Monday, 12 December 2011 10:07 |
सुनील गरीबी रेखा देश की साधारण जनता को बुनियादी जरूरतों से भी वंचित करने का औजार बन गई है। उस पर वैश्वीकरण का दोहरा हमला हो रहा है। एक ओर उसकी रोजी-रोटी छिन रही है, शोषण बढ़ रहा है, महंगाई बढ़ रही है; दूसरी ओर गरीबी रेखा खींच कर उसे सरकारी राहत और 'सुरक्षा जाल' (सेफ्टी नेट) से भी वंचित किया जा रहा है। इसलिए गरीबी रेखा के कारण पैदा हो रही समस्याओं के खिलाफ संघर्ष साम्राज्यवाद और नवउदारवाद के खिलाफ बडेÞ संघर्ष का हिस्सा होगा, तभी कामयाब हो सकेगा। यह हो सकता है कि ज्यादा हो-हल्ले और सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद भारत सरकार गरीबी रेखा को थोड़ा ऊपर खिसका दे। पर इससे समस्या हल नहीं होगी। यह सोचने की बात है कि जिस देश में अस्सी-पचासी प्रतिशत लोग बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हों, वहां रेखा कहां खींची जाएगी? ऐसी हालत में गरीबी रेखा खींचने का मतलब बहुत-से जरूरतमंदों को राशन, शिक्षा, इलाज और सामाजिक सुरक्षा से वंचित करना होगा। इसलिए सस्ते राशन, पेयजल, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज की व्यवस्था बिना भेदभाव के पूरी आबादी के लिए होनी चाहिए। इसके लिए अगर सक्षम लोगों से कोई कीमत लेनी है तो वह उनकी हैसियत के मुताबिक उनसे ज्यादा करों के रूप में ली जा सकती है। साम्यवादी देशों में ही नहीं, यूरोप के कई पूंजीवादी देशों में भी कल्याणकारी राज्य के तहत हाल तक ऐसी व्यवस्थाएं रही हैं। इसके लिए भारत की सरकारें साधनों की कमी का रोना रोती हैं तो वह बहानेबाजी के सिवा और कुछ नहीं है। हथियारों, लड़ाकू विमानों, राष्ट्रमंडल खेलों, हवाई अड््डों, एक्सप्रेस मार्गों, विलासिता की वस्तुओं और सेवाओं के तामझाम पर विशाल राशि लुटाने के बजाय भारतवासियों की बुनियादी जरूरतों पर खर्च किया जा सकता है। अगर कंपनियों और अमीरों को दी जाने वाली मदद और करों में रियायतें बंद कर दी जाएं और दो नंबरी धन को जब्त कर लिया जाए तो कोई कमी नहीं रहेगी। दरअसल, सवाल साधनों का नहीं, प्राथमिकताओं और इच्छाशक्ति का है। फिर भी अगर कुछ सेवाओं और सुविधाओं को प्रदान करने में कोई भेद करना है तो बेहतर है कि गरीबी रेखा खींचने के बजाय अमीरी रेखा खींची जाए। यानी अमीर लोगों को चिह्नित किया जाए, और उन्हें इन सुविधाओं से बाहर रखा जाए। ऐसा करना प्रशासनिक रूप से भी ज्यादा आसान और व्यावहारिक होगा, क्योंकि अमीरों की संख्या दस फीसद से भी कम होगी। इसकी पहचान या मापदंड भी आसान होंगे। जैसे मोटरगाड़ी रखने वालों, रेलगाड़ियों में वातानुकूलित डिब्बे में या हवाई जहाज से यात्रा करने वालों को अमीरों की सूची में डाला जा सकता है। आयकर विभाग के पास देश के सारे अमीरों और मध्यम वर्ग की आय की अद्यतन जानकारी रहती है और अब वह कंप्यूटरीकृत भी है। इसलिए जो भी अमीरी रेखा बनाई जाएगी, उसके ऊपर के परिवारों की सूची हर साल आसानी से उपलब्ध हो जाएगी। किस आय को अमीरी रेखा मानना है, इसे तय करने की जिम्मेदारी विशेषज्ञों की एक समिति को दी जा सकती है। शर्त यही होनी चाहिए कि देश का कोई भी जरूरतमंद परिवार बुनियादी सुविधाओं से वंचित न रहे। महानगरों के खर्च को देखते हुए आयकर देने वाले नीचे के तबके को भी अमीरी रेखा से नीचे रखा जा सकता है। गरीबी रेखा की जगह अमीरी रेखा के निर्धारण के कुछ और भी फायदे होंगे। इससे देश का ध्यान देश के अमीरों और उनकी आमदनी और जायदाद में तेजी से हो रही बढ़ोतरी पर भी जाएगा। यह बढ़ोतरी कहां से हो रही है, यह जायज तरीके से हो रही है या अवैध रूप से, इस पर भी बहस चलेगी। हर जगह के अमीरों की सूची को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित भी किया जा सकता है। जिस तरह देश आजाद होने के बाद जमीन पर हदबंदी लागू की गई, उसी तरह आमदनी और संपत्ति पर भी ऊपरी सीमा लागू करने के बारे में गंभीरता से सोचा जा सकता है, जिसके पार देश के किसी नागरिक को जाने की इजाजत नहीं होगी। आखिर हम यह नहीं भूल सकते कि गरीबी और अमीरी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। देश के अधिकतर लोग गरीब इसलिए हैं क्योंकि उनका हक मारकर मुट्ठी भर लोग चांदी कूट रहे हैं। गरीबी की समस्या का हल महज गरीबों पर ध्यान केंद्रित करने से नहीं होगा। उसके लिए अमीरों की अमीरी पर भी सवाल उठाने होंगे और बंदिशें लगानी होंगी। गैर-बराबरी और वितरण के सवाल से गरीबी के सवाल को अलग नहीं किया जा सकता। महात्मा गांधी ने गरीबी रेखा या गरीबी निवारण पर नहीं, जीवन की सुविधाओं में बराबरी पर जोर दिया था और इस मामले में वे कोई भेदभाव बर्दाश्त करने के लिए वे तैयार नहीं थे: ''मेरे सपने का स्वराज्य तो गरीबों का स्वराज्य होगा। जीवन की जिन आवश्यकताओं का उपभोग राजा और अमीर लोग करते हैं, वही गरीबों को भी सुलभ होनी चाहिए, इसमें फर्क के लिए स्थान नहीं हो सकता। गरीबों को जीवन की वे सामान्य सुविधाएं अवश्य मिलनी चाहिए, जिनका उपभोग अमीर आदमी करता है। मुझे इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं है कि हमारा स्वराज्य तब तक पूर्ण स्वराज्य नहीं होगा, जब तक वह गरीबों को सारी सुविधाएं देने की पूरी व्यवस्था नहीं कर देता।'' |
Saturday, January 14, 2012
अमीरी रेखा की जरूरत
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/6315-2011-12-12-04-39-28
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment