Monday, February 13, 2012

पहाड़ से भाग रहे हैं नेता लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 11 || 15 जनवरी से 31 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 1, 2012 पर प्रकाशित

पहाड़ से भाग रहे हैं नेता

प्रवीन कुमार भट्ट

Migrationआम जनता की तरह उत्तराखंड के नेता भी मैदानों की ओर पलायन कर रहे हैं। पहले ही वे देहरादून और हल्द्वानी में अपने मकान बना चुके थे। अब उन्होंने पहाड़ से चुनाव लड़ने के लिए भी तौबा कर ली है। राज्य के ज्यादातर दिग्गजों ने मैदानों में अपने लिए सुरक्षित सीटें तलाश की हैं।

पलायन में प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी अव्वल हैं। इससे पहले वे अपने गृहक्षेत्र धूमाकोट से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन परिसीमन के बाद धूमाकोट के समाप्त हो जाने के बाद उन्होंने पहाड़ की रुख करने के बजाए पौड़ी जिले की कोटद्वार सीट को चुना। यूपी के बिजनौर जिले से लगा कोटद्वार तराई भाबर क्षेत्र है, जो रेलमार्ग से भी जुड़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि खंडूड़ी ने पलायन कर अपने लिए आसान सीट खोज ली है। अच्छा होता अगर खंडूड़ी श्रीनगर गढ़वाल या लैंसडाउन जैसे पिछड़े क्षेत्रों से चुनाव लड़ कर विकास को गति देते। कभी लैंसडाउन से चुनाव लड़कर पहाड़ और पहाड़ी की बात करने वाले कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत बीते साल भर से देहरादून से लगी डोईवाला सीट पर नजरें गड़ाये थे। लेकिन भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' को डोईवाला सीट से चुनाव मैदान में उतारकर बाजी मार ली। मजबूरी में हरक सिंह रुद्रप्रयाग शिफ्ट हो गए हैं। निशंक पहले थलीसैंण से लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने भी पहाड़ की बजाए राजधानी के निकट की सीट पर ही डेरा जमा दिया। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सतीश लखेड़ा का कहना है कि परिसीमन के कारण नेताओं को अन्यान्य सीटों से चुनाव लड़ना पड़ रहा है। इसमें पलायन का सवाल नहीं है। भाजपा सरकार ने पूरे प्रदेश में समान रूप से विकास कार्य किए हैं।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी परिसीमन के बाद नैनीताल जिले की मुक्तेश्वर सीट समाप्त हो जाने के बाद किसी दूसरी पहाड़ी सीट के बजाए तराई की बाजपुर सीट पर लड़ रहे हैं। पौड़ी के बीरोंखाल सीट से सतपाल महाराज की पत्नी, कांग्रेसी विधायक अमृता रावत इस बार जिला ही बदल कर नैनीताल जिले के भाबर की सीट रामनगर से चुनाव मैदान में हैं।

उत्तराखंड के नेता चुनाव जीतने के बाद पहाड़ों का रुख नहीं करते। चुनाव जीतते ही वे पहला काम देहरादून या हल्द्वानी में घर बनाने का करते हैं, जिसके बाद वे गाहे-बगाहे ही अपने क्षेत्र में नजर आते हैं। वर्तमान में कैबिनेट मंत्री व पिथौरागढ़ विधायक प्रकाश पंत, पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक', कैबिनेट मंत्री खजान दास, कैबिनेट मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी, राज्य मंत्री विजय बड़थ्वाल, नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत, पूर्व मंत्री इंदिरा हृदयेश व टीपीएस रावत विधायक अमृता रावत, केदार सिंह फोनिया व रणजीत सिंह रावत सहित अनेक नेताओं ने देहरादून में अपने घर बना लिए हैं। बची सिंह रावत और यशपाल आर्य पहले ही हल्द्वानी में बस चुके हैं। प्रदेश के नेता ज्यादातर राजधानी में ही डटे रहते हैं और पहाड़ को पहाड़ के हाल पर छोड़ देने से भी गुरेज नहीं करते। सांस्कृतिक संस्था 'धाद' के महासचिव तन्मय ममगाई का कहना है कि जब पूरा पहाड़ ही पलायन कर रहा है तो नेता कैसे अछूते रह सकते हैं ? हालाँकि उनका मानना है कि इस पलायन की जिम्मेदारी इन्हीं की है। राजनीति के जानकार अब नेताओं की इस प्रवृत्ति को राजनीतिक पर्यटन की संज्ञा तक देने लगे हैं।

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