Friday, January 20, 2012

वोडाफोन को 11,000 करोड़ की छूट, खुर्शीद से मिले प्रणव:वोडाफोन को राहत, सरकार को 3000 करोड़ का फटका,कर कानून बदलने की शुरू हो सकती है कवायद!


वोडाफोन को 11,000 करोड़ की छूट, खुर्शीद से मिले प्रणव:वोडाफोन को राहत, सरकार को 3000 करोड़ का फटका,कर कानून बदलने की शुरू हो सकती है कवायद!




उच्चतम न्यायालय ने आज एक दूरगामी महत्व के निर्णय में बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया दिया जिसमें वोडाफोन को दूरसंचार कंपनी हचिसन से भारत में उसके मोबाइल सेवा कारोबार को खरीदने के सौदे को लेकर 11,000 करोड़ रुपए का आयकर अदा करने का आदेश दिया गया था।

वोडाफोन पर टैक्स देनदारी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में आयकर कानूनों को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। विदेश में पंजीकृत कंपनियों के सौदों को आयकर विभाग के दायरे से बाहर मान लेने के बाद अब सरकार पर अपने मौजूदा कानून बदलने का दबाव बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में सरकार से ऐसे फेरबदल को कहा है।


वोडाफोन के फैसले से विदेश में पंजीकृत कंपनियों के लिए शेयर खरीद-फरोख्त सौदों को भारत में आयकर की देनदारी से बचने का रास्ता खुल जाएगा। भले ही देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिहाज से यह राहत भरा फैसला हो, लेकिन सरकार के लिए इसे राजस्व के बड़े नुकसान के तौर पर भी देखा जा रहा है। यही वजह है कि फैसला आने के तुरंत बाद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बैठक बुलाकर मामले की त्वरित समीक्षा की। बाद में कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के साथ मिलकर मुखर्जी ने उनकी राय ली। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने इस फैसले की समीक्षा के लिए एक दस सदस्यीय समिति भी गठित कर दी है। समिति भविष्य के लिए रणनीति भी सुझाएगी।

जानकारों की राय में यह मामला विदेश में पंजीकृत विदेशी कंपनियों के बीच तक ही सीमित नहीं रहेगा। अगर सरकार अपने कानून में बदलाव करती है तो उसका असर उन भारतीय कंपनियों पर भी होगा जो विदेश में जाकर वहां पंजीकृत कंपनियों के जरिए अधिग्रहण कर रही हैं। माना जा रहा है कि सरकार नए प्रत्यक्ष कर कानून में इस तरह के प्रावधान कर सकती है।

वैसे, उद्योग जगत मोटे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश है। फिक्की के महासचिव डा राजीव कुमार ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह फैसला विदेशी निवेशकों में भरोसा पैदा करेगा। कारपोरेट सौदों से जुड़े जानकारों का मानना है कि जो विदेशी कंपनियां इस तरह के सौदों के बाद कर विवादों में उलझी हैं, उन्हें इस फैसले का फायदा मिलेगा। इनमें फोस्टर को खरीदने वाली एबी मिलर्स, शांता बायोटेक का अधिग्रहण करने वाली सनोफी एवेंटिस, क्राफ्ट फूड का कैडबरी सौदा और वेदांता का केयर्न इंडिया को खरीदने का सौदा शामिल है।



सरकार के लिए खतरे की घंटी
वृष्टि बेनीवाल / नई दिल्ली January 20, 2012

उच्चतम न्यायालय के लंबी कानूनी लड़ाई के बाद वोडाफोन के पक्ष में दिए गए फैसले से सरकार को 11,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कर राजस्व का नुकसान हो सकता है। वोडाफोन प्रकरण में आए इस फैसले के आधार पर भविष्य में इस तरह के अन्य सौदों पर भी निर्णय लिया जाता है तो सरकार के राजस्व घाटे में और इजाफा हो सकता है, लेकिन सरकार भावी सौदों पर इस फैसले के नकारात्मक असर को कम करने के लिए कर कानूनों में संशोधन कर सकती है।
प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के प्रावधानों के तहत संभावित निवेशकों को वोडाफोन मामले से लाभ नहीं मिल सकता, क्योंकि डीटीसी के चलते सीमापार सौदों से होने वाली आय से भारत में भी कर की देनदारी बनेगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि डीटीसी लागू होने में देरी के कारण इस बीच वित्त मंत्रालय आगामी बजट में आयकर अधिनियम में भविष्य में होने वाले सभी लेनदेन से संबंधित प्रावधान भी शामिल कर सकता है।
डेलॉयट हैस्किंस ऐंड सेल्स की साझीदार नीरू आहूजा ने कहा, 'जहां इस फैसले ने सरकार को एक बड़े राजस्व से वंचित कर दिया, वहीं यह जीत आगे कुछ ही देर तक कायम रह सकती है। बजट 2012 में कर कानूनों में जनरल ऐंटी अवॉयडेंस रूल्स (जीएएआर) और कुछ संशोधन को जोड़े जाने का अनुमान है।'
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के कार्यकारी निदेशक संदीप लड्डा ने कहा कि डीटीसी में इस तरह के लेनदेन से संबंधित एक प्रस्ताव शामिल है, इसलिए विधेयक के लागू होने के बाद इस आदेश का लंबे समय तक औचित्य नहीं रहेगा। अन्स्र्ट ऐंड यंग के कर साझेदार हितेश शर्मा ने कहा, 'अभी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन पर आगे गौर किया जाएगा। कानून में ऐसा संशोधन भी किया जा सकता है जो पुराने सौदों पर भी लागू होगा।' विदेश में सौदों पर 10 से 20 फीसदी कर लगाया जाता है। आइडिया सेल्युलर-एटीऐंडटी (15 करोड़ डॉलर), जीई-जेनपैक्ट (50 करोड़ डॉलर), मित्सुई-वेदांत (98.1 डॉलर) , सैबमिलर-फॉस्टर्स, सनोफी अवेंतिस-शांता बायोटेक (77 करोड़ डॉलर) इस तरह के अन्य विवादित मामले हैं।
इस फैसले से वित्त मंत्रालय की भी मुश्किलें बढ़ी हैं जो पहले से ही इस साल राजस्व में कमी की आशंकाओं से जूझ रहा है। इस फैसले के तुरंत बाद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और मंत्रालय के आला अधिकारियों से मुलाकात की। इस आदेश के परीक्षण के लिए कर िवभाग के आला अधिकारियों का एक कोर समूह भी बनाया गया है।
बैठक के बाद खुर्शीद ने संवाददाताओं से कहा, 'सरकार को अपने महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों के राजस्व की जरूरत है और वास्तव में सब कुछ कानून के मुताबिक ही हुआ है। हम सभी पहलुओं पर गौर करेंगे।' केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के चेयरमैन एम सी जोशी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार इस आदेश को पढऩे के बाद ही आगे की रणनीति बनाएगी।
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=55070

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसला देते हुए कहा कि विदेशी जमीन पर हुए सौदों पर भारत में टैक्स नहीं लग सकता। इसके साथ ही उसने देश की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन को बहुत बड़ी राहत दे दी है।

वोडोफोन कर मामले में उच्चतम न्यायालय का वोडाफोन कंपनी के पक्ष में आया फैसला और उसके राजस्व पर असर से चिंतित वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। खुर्शीद ने दिल्‍ली में बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा फिलहाल हम सिर्फ इतना जानते हैं कि यह सर्वसम्मत फैसला आया है जो आयकर विभाग के खिलाफ गया है।

उन्‍होंने कहा हमें इसका परीक्षण करना है। हमें निश्चित तौर पर सरकार के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के लिए राजस्व की जरूरत है और जिस दूसरी चीज की जरूरत है वह है कानून में सुनिश्चितता। हमें दोनों क्षेत्रों का ही परीक्षण करना होगा। इस फैसले से सरकारी खजाने को 11,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। ऐसे समय जब सरकार पहले ही आर्थिक क्षेत्र की नरमी से तंगी में यह नुकसान परेशानी बढ़ाने वाला होगा।

उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार कर दिया और आयकर विभाग से कहा कि वह अगले दो महीने में वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग्स द्वारा जमा 2,500 करोड़ रुपए चार फीसद ब्याज के साथ लौटाए। उच्चतम न्यायालय ने अपनी रजिस्‍ट्री से भी कहा कि वोडाफोन द्वारा जमा 8,500 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी अगले चार हफ्तों में वापस करे।

वोडाफोन इंटरनैशनल होल्डिंग को भारत के आयकर विभाग के साथ कानूनी लड़ाई में बड़ी सफलता मिली है । सर्वोच्च न्यायालय में वोडाफोन को राहत मिलने के साथ ही कंपनी के बहुप्रतीक्षित आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) का रास्ता अब साफ हो गया है। वोडाफोन ने मई, २००७ में ११.२ अरब डॉलर के सौदे में नीदरलैंड और केमैन द्वीप की कंपनियों के जरिए हांगकांग के हचिसन समूह से हचिसन-एस्सार लिमिटेड में ६७ फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। आयकर विभाग ने कहा था कि इस सौदे के जरिए भारत में पूंजीगत लाभ कमाया गया इसलिए वोडाफोन को कर का भुगतान करना होगा। वोडाफोन-एस्सार की मूल कंपनी ब्रिटेन की वोडाफोन ग्रुप पीएलसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ करते हुए कहा कि इस फैसले से भारत में उनका विश्वास और बढ़ा है। वोडाफोन के वकील हरीश साल्वे और अभिषेक मनु सिंघवी थे।

कंपनी पर सरकार द्वारा किए गए भारी कर दावे की वजह से भारत सहित विदेश में भी निवेशक चिंतित थे। एसेंटिस कंसल्टिंग के सह संस्थापक और प्रधान विश्लेषक आलोक शिंदे ने कहा, 'हालांकि भारतीय इकाई का आईपीओ और मुख्य कंपनी पर कर का बोझ दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। लेकिन यदि कंपनी आईपीओ लाती तो वह कर दावे से प्रभावित भी हो सकता था।' बहरहाल, चर्चा है कि वोडाफोन ने आईपीओ के लिए निवेश बैंकरों की नियुक्ति भी कर दी है। लेकिन इस बावत जानकारी मांगने पर कंपनी ने कुछ टिप्पणी करने से इनकार किया।
वोडाफोन पीएलसी के प्रवक्ता सिमोन गॉरडॉन ने कहा, 'यह (आईपीओ) कई कारकों पर निर्भर करता है।'

कैपिटल गेंस टैक्स मामले में वोडाफोन की आज बहुत बड़ी जीत हुई है। चीफ जस्टिस एस एच कपाडिया के नेतृत्व में कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने बहुमत से यह फैसला दिया कि टैक्स डिपार्टमेंट को इस तरह से टैक्स लेने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने 2-1 से यह फैसला दिया है और कहा कि टैक्स अधिकारी वोडाफोन से वसूले गए 2500 करोड़ रुपये 4 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटा दे। यह रकम करीब 3000 करोड़ रुपये बैठेगी। उसका कहना था कि जिस देश में यह सौदा हुआ है वहां भारत के टैक्स कानून लागू नहीं होते।



बांबे हाई कोर्ट ने वोडाफोन की याचिका जब सुनवाई के लिए ली थी तो उसने यह रकम जमा करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वोडाफोन को 11,217 करोड़ रुपये की बचत हो गई है जो उसे भारत में इनकम टैक्स के रूप में देना पड़ता। कोर्ट का मानना है कि यह मामला टैक्स चोरी का नहीं बल्कि टैक्स प्लानिंग का है।



ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन पीएलसी ने भारत में अपनी टेलीकॉम सेवा शुरू करने के लिए हचिसन से एक सौदा विदेशी जमीन पर किया था। इस पर इनकम टैक्स अधिकारियों ने उस पर टैक्स लगाया। कंपनी ने इसका विरोध किया और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।  



यह फैसला इसलिए भी अहम है कि कई कंपनियों ने विदेशों में सौदे किए हैं और उन पर भी भारी भरकम टैक्स की तलवार लटकी हुई थी। लेकिन इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है कि इस तरह से बैक डोर से होने वाले सौदों से उसे काफी नुकसान होगा और उसके राजस्व में कमी होगी। इस फैसले से विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने में सहूलियत होगी। कई कंपनियां बाहर में आपसी गठबंधन करती हैं और उनके लिए यह बढ़िया खबर है।

उच्चतम न्यायालय ने आज एक दूरगामी महत्व के निर्णय में बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया दिया जिसमें वोडाफोन को दूरसंचार कंपनी हचिसन से भारत में उसके मोबाइल सेवा कारोबार को खरीदने के सौदे को लेकर 11,000 करोड़ रुपए का आयकर अदा करने का आदेश दिया गया था।

वोडाफोन 22 हजार करोड की राहत सरकार को बडा झटका

(12:18:12 AM) 21, Jan, 2012, Saturday

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सुर्ख़ियो में

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फिलिस्तीन में मेदवेदेव के नाम पर सड़क

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चरखारी में कम नहीं उमा की चुनौतियां

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आईपीएल 5 में गेल बने रहेंगे चैलेंजर

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विजय ने स्टैंडर्ड पिस्टल में जीता गोल्ड

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तानाशाहों की वापसी की उम्मीद नहीं : गिलानी

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उत्तर प्रदेश में मनमोहन भी उतरेंगे चुनाव प्रचार में

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गोधरा में मोदी ने खेला विकास का दांव

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2जी मामला : बेहुरा की याचिका पर सीबीआई को नोटिस

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पाकिस्तान में सेना का नकली जनरल गिरफ्तार





नयी दिल्ली  !    उच्चतम न्यायालय ने टैक्स देनदारी के संभवतः सबसे बडे मामले में दूरसंचार जगत की दिग्गज अंतरराष्ट्रीय कंपनी वोडाफोन को आज बडी राहत प्रदान करते हुए फैसला सुनाया कि उस पर आयकर विभाग द्वारा लगाया गया 11 हजार करोड रुपये का कर गैरकानूनी है1

इस फैसले के परिणामस्वरूप वोडाफोन को टैक्स की 11 हजार करोड रपये की धनराशि के साथ ही इतनी ही राशि का जुर्माना भी नहीं देना होगा. जिससे कंपनी को कुल 22 हजार करोड रुपये अदा करने से छूट मिल गई है1

न्यायालय का फैसला सरकार के लिए एक बडा झटका है तथा राजस्व वसूली का उसका एक प्रमुख कदम निष्प्रभावी हो गया है 1फैसला आने के तुरंत बाद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने फैसले के विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श किया 1सरकार की ओर से अभी यह नहीं बताया गया है कि इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए न्यायालय से अनुरोध किया जायेगा 1श्री मुखर्जी ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में कहा कि वह फैसले का अध्ययन करेगें जबकि श्री खुर्शीद का कहना था कि फैसले में राजस्व संग्र्रह और कानून की स्थिरता के पहलू जुडे हुये है 1

दूसरी ओर वोडाफोन प्रबंधन ने फैसला का स्वागत करते हुए कहा कि इस फैसले से भारतीय न्यायपालिका में उनका भरोसा बढ गया है 1फैसले के बाद दुनियाभर के शेयर बाजारों में कंपनी के शेयरों में तेजी आ गयी1

मामले की सुनवाई कर रही तीन.सदस्यीय खंडपीठ में से मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया एवं न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने बम्बई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग की अपील मंजूर कर ली1उन्होंने अपने फैसले में कहा कि वोडाफोन तथा हचिंसन के बीच सौदा कैरेबियाई द्वीप केमैन में हुआ था जो भारतीय अधिकार क्षेत्र में नहीं आता 1उन्होंने सौदे को वैध बताते हुए कहा कि यह दिखावटी या करों से बचने के लिए किया गया सौदा नहीं बल्क्यिा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के तहत वैध समझौता था 1

न्यायाधीशों ने अपने फैसले में कहा कि राजस्व संग्रह सरकार का एक महत्वपूर्ण उपाय है लेकिन कानून की स्थिरता भी जरूरी है 1निवेशकों को अपने निवेश के बारे में भरोसा होना चाहिये 1उन्होंने सरकार को कराधान के सम्बंध में समुचित नीतियां बनाने का भी सुझाव दिया 1

न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन ने भी अलग से दिए गए फैसले में वोडाफोन से कर वसूली के बम्बई उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया. लेकिन इसके लिए अलग तरह के कारण बताए1

आयकर विभाग ने विदेश में हुए इस सौदे और लेनदेन को लेकर वोडाफोन पर 11 हजार 217 करोड रुपये का टैक्स लगाया और इतनी ही धनराशि का जुर्माना भरने का भी नोटिस जारी किया गया था1

खंडपीठ ने न्यायालय के अंतरिम आदेश के तहत वोडाफोन की ओर से जमा कराए गए ढाई हजार करोड रुपये दो महीने के भीतर वापस करने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया1 खंडपीठ ने इस राशि पर चार प्रतिशत की दर से ब्याज देने को भी कहा है1

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में जमा आठ हजार 500 करोड की बैंक गारंटी भी वोडाफोन को वापस करने का निर्देश दिया1

उच्चतम न्यायालय ने 15 नवम्बर 2010 को वोडाफोन को मामले की सुनवाई से पहले ढाई हजार करोड जमा कराने और साढे आठ हजार करोड की बैंक गारंटी जमा कराने का निर्देश दिया था1 इस मामले की नियमित सुनवाई तीन अगस्त 2011 को शुरू हुई थी और न्यायालय ने गत वर्ष 19 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था1


http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/143139/1/20

वोडाफोन पर राहत की घंटी
बीएस संवाददाता / नई दिल्ली/मुंबई January 20, 2012

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे जब दोपहर में टीवी कैमरों के सामने आए, तो उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान बिखरी हुई थी। उच्चतम न्यायालय में वोडाफोन की ओर से पेश होने वाले साल्वे के पास खुश होने के पर्याप्त कारण भी हैं। आखिरकार पिछले करीब पांच साल से देश के आयकर विभाग के साथ चल रहे कानूनी विवाद में ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन जीत ही गई। दरअसल यह विवाद 11,000 करोड़ रुपये के कर को लेकर चल रहा था।
इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिय़ा की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ के फैसले ने इस तरह के विवादों में फंसी अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में भी उम्मीद जगा दी है। फिलहाल एटीऐंडटी, सैब मिलर, जीई, कैडबरी, सनोफी और वेदांत समेत करीब आठ कंपनियां आयकर विभाग के साथ कानूनी विवाद में उलझी हुई हैं।
हालांकि फैसले के बाद आयकर विभाग ने अपने अगले कदम के बारे में कुछ नहीं कहा है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के चेयरमैन एम सी जोशी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार आगे कोई भी कदम उठाने से पहले इस फैसले का अध्ययन करेगी। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि अब सरकार के पास इस फैसले की समीक्षा करवाने का ही विकल्प बचा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानूनी मिसाल कुछ ही समय के लिए रह सकती है। दरअसल 2012 से लागू होने वाली प्रत्यक्ष कर संहिता में वोडाफोन जैसे सौदों को कर दायरे में रखा गया है। प्राइसवाटरहाउसकूपर्स इंडिया के कार्यकारी निदेशक संदीप लड्डा ने बताया कि इस फैसले के साथ ही लंबे समय से चल रहे कानूनी विवाद का निपटान हो गया। लेकिन डीटीसी में इस तरह के सौदों का कर दायरे में रखा गया है। उच्चतम न्यायलय ने कहा कि सरकार 2007 में वोडाफोन द्वारा खरीदी गई हचिसन की हिस्सेदारी के सौदे पर पूंजी लाभ कर नहीं लगा सकती है क्योंकि यह सौदा दो विदेशी कंपनियों के बीच हुआ था। न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह वोडाफोन द्वारा जमा किए गए 2,500 करोड़ रुपये उसे 4 फीसदी ब्याज के साथ लौटाए।
वोडाफोन ने कहा कि आईपीओ आने से पहले विवाद का सुलझना जरूरी था। कंपनी इस विवाद में बराबर कहती रही है कि क्योंकि यह सौदा देश के बाहर हुआ है और इसलिए यह आयकर विभाग के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। वोडाफोन इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी विटोरियो कोलाओ ने कहा, 'हम भारत के लिए प्रतिबद्घ निवेशक हैं और यहां लंबी अवधि के लिए आए हैं। हम हमेशा ही कहते रहे हैं कि हमें भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।'
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=55063

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वोडाफोन ने लांच किया फीचर से भरपूर सस्ता 3जी स्मार्टफोनShare53
http://business.bhaskar.com/article/supreme-court-rules-in-favour-of-vodafone-2771156.html

उच्चतम न्यायालय मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आज व्यवस्था दी कि विदेश में पंजीकृत कंपनियों के बीच विदेश में हुए सौदे पर कर लगाना भारत के आयकर विभाग के क्षेत्राधिकार में नहीं हैं।
मुख्य न्यायाधीश कपाड़िया और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के निष्कर्ष से सहमत जताते हुए न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन ने एक अलग आदेश में कहा कि भारत से बाहर गठित कंपनियों :वोडाफोन और हचिसन: के भारत से बाहर हुए सौदे का भारत के कर विभाग से कोई संबंध नहीं है।
न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कहा कि इसम मामले में '' आयकर अधिनियम की धारा 163 के उपबंध 1:सी: के तहत वोडाफोन का कोई दायित्व नहीं बनता है।''  अदालत ने आयकर विभाग से कहा कि न्यायालय के अंतरिम आदेश के अनुरूप वोडाफोन द्वारा जमा किए गए 2,500 करोड़ रुपए को चार फीसद की ब्याज के साथ दो महीने के भीतर कंपनी को वापस कर दिया जाए।
इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने वोडाफोन द्वारा दी गई 8,500 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी को भी चार हफ्तों के भीतर वापस करने का निर्देश दिया है।
वोडाफोन ने हालांकि मई 2007 में 11.2 अरब डालर के सौदे में नीदरलंैड और केमैन द्वीप की कंपनियों के जरिए हांगकांग के हचिसन के समूह से हचिसन-एस्सार लिमिटेड में 67 फीसद हिस्सेदारी खरीदी थी। वोडाफोन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकीलों में एक अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा ''हम उच्च न्यायालय के आदेश से खुश हैं। न्यायालय ने इस मामले की गहनता से छान-बीन की और निष्कर्ष पर पहुंचा। नतीजा जो भी हो यह भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए बड़ी विजय है।''
वोडाफोन ने सितंबर 2010 में बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि यह सौदा भारतीय आयकर विभाग के क्षेत्राधिकार में आता है।
आयकर विभाग ने कहा कि इस सौदे के जरिए भारत में पूंजीगत लाभ कमाया गया इसलिए वोडाफोन को कर का भुगतान करना होगा और एक कारण बताओ नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया कि उसे वोडाफोन इंटरनैशनल होल्डिंग के प्रतिनिधि करदाता क्यों नहीं माना जाए। वोडाफोन ने इस नोटिस को बंबई उच्च न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी कि शेयरों का हस्तांतरण भारत से बाहर किया गया है और इस यह सौदा भारत के आयकर विभाग के अंधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
दिसंबर 2008 में उच्च न्यायालय इस अपील को खारिज कर दिया जिसे वोडाफोन ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने भी जनवरी 2009 में वोडाफोन की अपील को खारिज कर दिया और आयकर विभाग को निर्देश दिया कि इस बात का फैसला करने कि यह सौदा उसके क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि साथ में यह भी व्यवस्था दी थी कि यदि वोडाफोन को इस विषय पर आयकर विभाग के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की छूट होगी। साथ ही कहा कि इस मामले में कानून के प्रश्न हमेशा उठाए जा सकते हैं।
वोडाफोन ने 14 सितंबर 2010 को उच्चतम न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी। उच्चतम न्यायालय ने 27 सितंबर 2010 को जारी अंतरिम आदेश में उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ स्टे देने से इन्कार कर दिया था।
नवंबर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने वोडाफोन से कहा कि वह सुनवाई शुरू होने से पहले 2500 करोड़ रुपए जमा करे और 8,500 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी दे।
न्यायालय यह भी कहा कि यदि मामला वोडाफोन के पक्ष में जाता है कि सरकार को ब्याज समेत वोडाफोन को यह राशि वापस करने होगी।
उच्चतम न्यायालय ने तीन अगस्त 2011 को इस मामले की सुनवाई शुरू की थी और 19 अक्तूबर 2011 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

वोडाफोन को 25 करोड़ जमा कराने के निर्देश


Source: Business bureau   |   Last Updated 01:50(19/11/11)

नई दिल्ली टेलीकॉम ट्रिब्यूनल टीडीसैट ने वोडाफोन को आदेश दिया है कि वह डीओटी द्वारा लगाए गए 50 करोड़ रुपये जुर्माने का आधा हिस्सा अदा करे। कंपनी पर यह जुर्माना इसलिए लगाया गया था, क्योंकि उसने सत्यापन के बिना बल्क में सिम कार्ड की बिक्री की थी।


टीडीसैट ने कंपनी को यह जुर्माना दो सप्ताह के अंदर जमा करने को कहा है। ट्रिब्यूनल ने अपनी छानबीन में वोडाफोन को मैट्रिक्स सेल्यूलर सर्विसेज को बल्क में सिम बेचते समय प्रथम दृष्टया लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन का दोषी पाया।


टीडीसैट के चेयरमैन जस्टिस एस. बी. सिन्हा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने वोडाफोन के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि उसे मैट्रिक्स सेल्यूलर द्वारा जारी किए गए सिम के १०,००० आखिरी उपभोक्ताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। (प्रेट्र)


http://www.telegraphindia.com/1120121/jsp/frontpage/story_15033984.jsp

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New Delhi, Jan. 20: India's biggest tax claim against a corporate entity – a potential tab for Rs 11,000 crore ($ 2.2 billion) against the UK-based Vodafone Group with the prospect of larding it with huge penalties at a later stage – has been tossed into a judicial dustbin.
The Supreme Court announced the stunning verdict today, overturning a ruling by Bombay High Court that had upheld the tax authorities right to pursue a Dutch subsidiary of Vodafone Plc for failing to deduct the amount while making a $11.08-billion payment in May 2007 to Hutchison Telecommunications International Ltd, a wholly-owned Cayman Island subsidiary of Hong Kong-based tycoon Li Kashing's Hutchison Whampoa.
Vodafone International Holdings BV of the Netherlands had acquired the entire share capital of CGP Investments (Holdings) Ltd, based in the Cayman Islands. CGP Investments held a 67 per cent stake in Hutchison Essar through several layers of overseas and Indian entities.
The unexpected verdict was immediately touted as a landmark judgment that would restore the faith of foreign investors in India's judicial system and inject an element of certainty in India's notoriously whimsical process of taxation.
US-based Kraft's global acquisition of chocolate maker Cadbury, a $150-million Idea Cellular AT&T-deal, SABMiller's purchase of 100 per cent stake in Foster's India, and General Electric's $500 million sale of its majority stake in BPO outfit Genpact have been under the taxman's scanner and could potentially benefit from this ruling.
A three-judge bench headed by Chief Justice of India S.H. Kapadia said the offshore transaction, which gave Vodafone Group a controlling 67 per cent stake in Hutchison Essar (now Vodafone Essar), was "bona fide" and labelled it as a "structured foreign direct investment into India". Vodafone Essar is the country's third biggest mobile telephony player.
Justices Swatantar Kumar and K.S. Radhakrishnan were the other two judges.
"The offshore transaction evidences participative investment… not a sham or tax avoidant pre-ordained transaction. It is between a Cayman Islands company and a company incorporated in the Netherlands. The subject matter was the transfer of a company incorporated in Cayman Islands. Consequently, Indian tax authorities had no territorial tax jurisdiction to tax the offshore transaction," the bench ruled.
The bench also directed the tax department to refund the Rs 2,500 crore that Vodafone – the world's largest mobile telephony company by revenues – had deposited with the court registry while pursuing its legal challenge. The government had encashed the amount and will now have to return it with 4 per cent interest within two months.
The tax authorities can file an appeal against the ruling but it was not immediately clear whether they would do so.
It is learnt that the Central Board of Direct Taxes has formed a 10-member panel that will study the implications of the judgment.
Finance minister Pranab Mukherjee went into a huddle with law minister Salman Khurshid, sparking speculation that the government could amend its tax laws once again with attention focusing on the probable inclusion of an Effects Doctrine – like in the US -- that would empower the state to levy taxes against persons not residing within the territory of the state as long as some "real link" could be established between it and the proposed taxpayer. It was not clear whether this would have retrospective effect.
In February 2008 – about 10 months after the Vodafone-Hutchison deal was sealed – the government had amended the tax laws retrospectively making it mandatory for a company to withhold or deduct tax under Section 194 for payouts made to entities that could escape the tax net. And if it failed to do so, it would be treated as an "assessee in default" who could run the risk of being slapped with severe penalties.
In October 2010, the income tax department asked Vodafone to pay Rs 11,217 crore by way of tax and interest. Vodafone contested the tab on two counts: first, that there was no basis for levying the tax on an overseas stake sale, and second, the calculation itself.
A month later, it deposited Rs 2,500 crore with the Supreme Court and also provided a bank guarantee for Rs 8500 crore pending final adjudication of the case. But on March 23, 2011, the tax authorities served another notice asking Vodafone to explain why it should not be liable to pay penalties amounting to 100 per cent of the tax payable.
"Vodafone has maintained consistently throughout the legal proceedings that this transaction was not taxable and we are pleased with today's judgment in the Supreme Court," the London-based company said in a statement.
While ruling in favour of Vodafone, the apex court made an impassioned plea for strong governance and stability in fiscal laws to attract overseas investors.
"FDI flows towards location with a strong governance infrastructure which includes enactment of laws and how well the legal system works. Certainty is integral to the rule of law. Certainty and stability form the basic foundation of any fiscal system," the judges said.
"Tax policy certainty is crucial for taxpayers (including foreign investors) to make rational economic choices in the most efficient manner," the bench said. "Investors should know where they stand. It also helps the tax administration in enforcing the provisions of taxing laws."
Vodafone has consistently argued that if any tax had to be paid at all, it ought to have been collected from the seller i.e. the Hutchison group.
The revenue authorities claimed that if the transfer of a capital asset situated in India happened as a consequence of something that had taken place overseas (including transfer of a capital asset), then all income derived even indirectly from such a transfer would becomes taxable in India.
They argued that the control of Hutchison Essar had passed to Vodafone as a result of the transfer of the CGP share outside India and would therefore attract the provisions of Section 9 of the Income Tax Act. However, the top court rejected this contention.
The court said that Section 9(1)(i) did not cover indirect transfer of capital assets/property situated in India. It only applied to transfers of a capital asset situated in India.
In a separate but concurrent judgment, Justice Radhakrishnan likened the demand of almost Rs 12,000 crore by way of capital gains tax to "imposing capital punishment for capital investment since it lacks authority of law".





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Palash Biswas
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