वे हमें समर्थ देखना चाहते थे
लेखक : पवन राकेश :: अंक: 10 || 01 जनवरी से 14 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 :January 17, 2012 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/a-tribte-to-bagat-da-by-pawan-rakesh/
वे हमें समर्थ देखना चाहते थे
लेखक : पवन राकेश :: अंक: 10 || 01 जनवरी से 14 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 :January 17, 2012 पर प्रकाशित
नंद किशोर भगत (वीरेन डंगवाल के नन्दू बॉस और हमारे भगतदा) 14 दिसम्बर 2011 को हमें अलविदा कह गये। नैनीताल समाचार के बुनियादी स्तम्भ थे भगतदा। एक सामान्य वन कर्मी की नौकरी करते हुए अपनी अलग सोच के कारण सामाजिक सरोकारों से जुड़े। कुछ कर सकने की छटपटाहट ने उन्हें 'उत्तराखण्ड भारती' से जोड़ा और उससे पूर्व दैनिक पर्वतीय से। जिस दौर में हिन्दी पत्रकारिता एक मुश्किल काम मानी जाती थी, तब 1976 में वन सम्बन्धित जानकारी लोगों तक पहुँचाने के लिये उन्होंने 'वनरखा' पत्रिका निकाली।
नैनीताल समाचार के आधारभूत ढाँचे को तैयार करने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। अपने व्यावहारिक अनुभव के आधार पर उन्होंने समाचार के सभी खाते-रजिस्टर तैयार किये। सरकारी विभागों से पत्राचार कर हर संभव कार्य करवाने में उनका जोड़ नहीं था।
उस दौर में समाचार में आदर्श और क्रांति का रंग बहुत गहरा था। उस उत्साह में कई बार जरूरी बातें भी दरकिनार कर दी गईं, जिसका खामियाजा बाद में भुगतना पड़ा। वह स्वप्नदर्शी थे। कुछ करने की ललक उनमें थी, जिसका प्रत्यक्ष 'फ्रूटेज' के रूप में फल प्रसंस्करण इकाई है, जो आज न नैनीताल के आसपास बल्कि दिल्ली, बरेली, मुम्बई आदि महानगरों में भी अपनी पहचान खुद ही है। फ्रूटेज को उनके पुत्र संजीव भगत, जो स्वयं भी पत्रकारिता में रुचि रखते हैं, बखूबी चला रहे हैं।
भगतदा का मतभेद समाचार से इस मामले में था कि जब सब कुछ सरकार के हिसाब से और उसके अन्तर्गत ही करना है तो संपादकीय नीति को छोड़कर अन्यत्र उसका विरोध क्यों ? उस समय वह अकेले पड़ जाया करते थे, क्योंकि वे अपनी बात गिर्दा की तरह दमदार तर्कों और बुलन्द आवाज के साथ नहीं रख पाते थे। हम उनसे सहमत होते हुए भी उनके साथ नहीं खड़े हो पाते थे, क्योंकि हमारी स्थिति भी उनकी ही जैसी थी। बस वह इतना ही कहते थे कि जिस तरह से हम लोग कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। उनकी बातों, अपने तमाम मतभेद और नाराजगी के बाद भी उनका रिश्ता नैनीताल समाचार से अटूट बना रहा। हर आन्दोलन, हर कार्यक्रम में वे हमेशा उपस्थित रहे। बीमारी से शरीर घट रहा था पर मन का जीवट बना रहा- मौका मिलते ही एक फटक समाचार में आते ही रहे।
प्रत्यक्ष रूप से अस्वीकार करते हुए भी उनको न मानना सम्भव नहीं था और हम अप्रत्यक्ष रूप से उनसे निर्देशित होते रहे। समाचार को सबल बनाने के लिए वह इतने उत्सुक थे कि 'नैनीताल मुद्रण सहकारी समिति' बना डाली जो समाचार का प्रकाशन करती है।
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