विश्व बैंक के अजेंडे में है भष्टाचार के खिलाफ आंदोलन
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 17, 2012 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/imf-is-promoting-anti-corruption-agenda/
विश्व बैंक के अजेंडे में है भष्टाचार के खिलाफ आंदोलन
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 17, 2012 पर प्रकाशित
विवेकानन्द माथने
देश में राजनेता और उच्च अधिकारी कार्पोरेटों को कह रहे हैं कि आओ, लूटो इस देश को। जमीन, पानी, कोयला, खनिज, जंगल, तेल आदि से समृद्ध है यह देश और बड़ा बाजार भी है यहाँ उपलब्ध। हम आपके लिए देश की नीति और कानून में जैसा चाहिए वैसा परिवर्तन करने के लिए तैयार हैं। बस, शर्त एक ही है कि इस लूट में बड़ा हिस्सा हमें भी मिलना चाहिए, टेलिकॉम नीति, भूसुधार, भू अधिग्रहण कानून, कमाल जमीन धारणा कानून, पर्यावरणसंबंधी कानून, रिटेलर्स के व्यवसाय में छूट, नये शहर और रिअल इस्टेट, कोल बेअरिंग एक्ट, पावर सेक्टर आदि कई सारे क्षेत्रों में बदलाव किया जा रहा है। ये बदलाव विश्व बैंक के दबाव में किये गये और इन्हीं नीति और कानून के सहारे देश को लूटा जा रहा है।
अभी तक राजनेताओं और अधिकारियों ने कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए बड़ी कीमत वसूली, विदेशों में काला धन जमा किया और देश को लूटने में कंपनियों की सहायता की। अब ये बेईमान, देशद्रोही ही लूट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाचढ़ाकर मांगने लगे या फिर अपनी की कंपनियाँ शुरू कर दीं। परिणामतः कार्पोरेटों को परियोजनाओं में विलंब और लागत बढ़ने से नुकसान उठाना पड़ रहा था, निवेश प्रभावित हो रहा था। कार्पोरेट के हितों का रक्षण करने वाली विश्व बैंक के लिए यह सबसे बडी चिंता का विषय बना। विश्व बैंक ने 1996 से 2000 तक इस विषय पर गहन अध्ययन किया। विश्व बैंक के दस्तावेज के अनुसार विश्व बैंक ने सर्वप्रथम कारपोरेटी लूट की हिस्सेदारी को ही भ्रष्टाचार के नाम परिभाषित किया। उन्होंने भ्रष्टाचार की परिभाषा की 'निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पदों का उपयोग' जो अधूरी और कार्पोरेट के लिए सुविधाजनक परिभाषा है। उनके विरोध अध्ययन का निष्कर्ष यह था कि भ्रष्टाचार से अनिश्चितता और बढ़ती लागत के कारण निवेश और परिणामतः विकास पर विपरीत परिणाम हो रहा है, विकास कम हो रहा है। साथ ही सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए सरकारी अधिकारी और बोलीदाताओं में हेराफेरी आसान होने से सार्वजनिक निवेश में वृद्धि का प्रयास होता है। ऐसी स्थिति में उदारीकरण की नीतियों को गतिमान बनाना और निवेश बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लाने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक माना गया। दुनिया के विभिन्न देशों के सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक ढांचे के अनुरूप भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही की योजना बनायी गयी। इसमें यह स्पष्टता रखी गयी थी कि कार्पोरेट सेक्टर को भी थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस योजना के अनुसार-
1. देश में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए कानून बनाना।
2. भ्रष्टाचार कम करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में वेतन वृद्धि।
3. भ्रष्टाचारी अधिकारी और राजनेताओं की जाँच और कार्यवाही के लिए सशक्त कानून बनाना।
4. न्यायपालिका शीघ्र कार्यवाही और सजा के लिए न्यायपालिका में भ्रष्टाचार विरोधी कानून लाना।
5. राजनेताओं पर अंकुश लगाने के लिए चुनावी सुधार।
विश्व बैंक इन योजनाओं को पूरा करने के लिए प्रयत्नों में शामिल है।
1. भ्रष्टाचार विरोधी जनमानस में आक्रोश पैदा करना।
2. भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करना।
3. इसके लिए वरिष्ठ पत्रकारों का प्रशिक्षण और मीडिया का समर्थन खड़ा करना।
4. सामाजिक, आध्यात्मिक क्षेत्र के जिम्मेदार, विश्वसनीय व प्रभावी व्यक्तियों को नेतृत्व की भूमिका में आगे बढ़ाना।
5. ऐसे नेतृत्व के साथ विकास से लाभान्वित सभ्य समाज को जोड़ना।
6. आंदोलन के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करना।
7. इस विषय पर देश-दुनिया में विभिन्न व्यास पीठों में सेमीनार, कार्यशालाओं का आयोजन करना।
विश्व बैंक की योजना को पूरा करने के लिए उपरोक्त रास्तों का उपयोग भारत में स्पष्ट रूप से होते हुए देखा गया। जनलोकपाल के शुरुआती बिल ड्राफ्ट में कार्पोरेट धन पर पोषित मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त विजेताओं द्वारा लोकपाल नियुक्ति का प्रावधान, आन्दोलन के लिए कार्पोरेट का आर्थिक सहयोग, कार्पोरेटी मीडिया का आंदोलन को 24 घंटे समर्थन और प्रचार, आंदोलन को अमरीका सरकार का खुला समर्थन, जनलोकपाल जल्दी लाने के लिए कार्पोरेट की सरकार को अपील, विकास नीति से लाभान्वित कार्पोरेट कर्मचारियों का आन्दोलन में सक्रिय सहभाग, फोर्ड फाउण्डेशन, रौकफैलर, लेहमन ब्रदर्श आदि कार्पोरेटी फंडेड एन.जी.ओ. की अग्रणी भूमिका, जनलोकपाल लाने के लिए नई आर्थिक नीति के प्रणेता और विश्व बैंक के नौकर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संदिंग्ध और दृढ़ भूमिका, आन्दोलन में बिना लाठी लिए कानून और सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश, कार्पोरेट के दबाव में राजनैतिक पार्टियों का जनलोकपाल को समर्थन। यह सब योगायोग या जनता के दबाव में नहीं हुआ है। नाहीं यह योगायोग है कि सूचना का अधिकार, पानी के क्षेत्र में सुधार, छठी वेतन वृद्धि से जुडे लोग ही आंदोलन की अग्रणी भूमिका में है। कांग्रेस ने शुरुआत में गुप्तचर यंत्रणा के हवाले से आंदोलन के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताया था। आखिर क्या कारण है कि इस आन्दोलन के पीछे कार्पोरेट और विश्व बैंक की ताकत खड़ी है। विश्व बैंक ने लूट को विकास और लूट की हिस्सेदारी को भ्रष्टाचार का नाम दिया है। जिसे भ्रष्टाचार कहा जा रहा है वह कम्पनी के द्वारा की जा रही लूट का अपरिहार्य परीणाम है। यह भ्रष्टाचार ही हजारों करोड़ में हो तो लूट कितनी गुना अधिक होगी। रोजमर्रा के जनजीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार से इसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। देश में उजागर हुए प्रमुख घोटाले टू जी स्पेक्ट्रम, सी.डब्ल्यू.जी., कोयला घोटाला से भी यही स्पष्ट होता है कि यह लूट के लिए कार्पोरेट के बीच का संघर्ष है। किसी भी स्थिति में जनता को इससे कोई लाभ नहीं। लूट किसने की, इसके नाम बदलने से जनता को क्या लाभ होगा ?
एक चिन्तित नागरिक द्वारा जनहित में जारी , नई आजादी उद्घोष, दिसम्बर 2011 से साभार
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