Friday, December 9, 2011

कोलकाता के सबसे मंहगे अस्पतालों में से एक एएमआरआई अस्पताल में शुक्रवार को कहर बरपा। तड़के लगभग साढ़े तीन बजे अस्पताल में अचानक आग लग गई। देखते ही देखते आग ने पूरे अस्पताल को अपनी चपेट में ले लिया। धुंए और आग से 90 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। मुख्यमंत

कोलकाता के सबसे मंहगे अस्पतालों में से एक एएमआरआई अस्पताल में शुक्रवार को कहर बरपा। तड़के लगभग साढ़े तीन बजे अस्पताल में अचानक आग लग गई। देखते ही देखते आग ने पूरे अस्पताल को अपनी चपेट में ले लिया। धुंए और आग से 90 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। मुख्यमंत्री और राज्य की स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी ने हमेशा की तरह मौके पर पहुंचकर रंग बिरंगी घोषणा करके मामला रफा दफा करने की पुरजोर कोशिश की है, जैसा कि उन्होंने राज्य के अस्पतालों मे बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत की जिम्मेवारी टालते हुए पहले भी सफलता पूर्वक किया है। अस्पताल मालिकों की गिरफ्तारी, अस्पताल का लाइसेंस रद्दकरने, जांच का एलान, परिजनों को नौकरी का वायदा उनके पुराने शिगूफे हैं, जिससे जनता और वोट बेंक को भरमाने में उन्होंने महारत हासिल की है। पर खुली अर्थ व्यवस्था में जन स्वास्थ्य के प्रति राष्ट्र की जवाबदेही और स्वास्थ्य कारोबार में नागरिकों को मौत के मुंह में डालते रहने के चाकचौबंद बंदोबस्त जैसे मुद्दे अनुत्तरित ही रह जाएंगे। पूर बंगाल में चिकित्सा तंत्र चौपट है। अंधेर नगरी के हालात सुधारने के लिए जादू की छड़ी के साथ अवतरित ममता ने इस दिशा में अब तक कुछ किया नही है और न करनेवाली हैं, आमरी अस्पताल अग्निकांड से इसका खुलासा हो गया है। कारोबारियों और माफिया को खुली छूट का नजारा बदलने वाला नहीं है और न हादसों और मौतों का सिलसिला रुकने वाला है। सिर्फ सूर्खियां बदलती रहेंगी।

पलाश विश्वास

कोलकाता के सबसे मंहगे अस्पतालों में से एक एएमआरआई अस्पताल में शुक्रवार को कहर बरपा। तड़के लगभग साढ़े तीन बजे अस्पताल में अचानक आग लग गई। देखते ही देखते आग ने पूरे अस्पताल को अपनी चपेट में ले लिया। धुंए और आग से 90 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। इस बीच अस्पताल में रेडिएशन का खतरा होने की संभावना को देखते हुए रेडिएशन एक्सपर्ट की टीम को भी बुला लिया गया है।बीबीसी संवाददाता अमिताभ भट्टासाली के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बात की पुष्टी की है कि इस हादसे में मरने वालों की संख्या 73 तक पहुंच गई है.एएमआरआई अस्पताल में आग लगने की ये दूसरी घटना है. 2008 में भी अस्पताल में आगजनी की एक घटना हुई थी.

अस्पताल के बेसमेंट में ही रेडियोलॉजी विभाग था जहां से आग लगी। लेकिन नैशनल डिजास्टर रिस्पॉंन्स फोर्स (एनडीआरएफ) ने अस्पताल के कैंसर विभाग का जायजा लिया। जांच के बाद एनडीआरएफ ने अस्पताल में किसी भी प्रकार के रेडिएशन इनकार किया।

गैस मास्क पहने और ऐंटि-रेडिएशन मॉर्डन उपकरणों से लैस एनडीआरएफ का एक दल अस्पताल में दाखिल हुआ। जांच के बाद दल ने कहा कि अस्पताल में रेडियो एक्टिव तत्वों का रिसाव नहीं हुआ है। दल के कमांडर मुकेश कुमार वर्मा ने कहा , ' अस्पताल में कोई अडिशनल रेडिएशन और रिसाव नहीं है। ' उन्होंने कहा कि दल के सदस्य जबतक कि सुनिश्चित नहीं हो जाते कि अस्पताल में रेडिएशन से जुड़ी समस्या होने का कोई खतरा नहीं है तबतक वे लगातार जांच करते रहेंगे।

आग इतनी तेजी से नहीं फैलती, अगर नियमों की धज्जियां उड़ाकर बेसमेंट को अस्पताल प्रशासन ने गोदाम में तब्दील न किया होता। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। अस्पताल के खिलाफ केस भी दर्ज कर लिया गया है। मृतकों के परिवार वालों को 5-5 लाख रुपयेमुआवजा देने की घोषणा की गई है। सबसे बड़ा खतरा रेडिएशन फैलने का था, लेकिन एनडीआरएफ (नैशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स) ने इससे इनकार किया है। उसका कहना है कि यहां पर रेडिएशन का कोई खतरा नहीं है और किसी भी प्रकार का रिसाव नहीं हुआ है। इसी बीच हॉस्पिटल के 6 निदेशकों को गिरफ्तार कर लिया गया है। जानकारी के मुताबिक , आग हॉस्पिटल के बेसमेंट में लगी और फिर यह धीरे - धीरे इमारत कीऊपरी मंजिलों में फैल गई। एयर कंडीशंड हॉस्पिटल होने की वजह से सारी खिड़कियां बंद थीं औरपूरा अस्पताल धुएं से भर गया। सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की 25 गाड़ियां मौके पर पहुंचगईं , लेकिन तंग गलियों और पूरी इमारत में धुआं भरा होने की वजह से बचाव अभियान मेंबाधा आई। मरीजों को बचाने के लिए दमकल कर्मचारियों ने आग और धुंए से घिरी इमारत कीखिड़कियां तोड़ दीं।

एएमआरआई के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट एस उपाध्याय के मुताबिक अस्पताल में 160 मरीज़ मौजूद थे जिनमें से 70 मरीज़ों की मौत हो गई है.

इसके अलावा तीन अस्पतालकर्मियों की भी मौत हो गई है. 90 घायलों को दूसरे अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.

ममता बनर्जी ने मौके पर पहुंच कर स्थिति का जायज़ा लिया और आसपास के अस्पतालों से अपील की है वो मरीज़ों को अपने यहां दाख़िल कर जल्द से जल्द उनका इलाज शुरु करें.अस्पताल में लगी आग से नाराज लोगों ने मौका मुआयना करने पहुंचीं मुख्यमंत्री को घेर लिया। इसके बाद पुलिस को इन लोगों पर लाठीचार्ज करना पड़ा। एएमआरआई अस्पताल में तड़के आग लगने के बाद वहां भर्ती रोगियों के परिजनों ने इस घटना में मरे और घायल हुए लोगों की सूची नहीं लगाए जाने से नाराज होकर स्वागत कक्ष में तोड़फोड़ की। पुलिस ने बताया कि रोगियों के ढेर सारे परिजनों ने अस्पताल के स्वागत कक्ष के दरवाजों के शीशे तोड़ डाले और अस्पताल का रजिस्टर फेंक दिया।घटनास्थल पहुंचीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का आदेश दिया है।उन्होंने मृतकों के गुस्साए परिजनों से एसएसकेएम अस्पताल जाकर शवों की पहचान करने कीअपील की।

आपदा प्रबंधन मंत्री जावेद खान ने कहा , ' मुझे अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने के मुख्यमंत्रीके निर्देश मिले। ' उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर अस्पताल प्रशासन के खिलाफ गैरजमानती धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। हॉस्पिटल के 6 निदेशकों को गिरफ्तार किया जा चुका है और उन पर गैर-जमानती धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।

नई दिल्ली से मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कोलकाता में हुई इस घटना पर शोक जताते हुए मरने वालों के परिजनों को 2-2 लाख रुपए और गंभीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपए मुआवजा देने की घोषणा की। एएमआरआई अस्पताल ने भी अपनी तरफ से मुआवजे की घोषणा की है।

मौत के इस आकड़े पर अभी अंतिम मुहर लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी भी कुछ लोगों के फंसे होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।ममता बनर्जी ने कहा कि 40 शवों को एसएसकेएम अस्पताल ले जाया गया है। बताया जा रहा है कि मरने वालों में ज्यादातर आईसीयू में भर्ती मरीज हैं। बंगाल सरकार ने इसकी पुष्टि की है।

मुख्यमंत्री और राज्य की स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी ने हमेशा की तरह मौके पर पहुंचकर रंग बिरंगी घोषणा करके मामला रफा दफा करने की पुरजोर कोशिश की है, जैसा कि उन्होंने राज्य के अस्पतालों मे बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत की जिम्मेवारी टालते हुए पहले भी सफलता पूर्वक किया है। अस्पताल मालिकों की गिरफ्तारी, अस्पताल का लाइसेंस रद्दकरने, जांच का एलान, परिजनों को नौकरी का वायदा उनके पुराने शिगूफे हैं, जिससे जनता और वोट बेंक को भरमाने में उन्होंने महारत हासिल की है। पर खुली अर्थ व्यवस्था में जन स्वास्थ्य के प्रति राष्ट्र की जवाबदेही और स्वास्थ्य कारोबार में नागरिकों को मौत के मुंह में डालते रहने के चाकचौबंद बंदोबस्त जैसे मुद्दे अनुत्तरित ही रह जाएंगे। पूर बंगाल में चिकित्सा तंत्र चौपट है। अंधेर नगरी के हालात सुधारने के लिए जादू की छड़ी के साथ अवतरित ममता ने इस दिशा में अब तक कुछ किया नही है और न करनेवाली हैं, आमरी अस्पताल अग्निकांड से इसका खुलासा हो गया है। कारोबारियों और माफिया को खुली छूट का नजारा बदलने वाला नहीं है और न हादसों और मौतों का सिलसिला रुकने वाला है। सिर्फ सूर्खियां बदलती रहेंगी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि एएमआरआई अस्पताल में लगी भीषण आग को लेकर जांच के बाद अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होने वहां मौजूद पत्रकारों से कहा कि इस घटना में लगभग 40 लोग मारे गए हैं। बनर्जी ने घटनास्थल पर पत्रकारों को बताया, ''शवों को सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में भेजा गया है। ममता बनर्जी शुक्रवार करीब 11 बजे घटनास्थल पर पहुंचीं और वहां मौजूद परिजनों को सांत्वना दी।

लगभग हर मरीज और उनके घरवालों ने बीती रात तक जो सपने देख रखे थे वे सब इस आग में स्वाहा हो गए. जिंदगी की आस लिए इस महंगे अस्पताल में दाखिल होने वालों को मौत नसीब हुई. अपनों और उन सपनों के राख होने का गम उस समय नाराजगी में बदल गया जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अस्पताल में पहुंचीं. नाराज परिजन उन पर फूट पड़े.

कोई इस घटना के लिए अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेदार ठहरा रहा था तो कोई सरकार को. लोगों का सवाल था कि आखिर इतने बड़े अस्पताल में अग्निशमन की समुचित व्यवस्था नहीं होने के बावजूद उसे लाइसेंस और फायर ब्रिगेड से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट कैसे मिला. ममता के पास उनके सवालों का कोई जवाब नहीं था. वे अधिकारियों को शवों को बाहर निकाल कर पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पतालों में भिजवाने की व्यवस्था करती रहीं.

भारत में स्वास्थ्य कारोबार निजीकरण की वजह से १९९१ से २००१ तक सोलह फीसद की दर से बढ़ा है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा के चौपट कर दिये जाने की वजह से मामूली आम लोगों को भी इलाज के लिए मंहगे अस्पतालों की शरण में जाना होता है। १९९१ में स्वास्थ्य कारोबार ४.८ अरब डालर का था जो २००१ में ब
ढ़कर २२.८ अरब डालर का हो गया। महानगरों की बात छोड़ें, दूरदराज देहत इलाकों में, कस्बों और छोटे शहरों में निजी अस्पताल समूह का जाल बिछ गया है। स्वास्थ्य पर्यटन और हेल्थ हब विकास का पैमाना हो गया है। विदेशी पूंजी को खुली छूट से न सिर्फ दवाइयों बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं पर भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शिकंजा कस गया है। पर राजनेता और अधिकारी माफिया और कंपनियों को खुल्ला खेल फर्रूखाबादी की इजाजत देकर अपन और परिजनों का मुफ्त इलाज से लेकर मुना?फे में हिस्सेदारी तक हासिलकर लेते हैं। इसी वजह से परिचारक मंडसी में सरकारी मुमाइंदगी बेसतलब है। आमरी में भी परिचालक मंडले में स्वास्थ्य अधीक्शक समेत दो अफरान हैं। मालिकों की गिरफ्तारी हुई, तो वे क्यों छुट्टा घूम रहे हैं? स्वास्थ्य महकमा के सबसे बड़े अफसर के मैनेजमेंट में शामिल होने से तो सीधे स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री की जवाबदेही बनती है। मालूम हो कि इस अस्पताल में ज्यादातर राजनेताओम , मंत्रियों और अफसरों का इलाज का रिकार्ड है।

सिर्फ कोलकाता में नहीं, बल्कि पूरे देश में यह खतरनाक लापरवाही का आलम है। महंगे निजी अस्पताल हैं या फिर सरकारी अस्पताल, मरीजों की सेहत तो क्या, उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। अंधाधुंध कमाई और विदेशी पूंजी के साथ भ्रष्टाचार का खुल्ला खेल है। हादसे के बाद थोड़ी चर्चा होता है फिर जस का तस।एम्स के कार्डियोवस्कुलर और न्यूरो साइंस केंद्र समेत पांच अस्पतालों की इमारतों को दिल्ली दमकल विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला हुआ है।

दिल्ली दमकल सेवा के निदेशक ए.के. शर्मा ने कहा कि एम्स में कार्डियोवस्कुलर और न्यूरो साइंस केंद्र के अलावा राम मनोहर लोहिया अस्पताल में नए ट्रोमा सेंटर तथा गुरु तेग बहादुर अस्पताल के नए वार्ड ब्लाक को अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं है। अग्निशमन विभाग ने दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के दंत चिकित्सा विभाग और दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में सुरक्षा कदमों पर आपत्ति जताई है।

शर्मा ने कहा कि इन अस्पतालों के अधिकारियों को अग्नि संबंधी सुरक्षा की कुछ खामियां बताई गई हैं लेकिन इनमें से किसी ने मानदंडों को पूरा करते हुए शपथ पत्र नहीं दिया है।


एएमआरआई समूह के प्रमुख एस.के. टोड़ी सहित छह लोगों को अस्पताल में आग लगने के बाद दम घुटने से मारे गए लोगों की मौत के मामले में गिरफ्तार करने के साथ ही अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संवाददाताओं से कहा, 'मेरी घोषणा  के बाद दोषियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस मामले में कानून अपना काम करेगा। इतनी मौतों के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ गंभीरता से निपटा जाएगा।'अस्पताल में दाखि़ल होने के लिए अग्निशमन कर्मचारियों को खिड़की का शीशा तोड़ना पड़ा, तब जाकर वे मरीज़ों को बाहर निकाल सके.

बचावकर्मी अस्पताल में रखे ऑक्सीजन सिलेंडरों को निकालने की कोशिश में लगे हैं, क्योंकि वो कभी भी फट सकते हैं.

धुंए के कारण बचाव कार्यों में दिक्कत आ रही है और आपदा प्रबंधन की टीम भी मौके पर पहुंच कर राहत कार्य में मदद कर रही है.

इस बीच केंद्रीय राज्यमंत्री सुदीप बंदोपाध्याय ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ''ये एक सुविधा संपन्न महंगा अस्पताल है जहां इलाज के लिए मोटी रकम वसूली जाती है. इस तरह के अस्पतालों में सावधानियां और अधिक होनी चाहिए. अगर अस्पताल लापरवाही का दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ़ ज़रूर कार्रवाई की जाएगी.''

पिछले 15 वर्षों में देश में हुई बड़ी आग दुर्घटनाओं पर आईए एक नजर डालते है :-

20 नवम्बर 2011 : पूर्वी दिल्ली में स्थित एक समुदायिक पार्क में किन्नरों के समागम के दौरान लगी आग में १५ लोगों की मौत हो गई थी और 34 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

23 मार्च 2010: कोलकत्ता की बुस्टलिंग पार्क स्ट्रीट के मुख्य इलाके में स्थित ब्रिटिश काल में बनी स्टीफन कोर्ट में लगी आग में 43 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। बचाव दल और दमकल कर्मी के इमारत में फंसे लोगों तक ना पहुंचने की वजह से कई लोगों की मौत हो गई थी।

10 अप्रैल 2006: मेरठ स्थित विक्टोरिया पार्क में आयोजित उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के मेले में लगी आग में 50 लोगों की मौत होने के साथ काफी लोग घायल हो गए थे।

16 जुलाई 2004: तमिलनाडु के कुमबकोनम में एक स्कूल में हुई आग दुर्घटना में कम से कम 94 बच्चों की मौत हो गई थी, वही 18 बच्चे झुलसकर का गंभीर रूप से घायल हो गए थे। आग स्कूल की रसोई से शुरू होकर फूस की छत से बनी कक्षाओं तक पहुंची थी।

23 जनवरी 2004: तमिलनाडु के जिले तिरूचि के श्रीरंगम में एक विवाहस्थल पर शादी के दौरान लगी आग में 49 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 50 लोग घायल हो गए थे। मरने वाले में दूल्हा सहित 20 महिलाएं और चार बच्चे शामिल थे।

6 अगस्त 2001: तमिलनाडु के इरवाड़ी में मानसिक रूप से बीमार लोगों के एक घर में आग लगने से कम से कम 25 मानसिक रोगियों की झुलसकर मौत हो गई थी। इस दुर्घटना में पांच लोग घायल भी हुए थे। मरने वालों में 11 महिलाएं भी शामिल थी।

13 जून 1997: हिन्दी फिल्म 'बोर्डर' के प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के उपकार सिनेमाघर में लगी आग में कम से कम 59 लोग की मौत हो गई थी, वही 100 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

कोलकाता के जिस एडवान्स मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एएमआरआई) में लगी आग ने पचास से अधिक जिंदगियों को जलाकर खाक कर दिया है वह निजी अस्तपालों के दामन पर बदनुमा धब्बा भी लगा गया है. अस्पताल में आग अभी भी शांत नहीं हुई है और लाशों की यह गिनती आखिरी नहीं है. 190 बिस्तरों वाले इस अस्पताल से अभी और भी लाशें बाहर आ सकती है.

ममता ने कहा कि दमकल सेवा अधिकारी और पुलिस ने गत सितम्बर में एएमआरआई अस्पताल प्रशासन को उसके तहखाने के बारे में चेतावनी दी थी। एएमआरआई ने वचन तो दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया। ममता ने कहा कि अस्पताल बंद कर दिया गया है तथा बचाव अभियान पूरा होने के बाद कोलकाता नगर निगम उसे सील कर देगा। पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार ने अस्पताल के लिए 93 प्रतिशत भूमि दी थी।

उन्होंने कहा कि आग के कारणों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति में दमकल विभाग, कोलकाता नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि शामिल होंगे। कोलकाता पुलिस आयुक्त आर.के. पचनंदा ने कहा कि संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) दमयंती सेन समिति के कामकाज का निरीक्षण करेंगी।

टोड़ी के अलावा गिरफ्तार अन्य लोगों में आर. एस. गोयनका, रवि गोयनका, मनीष गोयनका, प्रशांत गोयनका और दयानंद गोयनका शामिल हैं। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन सभी पर लापरवाही, गैर इरादतन हत्या, और गैर इरादतन हत्या की कोशिश करने के आरोप लगाए गए हैं।


कोलकाता के अस्पताल में तड़के पौने चार बजे लगी आग ने तबाही मचा दी है। अस्पताल में फंसे लोगों को बचाने की कोशिश जारी है, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर सार्वजनिक इमारतों में सुरक्षा के इंतजाम पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। इस दौरान करीब 40 लोगों के मरने की आशंका है। अस्पताल में फंसे मरीजों और लोगों को निकालने का काम जारी है। आग के लिए जिम्मेदार अस्पताल के 6 बोर्ड मेंबर को गिरफ्तार कर लिया गया है। इन सभी को गैर जमानती धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है।  दोपहर बाद अस्पताल के प्रमुख सावन कुमार तोडी समेत तीन पदाधिकारियों ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया है. उधर, मौके पर पहुंची पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हादसे पर दुख जताते हुए अस्पताल प्रशासन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया.

अब सरकार और अस्पताल प्रबंधन ने इस घटना में मरने वाले मरीजों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने का एलान किया है. लेकिन महंगा अस्पताल होने की वजह से यहां इलाज कराने वाले ज्यादातर लोग संपन्न तबके के हैं. ऐसे में कुछ लाख रुपयों से अपनों को खोने का गम नहीं मिटेगा. एक मरीज के परिजन ने सवाल किया कि बीते पंद्रह दिनों के दौरान हमने अस्पताल को दस लाख रुपए का बिल भरा था. हम तो जान बचाने के लिए मरीज को यहां ले आए थे, उसकी जान का सौदा करने नहीं.

आग की इस घटना ने दो साल पहले महानगर से पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट नामक इमारत में लगी आग की यादें ताजा कर दी हैं. इसके साथ ही सवाल उठने लगा है कि आखिर पर्याप्त अगिनरोधक उपायों के बिना ऐसी इमारतों को हरी झंडी कैसे मिल जाती है. स्टीफन कोर्ट की आग के बाद सरकार ने तमाम इमारतों की जांच पड़ताल शुरू की थी. लेकिन कुछ समय बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया. अब इस आग के बाद भी एक बार फिर वही कवायद शुरू होगी. लेकिन उसका क्या नतीजा निकलेगा, यह अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है. सरकार ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं. इस अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है और प्रबंधन के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन इस आग ने जिन घरों में अंधेरा फैलाया उनका क्या होगा, इस सवाल का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही अस्पताल प्रबंधन के पास. कल तक रंगीन सपने देखने वाली सैकड़ों आंखों में आज उदासी, सूनापन और लपटों से आंखों में जलन पैदा करती भयावह रात उतर आई है.


आग में मरीजों सहित कई लोगों के मारे जाने की घटना पर लोकसभा ने शोक प्रकट किया। अध्यक्ष मीरा कुमार ने सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर कोलकाता अस्पताल अग्निकांड का जिक्र किया और कहा कि इस हादसे में कई लोग मारे गए हैं तथा सदन पीड़ितों के परिजनों के प्रति अपनी शोक संवेदना जाहिर करता है।

कोलकाता के आलीशान व महंगे एएमआरआई अस्पताल में शुक्रवार को लगी भयावह आग ने सिर्फ मरीजों की जिंदगी ही नहीं, बल्कि सैकड़ों सपनों को भी खाक कर दिया. नियम को धज्जियां उड़ाकर चल रहे अस्पताल में अक्सर नेता भी इलाज कराया करते थे.



आग अस्पताल के बेसमेंट से शुरू हुई, जहां मेडिकल स्टोर था और वहां कई गैस सिलेंडर भी रखे गए थे। लेकिन जो शुरुआती जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक अस्पताल में सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया गया था। किसी भी बड़ी इमारत में बेसमेंट को खाली रखना होता है। लेकिन इस अस्पताल के बेसमेंट में काफी सामान रखा गया था। आग फैलने की बड़ी वजह ये सामान भी हो सकते हैं। आग बेसमेंट से शुरू हुई और पूरी इमारत को अपनी गिरफ्त में लिया। कई मरीजों की मौत आग की लपटों से जलकर नहीं बल्कि धुएं में दम घुटने से हुई है।

अस्पताल के मालिक तो दूर कोई डॉक्टर या नर्स तक मौजूद नहीं थी. लोगों के गुस्से से बचने के लिए सब लोग फरार हो गए थे. वैसे, किसी समय इस अस्पताल के मालिक लगभग रोजाना टीवी पर मुस्कुराते नजर आते थे. यह वह समय था जब पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु लंबे समय तक इसी अस्पताल की दूसरी शाखा में भर्ती थे. बसु का निधन भी वहीं हुआ था. सीपीएम, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के दूसरे कई नेता भी अक्सर इलाज के लिए इस अस्पताल में आते थे. शायद राजनेताओं की इस करीबी ने ही अस्पताल प्रबंधन को नियमों की अनदेखी करने का साहस दिया था. आग की शुरूआत बेसमेंट से हुई. उसके बाद धीरे-धीरे ऊपरी मंजिलों में धुंआ फैलने लगा.

मरीजों ने ड्यूटी पर तैनात नर्स को फायर ब्रिगेड को सूचना देने की बात कही तो उसने कहा कि चिंता मत करें, आग पर काबू पा लिया गया है. फायर ब्रिगेड को सूचना देर से दी गई. रात को ढाई से तीन बजे के बीच लगी आग धीरे-धीरे फैलती गई. फायर ब्रिगेड के लोग सुबह पांच बजे मौके पर पहुंचे. तब तक यह अस्पताल लाक्षागृह बन चुका था.मृतकों को इस तरह निकाला जा सका
यही नहीं, अस्पताल प्रबंधन ने स्थानीय लोगों को भी आग बुझाने के लिए अस्पताल के भीतर आने की अनुमति नहीं दी. बाद में लोग जबरन भीतर घुसे और उन्होंने कई मरीजों को सुरक्षित बाहर निकाला. इन युवकों में एक बादल कहते हैं, "पहले तो सुरक्षा कर्मचारियों ने हमको भीतर ही नहीं जाने दिया. आधे घंटे बाद हम जबरन भीतर घुसे. तब तक हर मंजिल पर धुंआ भर चुका था. हमने दर्जनों मरीजों को बाहर निकाला." उनका कहना है कि अगर हमें पहले ही भीतर जाने दिया गया होता तो कई और मरीजों की जान बचाईं जा सकती थी.

बेबस मरीज कुछ न कर सके
नारायण सान्याल उन चंद सौभाग्यशाली मरीजों में हैं जो इस आग से जीवित बच कर बाहर निकल आए. वह बताते हैं, सुबह चार बजे जब नींद टूटी तो दो नर्सें आपस में बात कर रही थीं कि अस्पताल के एक हिस्से में आग लग गई है. लेकिन उन्होंने हमारे बचाव के लिए कुछ भी नहीं किया. बाद में फायर ब्रिगेड के लोगों ने खिड़की का शीशा तोड़ कर मुझे बाहर निकाला. उनके तमाम काजगात वहीं आग में जल गए. सान्याल को इस बात का बेहद अफसोस है कि वे अपने बगल के बिस्तर पर इलाज करा रहे एक मरीज को नहीं बचा सके. उसके पांव में तकलीफ थी. वह बिना किसी सहारे के चल नहीं सकता था. इस आग ने उसे लील लिया.

जिस बेसमेंट का इस्तेमाल कार पार्किंग के लिए किया गया था वहां कई ज्वलशील वस्तुएं रखी थीं. प्राथमिक जांच से पता चला है कि आग शार्ट सर्किट की वजह से लगी. बेसमेंट में रखे ज्वलनशील पदार्थों की वजह से आग तेजी से फैली.


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Palash Biswas
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