Thursday, January 26, 2012

Fwd: [Social Equality] धर्म के पंजे समाज में बहुत गहरे धंसे हुए हैं....



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From: Nilakshi Singh <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2012/1/27
Subject: [Social Equality] धर्म के पंजे समाज में बहुत गहरे धंसे हुए हैं....
To: Social Equality <wearedalits@groups.facebook.com>


Nilakshi Singh posted in Social Equality.
धर्म के पंजे समाज में बहुत गहरे धंसे हुए हैं....
Nilakshi Singh 1:19pm Jan 27
धर्म के पंजे समाज में बहुत गहरे धंसे हुए हैं. धर्म का अपना एक पूरा तंत्र है, जो लोगों को जीवन-यापन के साधन भी देता है. वह लाखों लोगों को पाखंड, धूर्तता, चमत्कारों, जातिगत श्रेष्ठता आदि के बल पर सामाजिक-आर्थिक श्रेष्ठता भी उपलब्ध कराता है. वह बिना श्रम किए लाखों-करोड़ों को दो समय की रोटी मुहैया कराता है. उसने सामंतवाद,पूंजीवाद, उपनिवेशवाद को अपना खुला और नंगा समर्थन दिया है.
ऐसे धर्म से लड़ना आसान नहीं है, लेकिन लड़ना तो होगा ही. धर्म के प्रति कड़ा और आलोचनात्मक रवैया तो अपनाना ही होगा. धर्म के संस्थाबद्ध स्वरूप के अन्यायों पर चोट तो करनी ही होगी, यह बताना ही होगा कि न्यस्त सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक स्वार्थों से धर्म का झगड़ा क्यों नहीं होता? क्यों धर्म राजाओं, पुरोहितों, श्रेष्ठियों का प्रिय रहा है? क्यों उनका इससे विरोध नहीं रहा है? क्यों उन्होंने इसे भरपूर समर्थन दिया है? क्यों आज भी धर्म तथा तथाकथित धार्मिक जनों के आगे सब राजनीतिक सत्ताएं नत रहती है? क्यों रहने के लिए एक झोपड़ी बनाना गैर-कानूनी है, चाय बेचने के लिए गुमटी लगाना कानून के विरूद्ध है, मगर सैंकड़ों-हजारों एकड़ जमीन धर्म के नाम पर हड़पना 'कानून-सम्मत' है? रोजी-रोटी का हक मांगने के लिए आयोजित जुलूसों पर तो गोली चलाई जा सकती है, लेकिन मस्जिद तोड़ते लोगों पर क्यों नहीं?
हजारों ऐसे सवाल हैं जिन्हें उठाने का वक्त आ चुका है. यह ठीक है कि सिर्फ एक धर्म-विरोधी अभियान कारगर नहीं होगा, लेकिन धर्म के बारे में अर्थपूर्ण मौन भी अब कायरता होगी. चुनौतियों का सामना करने का वक्त अब आ गया है. बहुत देर तक इन सवालों को टालने से सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिवर्तन का दर्शन अपना अर्थ खो दे सकता है.

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Palash Biswas
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