Saturday, 21 January 2012 11:17 |
पुष्परंजन एक पाकिस्तानी एनजीओ 'पिलदात' ने 2007 में अपने शोध में निचली अदालतों के सोलह सौ जजों को बेनकाब किया था, जो परम भ्रष्ट थे। देश की सर्वोच्च अदालत पर शक करने वाले कहते हैं कि जरदारी-गिलानी जोड़ी को सत्ता से गिराने वालों के साथ कोई सौदा हुआ है। वे पूछते हैं कि अदालतें इतनी पाक-साफ हैं तो बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत पर सितम ढाने वाली पाक सेना के विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्यों सेना के भ्रष्ट अफसर अदालत से बचे हुए हैं? लाहौर हाईकोर्ट में एक वकील ने सेना के दर्जन भर बड़े अफसरों के खिलाफ जांच कराने की अपील की थी। इनमें अवकाश प्राप्त एयर चीफ मार्शल अब्बास खटक पर चालीस मिराज विमानों की खरीद में कमीशन खाने, उनके बाद के एअर चीफ मार्शल फारूक फिरोज खान पर चालीस एफ-7 विमानों में पांच प्रतिशत कमीशन लेने के आरोप भी थे। सेना में भ्रष्टाचार के इस बहुचर्चित मामले पर सुनवाई यह कह कर टाल दी गई कि यह हाईकोर्ट की हद में नहीं है। तो क्या सेना और अदालत पाकिस्तान में एक समांतर सत्ता बनाए रखने के लिए यह सारा खेल कर रही हैं? इस सारे फसाद की जड़, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर अभी कोई हाथ नहीं डाल रहा। 'मिस्टर टेन परसेंट' कहे जाने वाले जरदारी की देश में चालीस परिसंपत्तियां हैं, जिनमें छह चीनी मिलें हैं। देश से बाहर ब्रिटेन में जरदारी की नौ, फ्रांस में एक, बेल्जियम में दो, अमेरिका में नौ संपत्तियां हैं। इसके अलावा दुबई समेत पूरे संयुक्त अरब अमीरात में दर्जनों आलीशान भवन, मॉल और टॉवर मिस्टर टेन परसेंट ने खरीद रखे हैं। विदेशों में जरदारी की चौबीस कंपनियों के नाम, पते और सत्ताईस बैंक खातों के ब्योरे उनके विरोधियों ने नेट पर डाल रखे हैं। अगर ये तथ्य सही हैं तो तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान का यह कहना भी सही है कि चोर-डाकू पाकिस्तान की सत्ता चला रहे हैं। गिलानी राष्ट्रीय सामंजस्य अध्यादेश (एनआरओ) को अमल में नहीं लाने के कारण कठघरे में हैं। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी सचमुच कठोर थी कि प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भरोसे के लायक नहीं हैं। लोगों का कयास था कि अनुच्छेद 63-1 जी के तहत प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने का आदेश अदालत न दे-दे। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) के नेता नवाज शरीफ समय से पहले चुनाव कराने के लिए देशव्यापी दौरे पर हैं। ऐसी ही बेचैनी तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान में है। इमरान खान को लगता है कि वे देश के बिंदास प्रधानमंत्री बनेंगे। इसी रौ में इमरान इस बात से इनकार करते हैं कि जनरल मुशर्रफ से उन्होंने गुपचुप हाथ मिला लिया है। दूसरी ओर, गृहमंत्री रहमान मलिक ने खम ठोक कर कहा है कि मुशर्रफ आकर देखें, हम उन्हें गिरफ्तार करते हैं कि नहीं। लंदन में स्व-निर्वासन में रह रहे मुशर्रफ ने फिलहाल पाक आना टाल दिया हैं। मुशर्रफ की पार्टी आॅल पाकिस्तान मुसलिम लीग (एपीएमएल) के प्रवक्ता फवाद चौधरी के इस्तीफे से हालत और खस्ता हो गई है। चुनाव तक गठबंधन में शामिल पार्टियों से जरदारी-गिलानी का कैसा समीकरण रहेगा, यह बड़ा सवाल है। इनमें अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) के प्रमुख असफंदयार वली, पाकिस्तान मुसलिम लीग, कायदे आजम (पीएमएल-क्यू) के चौधरी शुजात हुसैन, मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के नेता फारूक सत्तार और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम को तोड़ने के मिशन में नवाज शरीफ लगे हुए हैं। प्रश्न यह है कि अदालत बनाम संसद के पाकिस्तान के प्रकरण में भारत के लिए क्या सबक हो सकता है? पाकिस्तान की राजनीति से कुछ 'सबक' लेने के लिए इस समय भारतीय सांसदों का एक शिष्टमंडल पाकिस्तान में है। यह वह समय है, जब अपने यहां भी सेनाध्यक्ष जन्मतिथि विवाद के साथ सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं। मणिशंकर अय्यर, सुप्रिया सुले, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, राजनीति प्रसाद, सैयद शाहनवाज हुसैन, असदुद्दीन ओबैसी जैसे दिग्गज सांसदों को पाकिस्तान आमंत्रित करने और सत्रह जनवरी को प्रधानमंत्री गिलानी के साथ उनकी विशेष बैठक कराने में उसी एनजीओ 'पिलदात' ने पहल की है, जिसने सोलह सौ जजों के भ्रष्ट होने की बात अपने शोध में कही थी। इस बिना पर क्या यह सवाल नहीं बनता कि पिलदात जैसे एनजीओ का जरदारी और गिलानी इस्तेमाल कर रहे हैं? भारतीय विदेशमंत्री एसएम कृष्णा पड़ोस पर टिप्पणी करें, न करें। पर एक दूसरे पर असर तो होगा ही। जिस तरह पाकिस्तान की जनता 'कोलावरी डी' गाने की पैरोडी बना कर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बुराइयों पर आवाज उठा रही है, उसी सुर में आने वाले दिनों में अदालत बनाम संसद जैसी हालत पूरे दक्षिण एशिया में बन सकती है। इस पर बहस के लिए सुधीजनों को तैयार रहना चाहिए! |
Sunday, January 22, 2012
नापाक सियासत से उपजा संकट
नापाक सियासत से उपजा संकट
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