Friday, 09 December 2011 11:02 |
अजेय कुमार सद्दाम हुसैन अमेरिका के तत्कालीन रक्षा मंत्री रम्सफेल्ड और डिक चेनी का घनिष्ठ मित्र था, पर वह खुमैनी के खिलाफ था, इसलिए अमेरिका ने कुछ देर मित्रता निभाई। जब वह दौर निकल गया तो बदली हुई परिस्थिति में उसे फांसी पर लटका दिया गया। लीबिया में अमेरिका ने तमाम आतंकवादी गुटों और पूर्व राजा इदरिस के अनुयायियों की मदद की, सिर्फ इसलिए कि वे कज्जाफी के विरुद्ध थे। जो लोग वाइट हाउस या दस, डाउनिंग स्ट्रीट में बैठ कर तय करते हैं कि हमले के लिए किस राष्ट्र का नंबर कब लगना चाहिए, क्या वे लोग तानाशाह नहीं हैं? उन्हें क्या तानाशाह नहीं कहेंगे जिन्होंने अपनी वेबसाइट पर खुलेआम घोषणा कर रखी है कि कोई भी ऐसा देश पनपने नहीं दिया जाएगा जो अमेरिका को सोवियत संघ जैसी टक्कर दे सके। 'आप या तो हमारे मित्र हैं या दुश्मन हैं', यह रवैया क्या तानाशाही भरा है? आज वे यह तय कर रहे हैं कि अब सीरिया से पहले निपटें या ईरान से। ईरान के बारे में मिथ्या अभियान लगभग पूर्वनियोजित ढंग से चल रहा है। आईएईए की रिपोर्ट प्रकाशित भी नहीं हुई थी कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने 'बेनाम पश्चिमी स्रोतों' के हवाले से ईरान के परमाणु-कार्यक्रम के बारे में कुछ नए रहस्योद्घाटन प्रकाशित कर दिए। इससे होता यह है कि जब वास्तव में रिपोर्ट छप कर सामने आती है तो कोई व्यक्ति यह जहमत नहीं उठाता कि उसकी बारीकियों को जांचे-परखे। पहले प्रकाशित हुए नए रहस्योद्घाटन ही जेहन में रह जाते हैं। 2008 से जितनी भी आईएईए की रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं, उन सबका लब्बो-लुवाब एक ही है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने में जुटा हुआ है। इस बार की रिपोर्ट में नया तत्त्व यह जोड़ा गया है कि सैटेलाइट द्वारा तेहरान के नजदीक पार्चिन में एक बस के आकार के बड़े-से कंटेनर की तस्वीरें मिली हैं जिनका इस्तेमाल, उनके अनुसार, विस्फोट-परीक्षण में किया जा सकता है। भूमिगत परीक्षण की सभी सुविधाओं के होते हुए ईरान जमीन के ऊपर पडेÞ कंटेनर का इस्तेमाल क्यों करेगा, यह कल्पनातीत है। असल में सवाल यहां यह है कि इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता कुछ भी हो, अमेरिका अगर तय कर ले कि हमला करना है तो वह किसी न किसी बहाने से करेगा। सीरिया और वहां का नेतृत्व, विशेषकर बशर-अल-असाद भी अमेरिका के निशाने पर हैं। वहां भी सैटेलाइट द्वारा खींची फोटो के आधार पर आईएईए ने बेनाम पश्चिमी हवालों से निष्कर्ष निकाला कि सीरिया में अल-हसकाह टेक्सटाइल फैक्ट्री का इस्तेमाल यूरेनियम-र्इंधन के प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) के लिए हो रहा है। यह खबर जब बडेÞ-बड़े अखबारों के मुखपृष्ठ पर छपी तो जर्मन पत्रकार पॉल-अंतोन क्रूगर को लिखना पड़ा कि यह टेक्सटाइल फैक्ट्री ही थी, और आज भी है, और साथ में जोड़ा कि 1980 के दशक के शुरू में इसे किस जर्मन इंजीनियर ने बनाया था। यह खंडन अखबारों के अंदर कहीं कोने में दब कर रह गया। आज बहस के लिए मुख्य मुद्दा यह होना चाहिए कि क्या चालीस करोड़ की आबादी वाले मध्य-पूर्व क्षेत्र में केवल साठ लाख की आबादी वाले देश इजराइल के पास ही नाभिकीय एकाधिकार होना चाहिए, सिर्फ इसलिए कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी ताकतें यही चाहती हैं। हैरानी की बात यह है कि जब एक आदमी दूसरे आदमी को पांव की जूती समझता है तो अधिकतर व्यक्तियों का खून खौलने लगता है, पर जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को पांव की जूती समझता है तो थोड़ी फुसफुसाहट के सिवा कुछ नहीं होता। इस दुनिया में वे तमाम लोग जो अपने-अपने देश से प्यार करते हैं और अपना भविष्य अपने हाथों से बनाने में विश्वास करते हैं, उन्हें मुअम्मर कज्जाफी की वसीयत के इन अंशों को ध्यान से पढ़ना चाहिए। यह वसीयत 'मंथली रिव्यू' के ताजा अंक में छपी है। इसमें लिखा है: ''दुनिया की आजाद जनता को हम यह बताना चाहेंगे कि अगर हम चाहते तो अपनी निजी हिफाजत और सुकून भरी जिंदगी के बदले अपने पवित्र उद्देश्य के साथ समझौता करके उसे बेच सकते थे। हमें इसके लिए कई प्रस्ताव मिले, लेकिन हमने अपने कर्तव्य और सम्मानपूर्ण पद के अनुरूप इस लड़ाई के हरावल दस्ते में रहना पसंद किया। अगर हम तुरंत जीत हासिल न भी कर पाएं तो भी, आने वाली पीढ़ियों को यह सीख दे जाएंगे कि अपनी कौम की हिफाजत करने के बजाय उसे नीलाम कर देना सबसे बड़ी गद्दारी है, जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा, भले ही दूसरे लोग इसकी कोई दूसरी ही कहानी गढ़ते और सुनाते रहें।'' मीडिया द्वारा झूठ के पहाड़ खड़े करने से सच को कुछ देर तक छुपाया जा सकता है, पर दुनिया का अवाम और खुद अमेरिका में मेहनतकश लोग साम्राज्यवादियों को चैन से नहीं बैठने देंगे। |
Saturday, January 14, 2012
तानाशाह कौन
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/6068-2011-12-09-05-33-51
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