क्या उसके दिन बहुरेंगें ?
लेखक : महेश जोशी :: अंक: 24 || 01 अगस्त से 14 अगस्त 2011:: वर्ष :: 34 :September 1, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/a-question-mark-on-future/
क्या उसके दिन बहुरेंगें ?
लेखक : महेश जोशी :: अंक: 24 || 01 अगस्त से 14 अगस्त 2011:: वर्ष :: 34 :September 1, 2011 पर प्रकाशित
''आप खाली पूछताछ करते हो। लिख ले जाते हो। पिछले साल भी तो आप लोगों से पूछताछ कर रहे थे। उसे छापा आपने ? क्या हुआ फिर ? कुछ नहीं ना! कुछ…नहीं कर सकते हैं साहब आप।….मुख्यमंत्री तक गाँव में आकर पूछताछ कर आश्वासन देकर फिर नहीं लौटे। न हमें सर छुपाने को जगह मिली…। देख रहे हो अभी से इतनी बारिश हो रही है। आगे क्या होगा….यही चिन्ता सता रही है। मैं यहाँ काम निपटा रहा हूँ, पर ध्यान गाँव-घर की ओर है…।'' वह जल्दी-जल्दी बर्तनों को साफ कर करीने से रख चूल्हे के पास बैठ गया और झाड़न से गीले हाथों को पोछ सुर्ती मलने लगा। मैंने फिर पूछा, ''तुम्हारा नाम क्या है ?'' वह मेरी ओर घूर कर देखते हुए बोला- ''प्रवीण सिंह कोरंगा ड्राइवर, पुत्र श्री झीम सिंह (भीम), ग्राम ठेली (चुचेर), पो. लाथी, जिला बागेश्वर।'' चुचेर से एक शादी में मदद करने प्रवीण सिंह धरमघर के निकट डिबाली (कराला) गाँव आया था। जिस तत्परता से वह अपना काम कर रहा था, उससे मैं अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाया।
यह इलाका तो पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का है। रामगंगा के इस ओर जिला बागेश्वर है और नदी पार पिथौरागढ़। बागेश्वर इलाके का यह क्षेत्र अत्यन्त पिछड़ा है। कई गाँव भूस्खलन की जद में हैं। वर्षों से यहाँ के बाशिन्दे सड़क, पानी, बिजली व स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि की माँग करते रहे हैं। बिजली तो अधिकांश गाँवों में पहुँच गई है, पर राज्य बनने के पूर्व से बननी शुरू सड़क अभी तक बनने में है। प्रवीण सिंह को अपने गाँव पैदल ही जाना पड़ता है। यहाँ के लिए एक सड़क धरमघर से कराला- खोपड़ा-द्वारी-चुचेर-माजखेत होते हुए नाचनी तक स्वीकृत हुई है। लेकिन यह सड़क लाथी तक 15 किमी ही बनी है। दूसरी ओर शामा से पूर्व खड़लेख से भनार-नामती चेटाबगड़ होते हुए नाचनी (पिथौरा़गढ़) में मिलनी है। लेकिन यह भी अभी भनार तक ही बन पाई है और दोनों ओर से फिलहाल निर्माण कार्य ठप है। स्वास्थ्य-चिकित्सा की सुविधा सड़क किनारे के गाँवों या तहसील-जिला मुख्यालयों में चाक-चौकस नहीं है, तो इन उपेक्षित व दूरस्थ क्षेत्रों में क्या उम्मीद की जाये ? ठेली राजस्व गाँव है और गिजमौत, माजखेत, लाथी, धन्याड़, चेटाबगड़ आदि तोक गाँव हैं। ठेली गाँव में 25 मवासे रहते हैं। इस गाँव में भूस्खलन होता रहता है, पर इनकी सुध कोई नहीं लेता। 2003 की बरसात में सात-आठ मकान ध्वस्त हो गये थे। तब जिला प्रशासन ही नहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी तक यहाँ आकर ग्रामीणों को आश्वस्त कर गये थे कि शीघ्र ही उनको अन्यत्र विस्थापित कर दिया जायेगा। उन्होंने गाँव के ऊपर खाली पड़ी बंजर वन भूमि में टेंट लगाकर रहने की सुविधा ग्रामीणों को प्रदान की। लेकिन उनके जाने के बाद ही वन विभाग वालों ने उन्हें वहाँ से खदेड़ दिया। तब से किसी ने उनकी सुधि नहीं ली। बारिश होने पर लोग घरों से निकल सुरक्षित स्थानों को चले जाते हैं और बारिश थमते ही घरों को लौट आते हैं।
प्रवीण सिंह बताते हैं कि ईष्टदेव की कृपा ही है कि बरसात में आये दिन हो रहे भूस्खलन में अभी तक जन व पशु हानि नहीं हुई। हाँ, खेती-बाड़ी को हर साल नुकसान पहँचता है। लेकिन इस तरह दहशत में कब तक रहा जायेगा ? गाँव के लोग अनपढ़ हैं। कोई नेता या अधिकारी वहाँ झाँकता भी नहीं। ग्राम प्रधान भी अनपढ़ है। फिर आज ग्राम प्रधान भी तो उसी भ्रष्ट व लापरवाह सरकार का ही आदमी है। ऐसे में हमारी बात कौन कहेगा ? प्रवीणसिंह की तरह के कई ऐसे गाँव हैं जो आबादी के लिए उपयुक्त नहीं हैं। बीती बरसात की तबाही के बाद किये गये सर्वे के बाद सरकार ने 233 गाँवों को सुरक्षा की दृष्टि से अतिशीघ्र विस्थापित करने की घोषणा की थी, पर किसी भी गाँव के विस्थापन की कार्यवाही होती नहीं दिख रही है। अलबत्ता 5 जुलाई को सम्पन्न कैबिनेट के बाद मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने बताया कि शासन ने 'पुनर्वास नीति' तय कर खतरनाक चिन्हित गाँवों को विस्थापित करने का निर्णय किया है। प्रभावितों का पहले उनकी निजी भूमि, फिर पंचायत अथवा राजस्व भूमि और जरूरत पड़ने पर वन भूमि में पुनर्वास हो सकेगा। भवन के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि तथा भवन निर्माण हेतु एकमुश्त 3 लाख रुपए दिए जायेंगे। प्रभावित भूमि का सर्किल रेट के हिसाब से मुआवजा, बंजर भूमि को उपयोगी बनाने के लिए आर्थिक सहायता, गोशाला विस्थापन के लिए 15 हजार रुपया तथा परिवार के विस्थापन के लिए रुपया दस हजार भत्ता दिया जायेगा। दस्तकारों के लिए विस्थापन भत्ते के अलावा 25 हजार रुपए दिये जायेंगे।
इस पुनर्वास नीति का मसौदा भी अभी उपलब्ध नहीं हो पाया है, लेकिन असंतोष दिखाई देने लगा है। इस सबके बीच यह सवाल अभी जिन्दा है…..क्या प्रवीण कोरंगा के दिन बहुरेंगे ?
संबंधित लेख....
- तो ऐसी रही बागेश्वर जनपद की विकास यात्रा
उत्तराखंड राज्य के गठन से पूर्व ही सितंबर 1997 में बागेश्वर जिले की स्थापना हो गई थी। तब से जिले का ... - अब वे काले वन कानूनों को बदलना चाहते हैं
प्रीति थपलियाल 23 मार्च 2011 को आत्मरक्षा में एक गुलदार को मारने के प्रकरण में पौड़ी जनपद के रिखणीखा... - सुनहरा कुछ भी नहीं है इस बजट में
12 मार्च को सदन में प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा पेश वर्ष 2011-12 के बजट में कुल अनुमानित वार्षिक बज... - आपत काल बिरस भयो फागुन… …उचित होय सो की जै
बोनासाही आमों व देसी लीचियों में बौर आ गई हैं। लाई-सरसों, मूली और धनियाँ के फूलों से घरबाड़े और खेत भ... - चुनावी विकास का शिकार: गंगोलीहाट
सरकार बदलने के बाद पूर्व में स्वीकृत कार्यो को किस तरह लटका दिया जाता है वह गंगोलीहाट तहसील क्षेत्र ...
No comments:
Post a Comment