Friday, January 6, 2012

मवेशियों ने तय किया है कि कट जाना उनकी नियति नहीं!

मवेशियों ने तय किया है कि कट जाना उनकी नियति नहीं!


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Articles in the मीडिया मंडी Category

मीडिया मंडी »

[13 Dec 2011 | No Comment | ]

प्रोमिता मुखर्जी ♦ Sources in MiD DAY is saying that the MiD DAY management has offered them the salary of one-month as a compensation. Ironically, even for getting this compensation (a-month salary), they have to submit their resignation (mandatory).

मीडिया मंडीमोहल्ला दिल्ली »

[10 Dec 2011 | 9 Comments | ]

प्रोमिता मुखर्जी ♦ मिड डे के दिल्ली और बेंगलुरु संस्करण बंद कर दिये गये…! उसमें काम करने वाले सभी मवेशियों को इस हफ्ते कसाई के पास ले जाने की बात हो ही रही थी। मवेशियों ने याद दिलाया कि कट जाना उनकी नियति नहीं है। जिन पत्रकारों ने अपने खून-पसीने से अपने अखबार को सींचा है, वे आज अकेले ही एक बड़े सेठ से जंग करने को तैयार हो गये हैं।

नज़रियामीडिया मंडीसंघर्ष »

[7 Dec 2011 | 16 Comments | ]

विनीत कुमार ♦ किसी नेता के करियर के लिए तानाशाह के बजाय मूर्ख कहलाना ज्यादा घातक स्थिति हो सकती है। लेकिन सवाल है कि कपिल सिब्बल को इडियट या मूर्ख करार देने के बाद क्या? क्या ये सिब्बल की मूर्खताभर का हिस्सा है कि जो शख्स मोबाइल से रोज एसएमएस की शक्ल में कविताएं लिखता रहा और साल 2008 में बाजे-गाजे के साथ पेंग्विन से किताब की शक्ल में छपवा लाया, वही शख्स फेसबुक और ट्विटर पर लाखों लोगों के ऐसा किये जाने का विरोध माध्यम की अज्ञानता के कारण कर रहा है?

मीडिया मंडी »

[8 Nov 2011 | 4 Comments | ]

मार्कंडेय काटजू ♦ आप सेल्‍फ-रेगुलेशन के अधिकार की मांग करते हैं। क्‍या आपको याद दिलाना पड़ेगा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को भी ऐसा निरंकुश अधिकार हासिल नहीं है। कदाचार का दोषी पाये जाने पर उन जजों पर भी महाभियोग चलाया जा सकता है बल्कि हाल-फिलहाल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और हाईकोर्ट के जज को महाभियोग चलाये जाने के कारण त्‍यागपत्र देना पड़ा।

मीडिया मंडी »

[8 Nov 2011 | One Comment | ]

राम मोहन पाठक ♦ साख और सरोकार पत्रकारिता की मूल थाती रही हैं और आज भी साख की पूंजी के बूते ही पत्रकारिता समाज व भारत जैसे लोकतंत्र की धुरी है। पत्रकारिता में कभी कुछ 'पेड' नहीं था, अब सब कुछ 'पेड' है। तथ्यों की सत्यता, भाषा के मानकों और दूसरे सवालों-सरोकारों से अलग 'सबसे आगे' रहने की होड़ ने उसकी साख को कठघरे में खड़ा किया है।

नज़रियामीडिया मंडी »

[7 Nov 2011 | 11 Comments | ]

मार्कंडेय काटजू ♦ ऐसी कोई स्वतंत्रता नहीं हो सकती, जो कि अमूर्त और परम हो। सभी स्वतंत्रताएं तर्कसंगत सीमा का विषय होती हैं, और इसमें जिम्मेदारी भी निहित होती है। एक लोकतंत्र में, हर कोई जनता के प्रति उत्तरदायी है, और इसीलिए हमारा मीडिया भी है। निष्कर्षतः, भारतीय मीडिया को अब आत्म-चिंतन, एक उत्तदायित्व की समझ और परिपक्वता विकसित करना चाहिए।

नज़रियामीडिया मंडी »

[5 Nov 2011 | 13 Comments | ]

मार्कंडेय काटजू ♦ कई चैनल दिनभर और दिन के बाद भी क्रिकेट दिखाते रहते हैं। रोमन शासक कहा करते थे : "अगर आप लोगों को रोटियां नहीं दे सकते, तो उन्हें सर्कस दिखाइए।" लगभग यही नजरिया भारतीय सत्ता-स्थापनाओं का भी है, जिसे दोहरे तौर पर हमारा मीडिया भी सहयोग देता है। लोगों को क्रिकेट में व्यस्त रखो, ताकि वे अपनी सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा को भूल जाएं।

मीडिया मंडी »

[5 Nov 2011 | No Comment | ]

Justice Markandey Katju ♦ Cricket is an opium of the masses. The Roman emperors used to say 'if you cannot give the people bread, give them circuses'. In India, send them to cricket if you cannot give them bread. Many channels, day and night, are showing cricket as if that is the problem of the country.

पुस्‍तक मेलामीडिया मंडीमोहल्ला पटनासंघर्ष »

[25 Oct 2011 | 7 Comments | ]

दिलीप मंडल ♦ फेसबुक में लिखने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी (डॉक्टर मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण) के निलंबन की देश में पहली और एकमात्र घटना के ठीक 30 दिन के अंदर 16 अक्टूबर, 2011 को पटना में 112 पेज की किताब "बिहार में मीडिया कंट्रोल : बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला" का लोकार्पण संपन्न हुआ।

मीडिया मंडीसमाचार »

[8 Oct 2011 | No Comment | ]

डेस्‍क ♦ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रस्‍तावित टीवी चैनलों के लिए अपलिंकिंग/डाउनलिंकिंग संबंधी नीतिगत दिशा निर्देशों में संशोधन का प्रस्ताव स्‍वीकार कर लिया। मंत्रालय ने देश में तेजी के साथ बढ़ते इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के परिदृश्‍य को ध्‍यान में रखते हुए मौजूदा नीति में विभिन्‍न संशोधनों का प्रस्‍ताव किया है।

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