Thursday, 19 January 2012 10:09 |
श्रीनारायण समीर इसी कड़ी में 'अनुवादी हिंदी' की चुनौती से भी निपटना होगा। अनुवाद की भूमिका भाषा की संपन्नता और समृद्धि में सहकारी होती है। पर हिंदी में प्राय: ऐसा नहीं है। इस चुनौती से निपटने में हिंदी अनुवादकों के लिए अपने महत्तर दायित्व का ध्यान रखना बड़ा जरूरी है। आखिर इस विसंगति को हमें खत्म करना ही होगा कि अनुवादी हिंदी, खासकर प्रशासनिक कार्य-व्यवहार की हिंदी अबूझ न हो, बल्कि सरल, सहज और ग्राह्य हो। सहज और ग्राह्य प्रशासनिक हिंदी के लिए आवश्यक है कि देश भर में सरकारी कार्यालयों के अनुवाद से जुड़े कार्मिकों को हिंदी काम-काज के साथ दूसरे विभागों से भी आधिकारिक तौर पर जोड़ा जाए। इससे हिंदी कार्यान्वयन से जुड़े कार्मिक अनुवाद करने के बजाय सीधे हिंदी में मूल लेखन करने लगेंगे, जो सरल भी होगा और ग्राह्य भी। याद रहे कि आम आदमी को राजभाषा का नहीं, बल्कि जनभाषा का स्वरूप ही कार्यालय और प्रशासन के निकट लाएगा। जनतंत्र की सफलता जन को तंत्र से विलग रखने में नहीं, बल्कि निकट लाने में निहित है। वैश्वीकरण के इस दौर में सरकारी नीति और नियमों से ज्यादा असरदार मनुष्य समाज की आपसदारी, बाजार की शर्तें और संचार माध्यम हैं। हिंदी में वेब पोर्टल का विकास और तरह-तरह के सॉफ्टवेयर का निर्माण हिंदी की शक्ति औरअपरिहार्यता के प्रतीक हैं। हिंदी का उपयोगिता आधारित विकास निरंतर जारी है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ विज्ञापन की जरूरतों और उपभोक्ता वस्तुओं का संसार हिंदी को तेजी से बदल रहा है। इस प्रक्रिया में हिंदी नित नूतन अभिव्यक्तियों से आपूरित हो रही है। हिंदी के इस स्वरूप से उसके शुद्धतावादी समर्थकों को एतराज हो सकता है। मगर हिंदी के इस उपभोक्तावादी रूप-निर्माण से भी सार्थक और महत्त्वपूर्ण वह विकास है, जो ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में कहीं मंथर तो कहीं तेज गति से जारी है। हिंदी प्रेमी विद्वत-समूह यथार्थवादी नजरिए और अपने सतत प्रयास से हिंदी को समाजनीति, राजनीति, प्रशासन, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वप्न और आकांक्षा को व्यक्त करने के योग्य बना रहा है। भले यह विकास सतह पर नजर न आए, पर यह वास्तविकता है। यह वास्तविकता हिंदी की अंतर्वस्तु में जो सहयोग और सहकार की भावना है, उसका परिणाम है। लिहाजा, आज हिंदी में गर्व करने लायक उसका सृजनात्मक साहित्य ही नहीं है, बल्कि ज्ञान-विज्ञान की भिन्न-भिन्न शाखाओं से संबद्ध वे महत्त्वपूर्ण अनुवाद-कार्य भी हैं, जो परिपूरक, प्रासंगिक और समय-सिद्ध हैं। बावजूद इसके इंटरनेट पर हिंदी की स्थिति अच्छी नहीं है। विडंबना यह है कि विश्व में तीन सबसे अधिक बोली-समझी जाने वाली भाषाओं में शुमार होने के बावजूद हिंदी इंटरनेट पर काम आने वाली दस प्रमुख भाषाओं में भी नहीं है। इंटरनेट वर्ल्डस्टेट््स डॉट कॉम के सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व भर में बोली जाने वाली करीब छह हजार भाषाओं और बोलियों में केवल बारह भाषाएं ऐसी हैं जिनमें अठानवे फीसद वेब सामग्री नेट पर देखी और पढ़ी जा सकती है। इनमें अंग्रेजी अग्रणी है। साथ-ही-साथ हिंदी में ज्ञान-विज्ञान के साहित्य की रचना का अभियान भी छेड़ने की आवश्यकता है। तभी हिंदी सही मायने में जीवन संग्राम की भाषा बन सकेगी। सभ्यताओं के संघर्ष और दमन का कलंक चाहे जिस किसी भाषा के सिर मढ़ा हो, हिंदी प्रारंभ से ही सभ्यताओं में समन्वय और सहयोग से विकसित हुई है। हिंदी की यही शक्ति है और इस शक्ति का स्रोत जनता की आकांक्षा और सपने रहे हैं। भविष्य की हिंदी के स्वरूप का आभास अब मिलने लगा है। पर हिंदी का भविष्य इससे भी ज्यादा आश्वस्तकारी है। अलबत्ता बाजारवाद से ज्यादा शक्तिशाली राष्ट्रवाद होता है। भारत का आज का विकास भारत-राष्ट्रराज्य के सुनहरे भविष्य का संकेत करता है। भारतीय राष्ट्रवाद जैसे-जैसे सशक्त होता जाएगा, भाषाई राष्ट्रवाद वैसे-वैसे निखार पाता जाएगा। जनतंत्र का क्षैतिज विस्तार दिखाई देने लगा है। सिंहासन पर जनता की भागीदारी बढ़ने लगी है। बीते वर्ष में दुनिया के कोने-कोने में हुए जनांदोलन और उनकी सफलता के लहराते परचम इसके सबूत हैं। यही विस्तार हिंदी के भविष्य को सशक्त करेगा। हमें अपने बदलते समय की अपेक्षाओं के अनुरूप हिंदी का परिवर्द्धन और संवर्द्धन करना होगा। फौरी तौर पर हिंदी का एक ऐसा शब्दकोश तो बना ही लेना होगा, जो आॅक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के स्तर का व्यापक, अर्थ और संदर्भों से परिपूर्ण, पारिभाषिक शब्दावली और संकल्पनाओं से युक्त और अद्यतन होते रहने की गारंटी वाला हो। इन सबके मद््देनजर अपनी भाषाओं के लिए स्वयंसेवक सरीखा कुछ-न-कुछ करना अत्यंत जरूरी है। अगर हम यह नहीं कर सके तो वैश्वीकरण की आंधी में अंग्रेजी का मुकाबला कतई नहीं कर सकेंगे। विकसित दुनिया का लक्ष्य स्पष्ट है। वह और संपन्न होना चाहती है। साथ ही अपने नागरिकों के जीवन-स्तर को और उन्नत बनाना चाहती है। इसके लिए वह कुछ भी करने को तत्पर है। उसके लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। भारत में उसे अपने माल और सेवाओं की खपत की अपार संभावनाएं दिखाई देती हैं। इसीलिए उसने शुरू कर दिया है हम तक पहुंचने के लिए हमारी भाषाओं का अध्ययन। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा हिंदी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, ओड़िया, बांग्ला आदि भाषाओं में कामकाज का सॉफ्टवेयर विकसित करना इसका प्रमाण है। न्यूयार्क की कंपनी ओरिएंटल डॉट कॉम द्वारा हिंदी वेब टूल्स बाजार में उतारना इसी का नतीजा है। भारत को अगर विकसित बनाना है तो हम यह सब कब शुरू करेंगे। अभी क्यों नहीं? |
Thursday, January 19, 2012
वैश्वीकरण के दौर में हिंदी
वैश्वीकरण के दौर में हिंदी
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