संवाददाता। हा र मो नि य म ब्‍लॉग। उनसे oopsanil@gmail.com और 09452040099 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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