Monday, December 12, 2011

Pl see the Anti Bamcef Article to Divert the People`s resistance. and React!Fwd: [Mulnivasi Karmachari Sangh] देश मे जातिवाद फैलाना, यह जनतंत्र पर हमला है......

Pl see the Anti Bamcef Article to Divert the People`s resistance. and React!
Palash Biswas

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From: Rajanand Meshram <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2011/12/12
Subject: [Mulnivasi Karmachari Sangh] देश मे जातिवाद फैलाना, यह जनतंत्र पर हमला है......
To: Mulnivasi Karmachari Sangh <276373509074205@groups.facebook.com>


देश मे जातिवाद फैलाना, यह जनतंत्र पर हमला...
Rajanand Meshram 8:09pm Dec 12
देश मे जातिवाद फैलाना, यह जनतंत्र पर हमला है......
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर जयंती की छुट्टी चाहिए थी जो "दिना भाना" नामक सरकारी कर्मचारी को नही मिली थी. तो पुन स्थित उनके आफिस मे बवाल खड़ा किया गया. पिछड़े जातियों के कर्मचारी इकठ्ठा हुए. उसमे कांशीराम को भी बुलाया गया. जातिगत भेदभाव पर चर्चा चली. अविवाहित तरुण कांशीराम को घुस्सा आया. वह गया. आफिसर के केबिन मे घुसा और आसिसर को खुर्ची मे ही बांधकर उसकी बेहद पिटाई की. तो उससे कांशीराम को नोकरी से निलंबित किया गया. बाबासाहब आम्बेडकर की किताब "जाती व्यवस्था का उच्चाटन" (Annihilation of caste) डी. के. खापर्डे ने कांशीराम को पढ़ने के लिए दिया था. उसे पढकर जाती व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के लिए उसे तैयार किया गया. खाली-पिली कांशीराम को मागासजातियों के कर्मचारीयोंने पाला. पिछड़े जातिय कर्मचारीयों के हितों की रक्षा करने के लिए जातिगत संघटन बनाया, जिनका नाम बामसेफ है.

बामसेफ यह अंग्रेजी BAMCEF (Backward And Minorities Communities Employers federation) शब्द से बना है. इसमें एससी (अछूत) जाती, एसटी (भटकी जाती), एनटी (वनवासी जाती) और इन्ही जातियों से धर्मान्तरित बौद्ध, सीख, ईसाई, मुस्लिम धर्मिय कर्मचारी लोग. यह ऐसे पिछड़े सरकारी तथा गैर-सरकारी कर्मचारी/नोकर लोगों का संघटन है. इनकी संस्था ८५% आंखी गई. इन्ही जातियों के कर्मचारी इस संघटन के सभापद बन सकते है अन्य जातियों के कर्मचारियों के लिए दरवाजे बंद है. इन्होने कसम खाई थी की यह राजकीय कार्य कभी नही करेंगे, रास्तें पर कभी आंदोलन नही करेंगे और किसी धर्मों उपदेश नही करेंगे. मगर यह सभी नियम वे हमेशा तोड़ती आयी है, उनके कार्यकर्ता तोड़ते आये है. जो बताया जाता उस पर अमल न करना यानि जनता के साथ धोका है.

जाती को बंद खोली कहा गया है जिसे दरवाजा नहीं होता. यह अब जातीय आरक्षण के पक्ष मे है. जातियों हितोंकी मिलकर रक्षा करने वाले है, जाती व्यवस्था तोड़ने का वे केवल नाटक करते है. इन्ही लोगों ने सूरत मे कहा था की राजकीय परिवर्तन समाजपरिवर्तन पर निर्भर है, समाज परिवर्तन होने पर राजकीय परिवर्तन हो जाएगा, ऐसा उनका कहना था. मगर बाद मे वे कहने लगे की, 'राजकीय सत्ता सभी परिवर्तनों की कुंजी है', और अब वे इस बात पर अड़े हुए है. उन्हें जाती के आधार पर सत्तापरिवर्तन चाहिए. उसी के लिए उन्हें जाती तोड़ना गलत महसूस हो रहा है. उन्हें डर है की अगर जातीया टूट जायेगी तो उन्हें मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जायेगा.

ब्राह्मण जाती बचाव करने के लिए नर्क खाते है, तो यह लोग भी सत्ता पाने के लिए नर्क भी खाने को उतारू है. ब्राह्मणों ने अपने फायदे के लिए जातिवाद बनाया, तो यह लोग आरक्षण के लिए जाती बचाव कार्य मे लगे है. उनका कहना है, जाती रहेगी तो आरक्षण रहेगा और आरक्षण रहेगा तो उन्हें सत्ता मे आरक्षित सीटों पर नियुक्ति होगी, नोकरीयों मे आरक्षण मिलेगा तथा शैक्षणिक क्षेत्र मे आरक्षण मिलेगा.

बाबासाहब के विचारों से ब्राह्मण "आर्य" है, क्षत्रिय "आर्य" है, वैश्य "आर्य" है और शुद्र भी "आर्य" है. सभी लोग अलग अलग परिस्थितियों मे एक दूसरों के साथ झगडो मे विजित हुए है. जो विजित हुए है, वे ही "आर्य" हुए है. "आर्य" होकर भी "शुद्र" क्यों कहलाए गए? इसमें किसकी साजिश थी? इसे बाबासाहब ने उजागर किया है. वे कहते है, १. भारतीय "आर्य शुद्र" गिर गए क्योंकी उच्च जाती के साथ बहुत ही घुल गए. २. आज कल के शुद्र प्राचीन शुद्र नहीं थे (वे आर्य थे), ३. प्राचीन शुद्र (आर्य) के लिए जो विधान बने है वे आज कल के नए शूद्रों के लिए लागू कैसे हो सकते? ४. इस सवाल के जवाब पाने के लिए उन्होंने "who where the shudras" को लिखा है. ५. यह ग्रन्थ "आर्य समाज" के विरुद्ध है क्योंकि आर्यों के चार वर्ण है और वेद ईश्वरीय कृति होने का ब्राह्मण दावा करते है. ६. बाबासाहब आम्बेडकर ने यह सिद्ध किया की आर्यों के पहले तीन ही वर्ण थे, बाद मे ब्राह्मणों ने दस्यु, दासों को चौथे वर्ण मे धकेल दिया. इसमें ईश्वर की कोई भूमिका नहीं है. यह सब ब्राह्मणों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए किया था.

शुद्र भी "आर्य" है तो भारतीय OBC /अन्य मागासवर्गीय जातीया भी "आर्य" है. जो "आर्य" है वे अगर विदेशी है, तो हिन्दुधर्म और उसका पालन करने वाले भी विदेशी है. यह Who where the Shudras ग्रन्थ केवल शूद्रों की खोज नहीं है, तो "आर्यों" की भी खोज है. इसमें बाबासाहब आम्बेडकर लिखते है, "दास तथा दस्यु ,आर्य तथा दासों और दस्युओं मे जातीय भिन्नता न थी. दास तथा दस्यु; आर्य तथा दासों और दस्युओं मे जातीय भिन्नता न थी, दास तथा दस्यु आर्य हो सकते है. आर्य एक जाती है, यह एक मनगढंत बात है. इसका आधार डॉक्टर बाप की पुस्तक "Comparative Grammar" मे है. इस पुस्तक मे यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है की, सारी यूरोपीय भाषाए तथा कुछ एशिया की भाषाए एक ही भाषा से निकली है और यह भाषा "आर्य" भाषा है. इसी से लोगों ने दो परिणाम निकाले : १. आर्य भाषा किसी जाती की भाषा थी और २. वह जाती आर्य थी. इससे यह भी अनुमान किया गया की, आर्य जाती का एक ही निवास-स्थान है. आर्य-जाती यह अन्य जातियों से ऊँची है, इसके लिए यह बात गढ़ी गई की, आर्यों ने भारतवर्ष पर हमला किया और दास तथा दस्यु जाती को जीता. यह बात भी केवल अनुमान मात्र है की आर्य गोरे थे. रंग के बारे मे प्रोफ़ेसर रिप्ले का कथन है की यूरोप की पुराणी जातियों का सर लंबा और रंग सांवला था. (Races Of Europe, p.-466). यह बात वेदों से भी सिद्ध है. (रुग्वेद -१,११७,८)
चार्ल्स डार्विन के सिद्धांतों के अनुसार पृथ्वी और उसपर निर्भर सजीव विकसित हुए है. पहले जीव पानी मे विकसित हुआ, बाद मे वह भूखंडपर आया. विश्व मे सबसे ऊँचा हिमालय पर्वत है. इसके इर्द-गिर्द मे पहले सजीव पानी से निकलकर आये और एक से अनेक जिव विकसित होते गए. गोपाल गुरु चक्रनारायण के "लार्ड बुद्ध वाज दि फादर ऑफ येशु ख्रीस्त एंड महम्मद पैगम्बर" इस किताब मे मानव प्राणी सबसे पहले भारत मे, तराई के प्रदेश मे विकसित हुआ, जो हिमालय के गोदी मे आता है.

भूखंडों के विभाजनों से भूमंडलीय जीव भी विलग हुए है और अन्य जगहों पर भी वे विकसित हुए. भारतीय लोगों का व्यापार पुरे विश्व मे चलता था. व्यापार के साथ संस्कृति भी विकसित होते गयी. एक देश के अच्छी चीजे या प्राणी दूसरे देश मे आयात-निर्यात किये गए, उसमे व्यापारीयों द्वारा घोड़े भी भारत मे आयात हुए, इस सम्भावना को नकार नही सकते. घोड़ों के लिए उचित वातावरण भारत मे था इसलिए हजारों सालों से घोड़े यहाँ पर जीवित है. जैसे विदेशी कुत्ते भारत मे व्यापारी द्वारा आयात होते है वैसे ही प्राचीन भारतीय व्यापारीयोंने घोड़े भी आयात किये हो. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के मतानुसार आर्य का मतलब "श्रेष्ठ" है. जो भी जीतते है वे ही श्रेष्ठ कहलाते है. भारत मे ही नहीं तो हर जगह पर मानव प्राणी अलग अलग चिजो के प्राप्ति के लिए झगडे करता आया है. झगडों मे अलग-अलग हत्यारों का और जीवों का भी वापर हुआ है. बाबासाहब आंबेडकर ने घोड़े के लिए उत्तम परिस्थिति उत्तर ध्रुवो पर है क्या? यह सवाल किया था. इसका उत्तर अभीतक मूलनिवासी वाले मनुवाद के शाखाओं ने नहीं दिया.

भारत मे प्राचीन धर्म "आर्य धर्म" को समजा जाता है. आर्यों का पवित्र धर्मग्रन्थ "वेद" है, जो ५,००० साल पुराना है. वेद का अर्थ वेद = निचोड़ या शोध, संशोधन है. उसमे वर्णन है की, आर्यों के पहले तीन ही अंग थे, बाद मे चौथे अंग का निर्माण किया गया. पहिला ब्राह्मण, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा वैश्य और बाद मे शुद्र अंग बनाया गया. अंग यानी वर्ण, वर्ग, भाग. हर भाग के लोग जन्म आधार पर, उस-उस जातियों की संख्या मे बढते गयी और वर्णगत नियुक्त कार्य करते गये. मनुस्मृति मे चार वर्णों के कार्यों का विस्तार से वर्णन आया है. बाबासाहब आंबेडकर ने "who where the shudras" मे विवरण किया की, तीन वर्ण आर्यों के वेदों द्वारा "आर्य" कहे जा चुके है और उनमे से ही जो लोग वर्ण व्यवस्था का विरोध करते गए, उसे शुद्र = नीच, हीन कहकर प्रताड़ित किया गया, उनका उपनयन करना ब्राह्मणों ने बंद करके उसे "चौथे वर्ग" मे बंदिस्त किया गया. मगर वे भी आर्य ही थे. शुद्र भी आर्य है.

आधुनिक धारणा केवल सीर की बनावट है. सीर की बनावट से मनुष्य की जाती कैसे जानी जाती है, इसका एक शास्त्र बन गया है. उसका नाम है, मानव शरीररचना शास्त्र (Anthropology). प्रोफ़ेसर रिप्ले का, जो इस शास्त्र के विशेषज्ञ माने जाते है, उनका अनुमान है की, यूरोपीय लोग तीन भागों मे विभाजित हो सकते है, १. ट्यूटोनिक, २. अल्फाईन, ३. मेडीट्रेनीयन. इन तिन्हो मे "आर्यो" का कोई स्थान नहीं दिखाई पड़ता. आर्य कौन थे? ..... इसमें आर्यों के लक्षण बताये गए है, "लंबा सीर, पतली खूबसूरत नाक, लंबा चेहरा, अच्छी गठन, कद लंबा और पतला."
दूसरा मत प्रोफ़ेसर मैक्समुलर का है, यह भाषा के आधार पर है. इसमें बताया गया है "अर" तथा "आर" शब्द बहुत प्राचीन है. इनका मतलब है "धरती". "अत" एवं "आर्य" शब्द का अर्थ "गृहस्थ" तथा "धरती को जोतनेवाला" हो सकता है. वैश्य शब्द से "विश" निकला है, विश का अर्थ "गृहस्थ" है. मनु की लड़की "इडा" का अर्थ है, जुती हुई धरती. सम्भवतः इस शब्द "अरा" से निकला दूसरा अर्थ प्रफेसर मक्स्मुलर ने यह दिया है की "अथ" शब्द का अर्थ "धरती को जोतनेवाला" मालुम होता है.
संभवत: यह शब्द आर्यों ने स्वयं चुना क्योंकि तुरा का अर्थ है शिग्रगामी, इससे तुरानियों का नाम पड़ा, क्योंकि वे घूमते फिरते है. प्रोफ़ेसर मैक्समुलर का कहना है आर्य कोई जाती नहीं थी. आर्य एक भाषा का नाम है. अब देखिये वेदों ने इस पर क्या प्रकाश डाला है? रुग्वेद मे "अर्य" और "आर्य" दोनों ही शब्द पाए जाते है. "अर्य" शब्द ८८ स्थानों मे आया है. १. शत्रु; २. मानवीय पुरुश; ३. देश का नाम; ४. मालिक है तो "आर्य" शब्द ३१ स्थानों मे आया है, परन्तु जाती के अर्थ मे नहीं. अतएव "आर्य" शब्द से किसी जाती मानव जाती विशेष का कोई निश्चित अर्थ नहीं होता.

आर्यों के बारे मे यह कहा जाता है की, वे बाहर से भारतवर्ष मे आये और भारत की रहनेवाले मानव जातियों को जीता अतएव दूसरा प्रश्न है की, आर्य कहाँ से आये? इसके बारे मे बहुत मतभेद है. आर्य भाषा के आधार पर बेनफ्र साहब ने उनका आदि स्थान काले सागर के उत्तर मे निश्चित किया है, परन्तु ग्रियर्सन ने केन्द्रीय तथा पश्चिमी जर्मनी मे निश्चित किया है. आर्यों के चेहरे और आकार से कुछ लोग काकेसस पर्वतीय क्षेत्र को आर्यों का असली घर बताते है परन्तु प्रोफ़ेसर रिप्ले का मत इसके विरुद्ध है. लोकमान्य तिलक का मत है की, आर्य उत्तर ध्रुव के पासवाले आर्केटीक देश से आये है. (Arctic home in the Vedas, by B. G. Tilak, p.58, 60). यह मत भी कुछ ठीक नहीं जंचता क्योंकि वेदों मे तथा आर्यों के जीवन मे "अश्व" /घोड़े का विशेष स्थान है, क्या घोड़े भी उत्तर ध्रुव के पास पाए जाते थे? रुग्वेद (मंत्र ६,३३३,३,७,८३,१,८,५१,९ तथा ११,१०२,३) और रुग्वेद (१०,२२,८) इन मंतों से कोई बड़ी लढाई का आभाष नहीं होता. इसलिए आर्य विदेशी साबित नही होते. वे देशी भारतीय भी है.

हर देश मे जीतनेवाले लोग रहते आहे है. आर्य जाती या वंश साबित नही होता. आर्य विदेशी है, उन्होंने हमारे ऊपर हमला करके हमें पराजित किया और हमारी हरप्पा और मोहनजोदड़ो संकृति को उन्होंने नष्ट किया, यह एक आरोप है. इस आरोप को सिद्ध करने के लिए पक्के कोई भी सबूत अबतक नही मिले है. भारत मे जो अब रहते है, चाहे वे विदेशी क्यों न हो, सरकारी आज्ञा से रहते है और उन्हें नागरिकत्व मिला है, ऐसे सभी लोग तिरस्कार के पात्र नही तो प्यार के पात्र है. मूलनिवासी का नारा गलत है. यह कोई बहुत बड़ी कल्याण कारी विचारधारा नही है, जिनका जयजयकार किया जाए. मुलनिवाशी बेवकूफ रहने पर भी उनका जयजयकार करना महामूर्खता के अलावा कुछ भी नही है.

तानाशाह कांशीराम ने बाद मे जातिगत आरक्षण का विरोध किया की उससे गुणवत्ता घटती है, मगर उनके चाहने वालों ने उनके बातों पर विश्वास नहीं किया और अब भी वे "जाती बचाव आंदोलन" के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे है. क्या आरक्षण से समता आएगी? भारत की कुल आबादी अगर १०० करोड आखी गयी तो ८५ करोड पिछडी जातीय लोग है. जातीय जनसँख्या के आधार पर आरक्षण लागू किया जाए तो ८५% जगहों पर सत्ता मे बहुजन रहेंगे. तो हमेशा शासन बहुजनों का रहेगा. बामसेफ/बीएसपी के लोग जातियों के नाम पर ऐसी गुलामों की तानाशाही करना चाहते है. जाब की बाबासाहब आम्बेडकरने किसी की भी तानाशाही को नकारा है.

ओबीसी अगर ५२% आखे गए तो ५२ करोड है. उन्हें ५२ करोड का ५२% आरक्षण दिया जाएगा तो ५२% की उन्नति होगी तो बाकि बचे ४८% ओबीसी का क्या होगा? क्या उनमे स्पर्धा नही होगी? स्त्रियां भी आतिगत नही तो लिंगगत आरक्षण की माँग करती आयी है. त्रुतियपंथी भी आरक्षण के माँग करते आये है. एक परिवार मे रहते है, पुरुष को जातिगत आरक्षण से सौलते मिलने से वंचित होने पर लिंगगत मिले स्त्रियों के सौलते लेने का प्रयास सुरु होता है, सौलते लेने के लिए स्पर्धा लगी है, इसमें जो जीतेगा वही सिकंदर है, इसे सही जनतंत्र कोण कहेगा? स्पर्धा यह एक प्रकार का झगडा है, इसका अंत करने का कार्य सरकारी निति पर निर्भर है. सरकार मे एक भी ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति नही है की इन समस्याओं का हल वे निकाल सके.

शासकीय नोकरिया लगभग १५% होती है. उसमे १५% लोग नोकरियों पर लग जायेंगे तो बाकी ८५% बहुजनों फायदा कैसे होगा? किसी भी जातियों मे १५% लोग जातिगत आरक्षण से कर्मचारी बन भी गए तो उन्ही जातियों के ८५% लोगों को इस आरक्षण का क्या फायदा है? क्या यह समतामूलक विचार है? जातिगत आरक्षण से समता कैसे और कबतक आएगी? क्या इसे ही न्याय, स्वतंत्र, समता और बंधुभाव का मिशन कहना चाहिए? बुद्ध का मानना है की किसी भी जाती या नश्ल के व्यक्ति को विचारों से नियंत्रित किया जा सकता है.

आर्य विदेशी है, ऐसा मान भी ले तो, क्या उन्हें बुद्धधम्म नही पढाना चाहिए? क्या बाबासाहब आम्बेडकर ने ब्राह्मणों को छोडकर पूरा भारत बौद्धमय करने को महत्त्व दिया था? बाबासाहब के नामपर आंदोलन करते-करते उनके ही विचारों को पैरों तले रोंदते चलना क्या बाबासाहब का मिशन चलाना है? सांसदीय जनतंत्र के जो मुल्य समता, स्वतंत्रता और बंधुभाव है, उनपर आधारित समाज बने, यही बाबासाहब का मिशन है. क्या बामसेफ और बीएसपी के विचारधारा और कार्यप्रणाली मे हमें कही पर नजर आते है? अगर नही उसका उत्तर है तो उसकी आलोचना क्यों नही करनी चाहिए? भारत मे जनतंत्र के विरोध मे जो संस्थाए, संघटनाए या पार्टीया कार्य करती आयी है, उसका संशोधन करने के लिए "एक स्वतंत्र आयोग" बनना चाहिए और उनके तहत जो जातिवाद को बढ़ावा दे रहे है उनपर तुरंत अंकुश लगाना चाहिए. अन्यथा धार्मिक आतंक से भी महाभयानक घातक आतंकवाद विदेश से नही तो देशी लोगों से ही फैलते रहेगा, उससे जनतंत्र का अंतहोगा. बामसेफ /बीएसपी देश मे जातिगत, वंशगत नफरत फैला रही है, उनपर अगर सरकार ने पाबंधी नही लगाई, तो जातीय युद्ध होंगे तथा देश मे शान्ति और सुकून कभी भी नही आएगा.

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