Saturday, January 28, 2012

मुखपृष्ठ सपा को उल्टा न पड़ जाए मौलाना बुखारी का साथ

Saturday, 28 January 2012 16:50

लखनऊ, 28 जनवरी (एजेंसी) चुनाव के सियासी समर में मुसलमानों को अपने पाले में लाने की जंग तेज हो गयी है। और समाजवादी पार्टी :सपा: ने दिल्ली के शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी को मुसलमानों का सरपरस्त मानकर उनका साथ हासिल कर लिया है लेकिन कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि विवादास्पद छवि वाले बुखारी से मिली हिमायत सपा के लिये 'चले थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास' जैसे हालात न पैदा कर दे।
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह मुसलमानों की सरबराही के दावेदारों के सियासी रुख अपनाने के अर्से पुराने सिलसिले की एक कड़ी मात्र है और इससे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा को फायदा कम, नुकसान ज्यादा उठाना पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौलाना बुखारी का उत्तर प्रदेश की मुस्लिम सियासत में न तो कोई खास दखल है और न ही प्रभाव। ऐसे में सपा ने उन्हें क्यों तरजीह दी, यह तो वह ही जाने।
दूसरी ओर, बाबरी विध्वंस के जिम्मेदार कहे जा रहे कल्याण सिंह को साथ लेने की गलती करने के बाद मुसलमानों के करीब आने का हर जतन कर रही सपा को बुखारी का समर्थन पाने में बड़ा सियासी फायदा दिखाई दे रहा है।
सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव इसी 'फायदे' को हासिल करने के लिये मौलाना बुखारी को अपने पाले में लाने के लिये कई बार दिल्ली गये और बुखारी ने उन्हें समर्थन भी दे दिया लेकिन सवाल यह है कि क्या शाही इमाम वाकई सपा मुखिया की मुराद पूरी कर पाएंगे या फिर बुखारी की विवादास्पद छवि और मुसलमानों के एक वर्ग में उनके प्रति नाराजगी उसे उलटा नुकसान ही पहुंचा देगी।

मुसलमानों की कयादत :नेतृत्व: का दावा करने वाले मौलाना बुखारी वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में व्यापक मुस्लिम जनभावनाओं के खिलाफ जाकर भारतीय जनता पार्टी :भाजपा: के साथ हो लिये थे और उस चुनाव में भाजपा को मुसलमानों के वोटों का फायदा मिलना तो दूर, उल्टे नुकसान सहना पड़ा था।
सपा प्रवक्ता राजेन््रद चौधरी दावा करते हैं कि बुखारी के समर्थन से उनकी पार्टी को विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का फायदा होगा।
उन्होंने दावा किया कि प्रदेश का मुसलमान सपा के साथ है तथा बुखारी के आह्वान से वह और शिद्दत से पार्टी के साथ जुड़ेगा।
अब सपा की राय चाहे जो हो लेकिन प्रेक्षकों के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में सपा की स्थिति अभी तक मजबूत दिखाई देती है मगर बुखारी का साथ लेने से उसे मुस्लिमों की आबादी के एक बड़े हिस्से की नाराजगी से दो-चार होना पड़ सकता है।
मुल्क में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के दौरान मुसलमानों में प्रभाव रखने वाले धर्मगुरुओं और मौलानाओं का समर्थन लेने का सिलसिला अर्से पुराना है लेकिन अब बदले हालात और कौम के बदले मिजाज में इसका क्या नतीजा निकलता है यह देखना दिलचस्प होगा।

 

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