उपसंहार: लोकप्रिय और लोकमान्य | |
सर्वमित्रा सुरजन | |
मनोरंजन की परिभाषा कब मन के रंजन यानी बहलाव, आनंद से परिवर्तित होकर अश्लीलता की सीमा में प्रवेश कर गयी, इसका पता वृहत्तर भारतीय समाज को पता ही नहींचला। पाश्चात्य और प्राच्य की दो नावों पर पैर रखते-रखते अब हम पूरी तरह भटक चुके हैं। बचा है तो सिर्फ अतिरेक, जिसमें या तो संस्कृति के नाम पर कट्टरता थोपी जा रही है या खुलेपन के नाम पर अश्लीलता। दृश्य माध्यम, विशेषकर आज के प्रचलित धारावाहिकों और तथाकथित रियलिटी शो में जिस तरह की सामग्री परोसी जा रही है, उसमें शालीनता को ताक पर रखकर टीआरपी बढ़ाने का प्रचलन हो गया है। जो जितनी फूहड़ता दिखला सकता है, वो उतना लोकप्रिय होगा। कसौटी अब लोकमान्य होने की नहींहै, लोकप्रिय होने की है। बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ, सारा कारोबार इसी तर्ज पर चल रहा है। |
Wednesday, January 18, 2012
मनोरंजन की परिभाषा कब मन के रंजन यानी बहलाव, आनंद से परिवर्तित होकर अश्लीलता की सीमा में प्रवेश कर गयी, इसका पता वृहत्तर भारतीय समाज को पता ही नहींचला।
मनोरंजन की परिभाषा कब मन के रंजन यानी बहलाव, आनंद से परिवर्तित होकर अश्लीलता की सीमा में प्रवेश कर गयी, इसका पता वृहत्तर भारतीय समाज को पता ही नहींचला।
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