Wednesday, May 18, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



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From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/5/18
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


अप्रैल,जनवरी और जुलाई में होते हैं सबसे ज्यादा प्रोमोशन

Posted: 17 May 2011 11:29 AM PDT

दुनिया के सबसे बड़े प्रोफेशनल नेटवर्क लिंक्डइन के मुताबिक दुनिया भर के तकरीबन 9 करोड़ सदस्यों का मानना है कि भारत में अप्रैल महीने में सबसे ज्यादा प्रमोशन देखने को मिलते हैं। वेबसाइट ने ये आकड़े सदस्यों के प्रमोशन अपडेट करने के बाद जारी किए हैं। लिंक्डइन के मुताबिक भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए तरक्की वाले टॉप महीने अप्रैल के अलावा जनवरी और उसके बाद जुलाई हैं। भारतीय ट्रेंड के विपरीत अगर अमेरिका का उदाहरण लें, तो वहां के वित्तीय वर्ष के मुताबिक पहला महीना जनवरी होता है और उस दौरान साल के कुल प्रमोशंस के 16 फीसदी प्रमोशन दर्ज होते हैं। वहीं पदोन्नति चाहने वाले एंप्लॉईज के लिए एक टिप है। उनके लिए जरूरी है कि वे कंपनी के फाइनेंशियल रिजल्ट पर बारीकी से गौर करें और अगर रिजल्ट अच्छे हैं तो अपने लिए मैदान तैयार करें। लिंक्डइन के डाटा के मुताबिक, दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में हर तिमाही पर तरक्की के अधिकांश मामले दर्ज हुए हैं। जनवरी, जुलाई और अक्टूबर में प्रमोशन की गतिविधियां ज्यादातर देखने को मिलीं। ये महीने भारतीय वित्त वर्ष के प्रत्येक नई तिमाही के शुरुआती माह होते हैं, जो अप्रैल से मार्च तक चलते हैं और इसका सीधा संबंध कॉरपोरेट रिजल्ट और कर्मचारियों की पदोन्नति से है। वहीं आईटी इंडस्ट्री से संबंध रखने वाले प्रोफेशनल्स के लिए प्रमोशंस के लिहाज से अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर का महीना सबसे बेहतर होता है। एजुकेशनल प्रोफेशनल्स के लिए प्रमोशंस के लिहाज से बेहतर महीने मई और अगस्त के बीच के होते हैं, क्योंकि यह वक्त एकेडमिक छुट्टियों का होता है। वहीं रिटेल सेक्टर के लिए साल के सारे महीने पदोन्नति वाले होते हैं। अगर वैश्रि्वक नजरिए से देखा जाए तो जनवरी, जुलाई और सितंबर के महीने प्रोफेशनल्स के लिए पदोन्नति वाले होते हैं। लिंक्डइन के आंकड़े यह भी उजागर करते हैं कि ऐसे प्रोफेशनल्स, जिनका जन्म अस्सी के दशक में हुआ, उनकी प्रमोशन प्रक्रिया लगातार बदलती रही है। युवा प्रोफेनल्स की संख्या में भारी इजाफे से किसी और ऐज ग्रुप के मुकाबले ऐसे प्रोफेशनल्स के करियर पर ज्यादा प्रभाव देखने को मिला है। कम्युनिकेशंस ऐंड स्ट्रेटजिक कंसल्टिंग कंपनी लुमिन कोलेबोरेटिव की पिछले साल की एक स्टडी के मुताबिक, इस तरह के 55 फीसदी से ज्यादा प्रोफेशनल्स को या तो नौकरी गंवानी पड़ी या फिर उन्हें जबरन छुट्टी लेनी पड़ी। वहीं अधिकांश ऐसे प्रोफेशनल्स की गिनती आर्गेनाइजेशन में नए स्टाफर के तौर पर हुई, क्योंकि उनमें से 40 फीसदी लोगों को नौकरी ज्वाइन किए हुए एक साल भी नहीं हुआ था। यह भी देखा गया कि इन प्रोफेशनल्स में जनवरी को छोड़कर पूरे साल पदोन्नति देखने को मिली। लिंक्डइन के मुताबिक ऐसा इसलिए भी संभव है, क्योंकि सर्वे में यह देखने में आया कि 45 फीसदी ऐसे प्रोफेशनल्स किसी संस्थान के प्रेसिडेंट या सीईओ बनने की ख्वाहिश रखते हैं(दैनिक जागरण,दिल्ली,17.5.11)।

उत्तराखंडःआईटीआई सल्ट महादेव पौड़ी में दाखिले में फर्जीवाड़ा

Posted: 17 May 2011 11:28 AM PDT

सूचनाधिकार के माध्यम से राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में दाखिले में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। मामले में पात्र अभ्यर्थी की जगह आईटीआई के क्लर्क के पुत्र को प्रवेश दे दिया गया। फर्जीवाड़े पर पर्दा डालने के लिए दो साल तक लीपापोती की जाती रही। सही सूचनाएं भी तब दी गई जब कोर्स का समय पूरा हो गया। इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सूचना आयोग ने प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय पर एक लाख रुपये का हर्जाना तो ठोका ही है। आईटीआई सल्ट महादेव (पौड़ी)के प्रधानाचार्य के वेतन से 25 हजार रुपये बतौर जुर्माना काटने के आदेश भी दिए हैं। हुआ यूं कि पौड़ी गढ़वाल के पड़सोली गांव के विजयपाल सिंह नेगी को 2007-08 में आईटीआई सल्ट महादेव में प्रवेश नहीं दिया गया। उनके बदले आईटीआई के लिपिक के बेटे पुष्पेंद्र सिंह को प्रवेश दे दिया गया। प्रवेश न मिलने से खिन्न विजयपाल ने 19 सितंबर 2007 को आईटीआई के लोकसूचनाधिकारी यानी प्रधानाचार्य से इस बाबत सूचनाएं मांग लीं। मिली सूचनाओं से असंतुष्ट होकर उन्होंने प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय हल्द्वानी के निदेशक से विभागीय अपील की। वहां भी अपील के समय से निस्तारण न होने से उन्होंने आयोग में अपील कर दी। आयोग ने नोटिस भेजा तो प्रधानाचार्य ने कोई लिखित सफाई पेश नहीं की। इस पर राज्य सूचना आयुक्त प्रभात डबराल ने उन्हें सूचनाओं तक पहुंच में बाधा डालने का दोषी माना और उनके वेतन से 25 हजार रुपये बतौर जुर्माना काटने के आदेश दे दिए। आयोग में सुनवाई में पता चला कि अगर सूचना प्रार्थी को आवेदन का सही उत्तर समय पर दे दिया जाता तो उनके साथ हुए अन्याय की क्षतिपूर्ति तभी हो जाती लेकिन प्रधानाचार्य के मुताबिक सूचना का उत्तर भी उसी क्लर्क ने हेराफेरी कर तैयार किया जिसके पुत्र को दाखिला दिया गया था। मामला इतना ही नहीं दो साल के इस कोर्स में प्रवेश में जालसाजी का पता प्रधानाचार्य आरआर आर्य को जून 2008 में यानी कोर्स खत्म होने से एक साल पहले ही लग गया। उन्होंने मामले में जांच का पत्र दो साल बाद यानी 12 जनवरी 2009 को संयुक्त निदेशक गढ़वाल मंडल श्रीनगर को भेजा। 24 अक्टूबर 2007 को भी तत्कालीन प्रधानाध्यापक ने सूचना प्रार्थी को बेसिर-पैर की आख्या भेजी। इससे पता चला कि तभी से मामले की लीपा-पोती की कोशिश जारी थी। मजेदार बात यह है कि जांच के बाद लिपिक को तो सस्पेंड कर दिया गया लेकिन तत्कालीन प्रधानाचार्य और चयन से जुड़े अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई। राज्य सूचना आयोग ने मामले की गंभीरता से लेते हुए अपने आदेश में कहा है कि प्रार्थी के साथ जो अन्याय हुआ उसकी क्षतिपूर्ति असंभव है। जांच के दौरान विभाग ने उन्हें बार-बार अपमानित भी किया। किसी नौजवान के भविष्य के साथ हुए इस खिलवाड़ का आकलन धनराशि से करना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता लेकिन विभाग के सर्वोच्च स्तर के अधिकारियों से से लेकर नीचे तक के कर्मियों ने पूरे मामले में जिस तरह का आचरण किया है उसके आधार पर लोक प्राधिकारी के रूप में प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय को आदेश दिया जाता है कि वह अपीलार्थी विजयपाल सिंह नेगी को एक लाख रुपये क्षतिपूर्ति का भुगतान करें। आयोग ने वर्तमान लोक प्राधिकारी यानी निदेशक को इसलिए दंड नहीं दिया क्योंकि वह नए हैं और उनके समय में मामले के निस्तारण में तेजी आई। उन्होंने निदेशक को निर्देश दिए कि वह क्षतिपूर्ति का राशि चयन समिति के सदस्यों, वर्तमान प्रधानाचार्य और अन्य संबंधित अधिकारियों पर जुर्माना लगाकर वसूल सकते हैं या किसी अन्य माध्यम से क्षतिपूर्ति का भुगतान करा सकते हैं।
(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.5.11)

उत्तराखंडःसंविदा कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति आसान नहीं

Posted: 17 May 2011 11:20 AM PDT

ऊर्जा विभाग में कार्य कर रहे सैकड़ों संविदा कर्मचारियों को एक झटके में स्थायी नियुक्ति देना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। हालांकि इस बारे में संविदा कर्मचारियों को विधायक और मंत्री समेत पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा आश्वासन मिल चुका है। इसके बावजूद हकीकत यह है कि सरकार ने इस दिशा में कोई कार्रवाई शुरू ही नहीं की है। संविदा कर्मचारियों को स्थायी नियुक्ति देने के मामले में यूपीसीएल एचआर निदेशक शरद कृष्ण साफ कह चुके हैं कि सभी को स्थायी नियुक्ति देना संभव नहीं है। संविदा के आधार पर लंबे समय तक कार्य करने से कोई भी स्थायी नियुक्ति का पात्र नहीं होता। साफ है कि राज्य के दो हजार से अधिक विद्युत संविदा कर्मचारियों को स्थायी नियुक्ति के लिए अभी और संघर्ष करना होगा। करीब तीन सप्ताह से ऊर्जा भवन परिसर में आमरण-अनशन कर रहे विद्युत संविदा कर्मचारियों ने विरोध का हर हथकंडा अपना लिया है। कर्मचारी अब सम्मान जनक तरीके से आंदोलन को समाप्त भी करना चाहते हैं। यही कारण है कि न्याय की आश में कर्मचारियों का प्रतिनिधिमंडल इन दिनों नेताओं और मंत्रीयों के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारियों से मुलाकात कर ली है। पार्टी से उन्हें हरसंभव सहयोग का आश्वासन भी दिया गया है। सोमवार को गढ़ीकैंट में ओएनजीसी हैलीपैड पर विद्युत संविदा कर्मचारियोंने मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' से मुलाकात कर मामले पर कार्रवाई की गुहार लगाई। कर्मचारियों ने कहा कि तीन सप्ताह से उनका आंदोलन जारी है। इसके बावजूद उनकी सुध नहीं ली जा रही है। मुख्यमंत्री ने भी अधिकारियों को संविदा कर्मचारियों की फाइल उपलब्ध कराने के निर्देश दे दिए हैं। जानकारी के अनुसार कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को सभी मंत्री व विधायकों को ज्ञापन सौंपा है, जिसमें नियमितीकरण की मांग पर सहयोग का अनुरोध किया गया है।
(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.5.11)

उत्तराखंडःबच्चों की पढ़ाई पीपीपी मोड के हवाले करने की तैयारी

Posted: 17 May 2011 11:15 AM PDT

प्रदेश में गुपचुप तरीके से शिक्षा के निजीकरण की तैयारी जारी है। हाल में ही प्रदेश सरकार ने जूनियर हाईस्कूलों में लगभग 2000 पदों को आउटसोर्सिग के माध्यम से भरने का शासनादेश तो जारी किया ही गया है। अब स्कूलों को बनाने और उनके संचालन की व्यवस्था भी पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड के हवाले होने करने की तैयारी चल रही है। इसी तरह सभी जिलों में लगभग लर्निग सेंटरों का संचालन व प्रबंधन भी निजी संस्थाओं के हवाले किये जाने की तैयारी है। बच्चों के स्कूलों की बात करें तो पीपीपी मोड को लेकर प्रदेश में प्रयोग भी शुरू हो गए हैं। विद्यालयी शिक्षा विभाग ने पीपीपी मोड में पांच उच्च माध्यमिक विद्यालय कॉलेज खोलने का प्रस्ताव दिया है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अभिनव विद्यालय योजना के तहत ये विद्यालय खोले जाने की योजना है। इसके लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट भी आमंत्रित कर ली गई हैं। इसके तहत कंपनी को बीओटी यानी बिल्ड, ऑपरेट एंड ट्रांसफर अर्थात बनाओ, संचालित करो और हस्तांतरित करो के आधार पर इंटर तक के स्कूल बनाने होंगे। योजना के मुताबिक प्रदेश में उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर और ऊधमसिंहनगर में ये स्कूल स्थापित किए जाएंगे। छठी से लेकर 12 कक्षा तक के ये डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अभिनव विद्यालय उत्तरकाशी में द्वारीखाल, रुद्रप्रयाग में सुमाड़ी भरदार, चमोली में गैरसैंण, बागेश्वर में अमसरकोट और ऊधमसिंहनगर में तुमड़िया में स्थापित किये जाएंगे। इसी के साथ पीपीपी मोड में ही प्रदेश के सभी जिलों में 15 लर्निग सेंटर भी चलाए जाने हैं। इसके लिए भी टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। दरअसल नियमित शिक्षा से वंचित बच्चों मसलन स्कूल छोड़ चुके या अन्य कारणों से शिक्षा से महरूम रह गए बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार लर्निग सेंटर चलाती है। ये केंद्र तीन से चार केंद्रों के पैकेज के रूप में चलाए जाएंगे यानी निजी आवेदनकर्ता को दो से तीन लर्निग सेंटर चलाने होंगे। ये केंद्र राइंका नैनीताल, राकइंका हल्द्वानी, राइंका अल्मोड़ा, राइंका बागेश्वर, राइंका पिथौरागढ़, राइंका रुद्रपुर, राइंका चंपावत, राइंका पौड़ी, राकइंका गोपेश्वर, बीएलसएमआईसी रुड़की, राइंका अंजनीसैंण, कीर्ति इंटर कॉलेज उत्तरकाशी, राकइंका ऋषिकेश और राइंका रुद्रप्रयाग में चलाए जाएंगे(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.5.11)।

उत्तराखंडःसंस्कृत के प्रचार-प्रसारके लिए बनेगी कार्ययोजना

Posted: 17 May 2011 11:10 AM PDT

प्रदेश सरकार संस्कृत के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए एक्शन प्लान बनाएगी। सोमवार कोशिक्षा मंत्री गोविंद सिंह बिष्ट ने संस्कृत शिक्षा विभाग को इस बाबत निर्देश दिए। संस्कृत को कक्षा एक से स्कूलों के पाठय़क्रम में शामिल करने के कैबिनेट के फैसले को लागू करने के लिए विधानसभा में आयोजित बैठक में शिक्षा मंत्री गोविंद बिष्ट ने कहा कि संस्कृत के व्यापक प्रचार प्रसार और शिक्षण के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जाए। उन्होंने कहा कि संस्कृत नगरी हरिद्वार में चयनित दो ग्रामों को संस्कृत ग्रामों के रूप में विकसित करने और संस्कृत अनुभाग में एक अनुवादक और सचिवालय स्तर पर एक अनुवादक की नियुक्ति को भी इस कार्ययोजना में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 13 जून को आयोजित होने वाली उच्च स्तरीय बैठक में इस संबंध में फैसले लिए जाएंगे। विद्यालयों के आकस्मिक निरीक्षण और मूल्यांकन का कार्य निरंतर जारी रहना चाहिए साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्कूलों में पठन- पाठन का कार्य प्रभावित न हो(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.5.11)।

विद्यार्थियों को विरासत से जोड़ने की कवायद

Posted: 17 May 2011 11:05 AM PDT

खाने पीने की पसंद से लेकर पहनने ओड़ने तक विदेशी स्टाइल के मुरीद आज के युवाओं को अपनी सभ्यता से जोड़ने इसकी अहमियत से अवगत कराने के लिए सीबीएसई ने पहल की है। विद्यार्थियों को हेरिटेज क्विज प्रतियोगिता के जरिए विरासत से परिचित करवाया जाएगा। बोर्ड के निर्देशों पर स्कूलों ने इसे सफल बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है।

क्या होगा फायदा

लुधियाना के शैफाली इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर विशाल शर्मा कहते हैं कि यह प्रतियोगिता जहां विद्यार्थियों को उनकी संस्कृति से जोड़ेगी वहीं गणित और विज्ञान जैसे विषयों के साथ साथ इतिहास और सामाजिक शिक्षा सरीखे विषयों में रुचि भी पैदा करेगी।

अध्यापकों के लिए चुनौती

लुधियाना के दुगरी स्थित एमजीएम पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर गज्जन सिंह मानते है कि दिनों दिन बढ़ता मल्टीमीडिया का क्रेज युवा विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति से दूर ले जा रहा है। ऐसे में उन्हें इस तरह की गतिविधियों में भागीदार बनाना इतना आसान नहीं है। यह अध्यापकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा, लेकिन यदि एक बार विद्यार्थियों को इनकी ओर आकर्षित कर लिया जाए तो इसके नतीजे बेहद शानदार रहेंगे।

कैसी तैयारियां कर रहे हैं स्कूल


गज्जन सिंह बताते हैं कि स्कूलों में इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अध्यापकों के लिए विशेष प्रोग्राम शुरू किए जा रहे है। इसमें सेमिनार के अलावा इंट्रैक्शन सेक्शन आदि शामिल हैं। इस प्रोग्राम में अध्यापकों को विद्यार्थियों की तैयारी करवाने के साथ उन्हें क्रिएटिव तरीके से आकर्षित करने के गुर भी सिखाए जा रहे हैं।


क्या है हेरिटेज क्विज प्रतियोगिता

हेरिटेज क्विज प्रतियोगिता नौवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए होगी। इस प्रतियोगिता में विद्यार्थियों से भारतीय संस्कृति, परंपरा, ऐतिहासिक कहानियों से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। अगस्त माह में होने वाली इस प्रतियोगिता में हर स्कूल के तीन विद्यार्थी हिस्सा लेंगे। जो अपनी पूरी टीम को रिप्रजेंट करेंगे। मल्टीपल च्वाइस प्रश्नों पर आधारित इस प्रतियोगिता का पहला चरण लोकल लेवल पर होगा। इसके बाद विजेता विद्यार्थी सितंबर में होने वाले जोनल राउंड में हिस्सा लेंगे। प्री फाइनल राउंड को पार कर विद्यार्थी आखिरी चरण नेशनल लैवल में अपनी प्रतिभा को दर्शा सकेंगे(मनधीर गिल,दैनिक भास्कर,लुधियाना,17.5.11)।

हिमाचल यूनिवर्सिटीःपरीक्षा के बाद पहुंचे रोल नंबर, सैकड़ों छात्र चूके

Posted: 17 May 2011 11:00 AM PDT

एचपी यूनिवर्सिटी की लापरवाह कार्यप्रणाली के चलते सैकड़ों छात्र प्रवेश परीक्षा देने से वंचित रह गए हैं। सोमवार से शुरू हुए एंट्रेंस टेस्ट के लिए सभी छात्रों को समय पर रोलनंबर भेजने के दावे करने वाले प्रशासन की लापरवाही एक बार फिर जगजाहिर हो गई है।

रोल नंबर समय पर न मिलने से सैकड़ों छात्र सोमवार को आयोजित एमएमसी और मैथमेटिक्स की प्रवेश परीक्षा में नहीं बैठ पाए। वहीं, सैंकड़ों छात्र जो बिना रोलनंबर यूनिवर्सिटी पहुंचे उन्हें भी डुप्लीकेट रोलनंबर के लिए संबंधित विभागों के चक्कर काटने पड़े। कई छात्रों को रोलनंबर लेने के चक्कर में देरी से परीक्षा में बैठना पड़ा।


यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सोमवार सुबह 11 बजे से मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन विषय की प्रवेश परीक्षा आयोजित की थी। इस विषय के लिए करीब 450 छात्रों ने फॉर्म भरा था। इनमें से कुल 342 छात्रों ने ही परीक्षा दी। वहीं, परीक्षा देने वालों में कई छात्र ऐसे भी थे जिन्हें समय पर रोलनंबर ही नहीं मिले थे। लापरवाही छिपाने के लिए विभाग ने 50 से अधिक छात्रों को तो ऑन स्पॉट डुप्लीकेट रोलनंबर जारी कर परीक्षा में बिठा दिया। मैथमेटिक्स की परीक्षा में भी कई छात्र रोलनंबर न मिलने से परीक्षा में नहीं बैठ पाए।

वहीं, प्रशासन का दावा है कि सभी छात्रों को समय पर रोलनंबर भेजे गए। डीएस सीएल चंदन का कहना है कि सभी छात्रों को समय पर रोलनंबर भेजे गए हैं। जिन छात्रों को रोलनंबर नहीं मिले थे उन्हें डुप्लीकेट रोलनंबर देकर परीक्षा में बैठने का मौका दिया गया। मामले की जांच की जा रही है।

इसलिए हुई देरी

रोलनंबर समय पर न पहुंचने में विभागों की लापरवाही और लेटलतीफी रही। प्रवेश फॉर्म भरने की अंतिम तारीख बढ़ने से भी देरी हुई। विभाग ने छात्रों को फोन पर सूचित नहीं किया। प्रशासन ने चंद दिन पहले ही रोलनंबर भेजे थे(दैनिक भास्कर,शिमला,17.5.11)।

मंडीःआरटीआई से हुआ खुलासा,डिप्लोमा पूरा करने से पहले ही बना दिया था जेई

Posted: 17 May 2011 10:55 AM PDT

करीब चौबीस साल पहले मिलीभगत और धोखाधड़ी कर नगर पंचायत सरकाघाट में एक मैट्रिक पास व्यक्ति को जेई के पद पर तैनात कर दिया। चयन समिति ने आवेदक के प्रमाणपत्र देखे बिना ही उक्त व्यक्ति को नियुक्ति दे दी तो बाद में सरकार ने उसे नियमित कर दिया।

सूचना अधिकार कानून के तहत जुटाई जानकारी में इस गड़बड़झाले का पटाक्षेप हो गया है। सूचना के अनुसार नगर पंचायत ने 1987 में जेई विजय कुमार डोगरा को दैनिक भोगी के आधार पर जेई की नौकरी दी। नियुक्ति के बाद 31 अगस्त 1990 को प्रदेश तकनीकी शिक्षा बोर्ड सुंदरनगर से जेई का डिप्लोमा पास किया और सरकाघाट रोजगार कार्यालय में 8 जनवरी 1991 को नाम दर्ज करवाया था।


यह भी कम हैरतअंगेज नहीं कि नौकरी पर तैनाती के दौरान विजय कुमार डोगरा ने हल्फिया बयान देकर सुंदरनगर नगर पालिका में डेढ़ वर्ष तक काम करने का अनुभव और रोजगार कार्यालय में नाम दर्ज होने की बात कही, लेकिन नौकरी देते वक्त उसकी हर बात पर चयन समिति ने आंखें मूंद कर विश्वास कर लिया। प्रकरण का भंडाफोड़ करने वाले नगर परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष ने तमाम दस्तावेज जुटाकर इस प्रकरण की शिकायत प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से की है। 

कमेटी के तत्कालीन गैर सरकारी सदस्यों और लिपिक की मिलीभगत से फर्जी प्रस्ताव डाल कर सारे घोटाले को अंजाम दिया गया। कमेटी के अध्यक्ष एसडीएम ने एनएसी की बैठक के बाद डाले गए प्रस्तावों की 5 संख्या बाद कार्रवाई बंद कर दी थी, लेकिन फिर से प्रस्ताव नंबर 5 लिख कर 1991 में डोगरा को दैनिक वेतन भोगी के बजाय कनिष्ठ अभियंता के पद पर रख दिया गया। प्रस्ताव बंद होने के बाद एसडीएम ने अंग्रेजी में मोहर लगाई थी बाद में मोहर हिंदी में लगा दी गई और साइन भी जाली कर डाले। जेई का कहना है कि उसका चयन कमेटी ने किया है। उसने 1987 में डिप्लोमा किया था कुछ पेपर १९९0 में भी दिए थे(दैनिक भास्कर,सरकाघाट,17.5.11)।

उत्तराखंडःएनएसएस को समूह 'ग' की भर्ती में नहीं मिल रही तवज्जो

Posted: 17 May 2011 10:50 AM PDT

समूह 'ग' की भर्ती में राष्ट्रीय सेवायोजना (एनएसएस) को तवज्जो नहीं मिलेगी। कारण भर्ती परीक्षा की नियमावली में एनएसएस प्रमाणधारकों को वरीयता देने का उल्लेख नहीं किया गया है जिससे एनएसएस के प्रमाण पत्रधारक युवाओं को तगड़ा झटका लगा है। एनएसएस ने भर्ती परीक्षा में अपनी उपेक्षा पर रोष जताते हुए सीएम दरबार में दस्तक दी है। उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा परिषद द्वारा समूह 'ग' की भर्ती के लिए जारी नियमावली में प्रादेशिक सेना में न्यूनतम दो वर्ष सेवा करने वाले एवं राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के 'बी' प्रमाण पत्रधारक को वरीयता देने का उल्लेख किया है, लेकिन इसमें एनएसएस को जगह नहीं दी गई है। इसके चलते एनएसएस से जुड़े युवाओं को भर्ती में कोई लाभ नहीं मिलने वाला है, जबकि शासन द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार एनएसएस के 'सी' प्रमाणधारक को प्रथम नियुक्ति में वरीयता मिलनी चाहिए। इस संबंध में 23 सितम्बर 2005 में निर्देश जारी किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि दो जून-05 को तत्कालीन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित एनएसएस राज्य सलाहकार समिति की बैठक में 'सी' प्रमाण पत्रधारकों को वरीयता देने का निर्णय हुआ था। समिति द्वारा लिये गए निर्णय के अनुसार समूह ख, ग व घ की सेवाओं में अन्य बातें समान रहने एवं न्यूनतम अर्हता पूर्ण करने की दशा में एनएसएस के सी प्रमाण पत्रधारकों को वरीयता मिलनी थी। उक्त बैठक के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, वन, पर्यावरण, समाज कल्याण, ग्राम्य विकास, गृह समेत अन्य विभागों को सुसंगत सेवा नियमावली में आवश्यक संशोधन के लिए पत्र भी भेज दिया गया था। करीब पांच साल दो मार्च-10 को पुन: राज्य सलाहकार समिति की बैठक में भी मुद्दा उठा था जिसके बाद मुख्यमंत्री के तत्कालीन सलाहकार आरके सिंह ने कार्मिक विभाग को उक्त निर्णय का अनुपालन शीघ्र करने का निर्देश दिया था। इसके चलते एनएसएस प्रमाण पत्रधारकों में विभिन्न विभागों की नियुक्ति प्रक्रिया में वरीयता मिलने की उम्मीद जगी थी, लेकिन समूह 'ग' की भर्ती नियमावली ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। शासनस्तर से आदेश जारी होने के बाद भी वरीयता न मिलने से एनएसएस से जुड़े रहे युवाओं में भारी रोष व्याप्त है। एनएसएस के राज्य सम्पर्क अधिकारी एएस उनियाल ने भी भर्ती प्रक्रिया में उपेक्षा होने पर नाराजगी जतायी है। डा. उनियाल ने कहा कि एनएसएस जुड़े स्वयंसेवक अनेक सामाजिक कार्य करते हैं, लेकिन इसके बावजूद भर्ती प्रक्रिया वरीयता न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे आने वाले समय में छात्रों का एनएसएस के प्रति रुझान कम होगा। डा. उनियाल ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को एक पत्र भी भेजा है जिसमें एनएसएस द्वारा राज्य के विकास में किए जा रहे महत्वपूर्ण कायरे का उल्लेख करते हुए एनसीसी के समान एनएसएस स्वयंसेवियों को अधिमान दिये जाने की वकालत की है(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.5.11)।

आरयूएचएस की लेटलतीफीः45 दिन का काम 6 माह में

Posted: 17 May 2011 10:45 AM PDT

राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (आरयूएचएस) में बी.फार्मा. और डी.फार्मा. का पाठ्यक्रम पूरा करने में डेढ़ से दो साल ज्यादा लग रहे हैं। इसका खमियाजा इस पाठ्यक्रम से जुड़े राज्य के करीब दस हजार विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। इन दिनों जहां देशभर के विश्वविद्यालयों में मुख्य परीक्षाएं चल रही हैं, वहीं आरयूएचएस अब डी.फार्मा. के पिछले सत्र की पूरक परीक्षाएं करवा रहा है।


आरयूएचएस के कैलेंडर के हिसाब से इन पाठ्यक्रमों की मुख्य परीक्षा हर साल अप्रैल में शुरू हो जानी चाहिए। हर साल मुख्य परीक्षाएं चार से छह महीने देरी से आयोजित हो रही हैं। इनके परिणामों की घोषणा परीक्षा समाप्ति के 45 दिन में हो जानी चाहिए, जबकि परिणाम हर बार पांच से छह महीने देरी से घोषित किए जाते हैं। इसी तरह मुख्य परीक्षा परिणाम के डेढ़ महीने के भीतर पूरक परीक्षाएं होनी चाहिए। विश्वविद्यालय पूरक परीक्षाएं भी पांच से छह महीने देरी से आयोजित करवा रहा है। 

ऐसे में एक सत्र की परीक्षाएं पूरी कराने में आरयूएचएस दो साल लगा रहा है। एक परीक्षा देरी से करवाने की वजह से अगले सत्र की परीक्षाएं लेट हो रही हैं। विश्वविद्यालय ने इस मकड़जाल से निकलने के लिए बी.फार्मा. पूरक परीक्षाएं ही नहीं कराने का नियम बना डाला। अंतिम वर्ष की पूरक परीक्षाएं जनवरी में कराई गईं। इसी तरह डी. फार्मा. के पिछले सत्र की पूरक परीक्षाएं इन दिनों आयोजित की जा रही हैं(योगेश शर्मा,दैनिक भास्कर,जयपुर,17.5.11)।

एम्स : डीएम, एमडी, एमएस की ऑनलाइन परीक्षा रद्द

Posted: 17 May 2011 10:40 AM PDT

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) द्वारा आयोजित की गई अखिल भारतीय स्तर पर डीएम, एमडी, व एमएस की ऑनलाइन उच्चतम चिकित्सा परीक्षा रद्द कर दी गई है। यह परीक्षा रविवार व सोमवार को देश के विभिन्न केंद्रों पर आयोजित की गई थी। परीक्षा रद्द करने का कारण तैयार किए गए मॉडल सेट का लीक होना बताया गया है। एम्स के प्रवक्ता ने बताया कि मिल रही शिकायतों के आधार पर परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया गया है। हालांकि प्रशासन को अभी किसी प्रकार के सबूत नहीं मिले हैं। परीक्षा के पहले दिन यानी रविवार को कुछ परीक्षा केंद्रों के डॉक्टरों ने सामुहिक रूप से यह शिकायत की थी कि ऑनलाइन परीक्षा केंद्र के सर्वर डाउन हो गया था जिससे वे परीक्षा नहीं दे सके। उन्होंने साथ ही यह आशंका जताई थी कि परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न लीक हो गए थे। सोमवार दोपहर बाद एम्स(परीक्षा) की डीन डा. रानी कुमार व निदेशक डा. आरसी डेका की अध्यक्षता में विभिन्न विभागों की सहमति के बाद यह फैसला किया गया। परीक्षा के लिए फरीदाबाद स्थित मानव रचना संस्थान केंद्र को मुख्य केंद्र बनाया गया था। पेपर लीक होने की अफवाह शनिवार की देर सायं से ही प्रारंभ हो गई थी, लेकिन एम्स प्रशासन रविवार सायं तक ऐसे किसी भी प्रश्न का जबाव देने से बचता रहा। जब मंगलवार सुबह डॉक्टरों का एक समूह ने लिखित में एम्स निदेशक को इस बारे में जानकारी दी तो एम्स प्रशासन ने इसके बाद आपात बैठक बुलाई(राष्ट्रीय सहार,दिल्ली,17.5.11)।

डीयूःफर्जी प्रमाण पत्र वाले 85 छात्रों को राहत

Posted: 17 May 2011 10:30 AM PDT

डीयू ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर दाखिला लेने वाले छात्रों को राहत प्रदान की है। कॉलेजों को निर्देश जारी किए गए हैं कि जो छात्र असली प्रमाण पत्र दिखा दें, उनसे अंडरटेकिंग (वचन पत्र) लेकर परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी जाए। इन छात्रों के विरुद्ध दर्ज एफआइआर पर कार्रवाई को लेकर परीक्षा के बाद विचार किया जाएगा।
बता दें कि गत वर्ष एससी/एसटी कोटे से दाखिला लेने वाले 85 छात्रों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए हैं। इन छात्रों के घर जब विश्वविद्यालय की ओर से नोटिस भेजा गया तो छात्र असली प्रमाण पत्र बनवाकर ले आए। छात्रों का तर्क है कि दाखिले के समय डीयू प्रशासन ने उन्हें दो दिन का ही समय दिया था। इसलिए वे जिला कलेक्टर व तहसीलदार के कार्यालय से दलाल के माध्यम से प्रमाण पत्र ले आए थे। अब प्रमाण-पत्र असली है या नकली उन्हें क्या पता? विश्वविद्यालय ने जब इसका सत्यापन किया तो ही उन्हें पता चला। उसके बाद वह जिला कार्यालय पहुंचे और असली प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन किया। छात्रों को आवेदन के हफ्ते से 15 दिन बाद ही असली प्रमाण पत्र मिल गया। जिसे लेकर छात्र अब डीयू प्रशासन और कॉलेज अधिकारियों को सफाई देते घूम रहे हैं(दैनिक जागरण संवाददाता,दिल्ली,17.5.11)।

राजस्थानःफैशन उद्योग के छात्रों को मिलेगा इंटरनेशनल एक्सपोजर

Posted: 17 May 2011 10:20 AM PDT

इंटरनेशनल फैशन वर्ल्ड में अपनी खास जगह और पहचान बनाने के उद्देश्य से फैशन इंडस्ट्री के स्टूडेंट्स अब तक एक्सचेंज प्रोग्राम में नए क्रिएशन और प्रैक्टिकल एक्सपोजर लेते थे, लेकिन अब स्टूडेंट्स अपने बनाए डिजाइनर गारमेंट्स को विदेशी कॉलेजों में प्रेजेंट कर रहे हैं। इन स्टूडेंट्स को बढ़ावा देने के लिए कॉलेज भी अपने स्तर पर पूरे प्रयास कर रहे हैं। इसका उदाहरण है, हाल ही मलेशिया के स्टूडेंट्स ने यहां आकर कलेक्शन को फैशन शो के जरिए दर्शाया है। इतना ही वे शहर में कल्चर और गारमेंट्स की जानकारी भी ले रहे हैं। इसमें मलेशिया, नाबा और यूके, इटली, लंदन, स्वीडन, कोरिया और पेरिस के स्टूडेंट्स शामिल हैं।

एक्सचेंज होता है कल्चर
स्टूडेंट्स यहां सीखने के बाद विदेश में भी अपना डिजाइनर वेयर्स को फैशन शो के जरिए दर्शाते हैं। यह कहना है पर्ल एकेडमी के निदेशक अरिंदम दास का। वह बताते हैं कि हाल ही यहां मलेशिया से करीब 4 बच्चे और 3 फैकल्टी आए। यहां पर उन्होंने मलेशिया का कल्चर और डिजाइन फैशन शो के जरिए दर्शाया। इसके पीछे का उद्देश्य वहां के डिजाइंस वेयर्स को अपनाने के साथ यहां के मार्केट में अपनी जगह बनाने की है। यहां से भी 2 स्टूडेंट्स नाबा में 2 महीने प्रैक्टिकल वर्क पर गए हैं। इन बच्चों का सलेक्शन मेरिट बेस पर किया जाता है।

इंटरनेशनल एक्सपोजर में सहायक
जिन स्टूडेंट्स को बाहर जाने का मौका नहीं मिल पाता है उनके लिए इस तरह के कॉलेज लेवल के फैशन शो एक्सपोजर के लिए बेहतर विकल्प है। यह कहना है आर्च एकेडमी की निदेशिका अर्चना सुराणा का, वह बताती हैं कि इन फैशन शो के जरिए बच्चे एनालाइज कर पाते हैं कि विदेशी स्टूडेंट्स और यहां के स्टूडेंट्स की क्रिएटिविटी एक्टिविटी कलर्स, डिजाइन, कट्स आदि किस प्रकार से अलग है। साथ ही वे किस तरह से नए इनोवेशन कर सकते हैं। इतना ही नहीं स्टूडेंट्स आपस में दोनों टीम के कल्चर, क्लाइमेट, कलर्स, फेब्रिक, बिहेवियर आदि को समझने के बाद ड्रैस डिजाइन करते हैं।


फैशन इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट्स का मानना है कि इस तरह के फैशन शो और एक्सचेंज प्रोग्राम से एक्सपोजर मिलता है। टेक्निकल इश्यूज के बारे में जानने का अवसर मिलता है। । नेशनल के साथ इंटरनेशनल डिजाइंस को देखने और बनाने के अवसर प्रधान होते हैं। स्टूडेंट पीयूष का कहना है कि अब तब विदेशी स्टूडेंट्स ने सिर्फ बातों और किताबों में ही हमारे कल्चर और डिजाइंस के बारे में पढ़ा होगा, लेकिन अब फैशन शो के जरिए वे हमारी संस्कृति को परिधानों के माध्यम से मंच पर लाइव देख रहे हैं। वहीं अनुज सिंह का कहना है कि इस तरह के फैशन शो से स्टूडेंट्स में आत्मविश्वास बढ़ता है(दैनिक भास्कर,जयपुर,17.5.11)।

बिहारःस्कूल भी संभालेंगे मम्मी-डैडी

Posted: 17 May 2011 10:10 AM PDT

सरकार 70 हजार प्राथमिक विद्यालयों के प्रबंधन की जिम्मेदारी वहां पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता के हवाले कर रही है। इसके ढेर सारे फायदे हैं। मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के प्रावधान के तहत मानव संसाधन विकास विभाग ने इसकी नियमावली बना ली है मगर मामला राजभवन में फंस गया है। सरकार, प्राथमिक विद्यालय समिति विधेयक 2011 पर राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रही है। इसकी स्वीकृति के बाद शिक्षा समितियों का चुनाव होगा। अभी ये भंग हैं। नई व्यवस्था के मुताबिक प्रत्येक विद्यालय में एक प्रबंध समिति होगी। इसके 75 प्रतिशत सदस्य माता-पिता व अभिभावक द्वारा चुने जायेंगे। समिति में कुल 14 सदस्य होंगे। इनमें 12 बच्चों के माता-पिता व अभिभावक में से निर्वाचित होंगे। दो अन्य सदस्य पदेन होंगे। इनमें एक संबंधित विद्यालय के प्रधान शिक्षक अथवा प्रधानाध्यापक होंगे तथा दूसरे ग्राम पंचायत अथवा नगर निकाय के वार्ड के निर्वाची सदस्य होंगे, जहां विद्यालय है। नियमावली में निर्वाचक सूची की भी पूरी प्रक्रिया दर्ज है। किसी पद के लिए माता-पिता में से एक ही व्यक्ति अभ्यर्थी बन सकता है। 12 पदों में से 6 आरक्षित कोटि के होंगे। अनारक्षित कोटि के 6 पदों में से 3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे। आरक्षित कोटि के 6 पदों में एक-एक पद अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए तथा दो-दो पद अत्यंत पिछड़ा वर्ग व पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होंगे। अनुसूचित जाति का स्थान उसी ग्राम पंचायत एवं नगर निकाय में आरक्षित होगा, जहां की जनसंख्या का कमोबेश 5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति निवास कर रहे हों(अवनीन्द्र नाथ ठाकुर,दैनिक जागरण,पटना,17.5.11)

राजस्थानःमैरिट से आए अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग में नहीं माने जाएंगे

Posted: 17 May 2011 10:00 AM PDT

राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि आरक्षित वर्ग का कोई अभ्यर्थी यदि सामान्य वर्ग के बराबर अंक हासिल करके मैरिट में चयनित हुआ है तो उसे आरक्षित वर्ग में नहीं गिना जाए। भले ही उसने आरक्षित वर्ग के लाभ या रियायतें ली हों अथवा नहीं। यहां तक आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार होने के नाते उसे पदोन्नति ही क्यों न मिलने वाली हो। सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए हो रहे सर्वे के उद्देश्य से कार्मिक विभाग ने यह परिपत्र जारी किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत राज्य सरकार सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग के उचित प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए आंकड़े एकत्रित करवा रही है। सामान्य वर्ग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत पदोन्नति में आरक्षण खत्म हो चुका है। नौकरियों में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी निर्धारित कोटे से ज्यादा संख्या में है।जबकि आरक्षित वर्ग के लोग सरकारी नौकरियों में बैकलॉग बताकर जनसंख्या के अनुपात में नौकरियों में प्रतिनिधित्व और पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की मांग करते आ रहे हैं।

विधि विभाग की राय से जारी किया परिपत्र

कार्मिक विभाग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दृष्टिगत रखते हुए विधि विभाग की राय से ही यह परिपत्र जारी किया गया है।नौकरियों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व संबंधी आंकड़े एकत्रित करने के संबंध में कुछ विभागों ने यह स्पष्टीकरण चाहा था। 

उन विभागों का कहना था कि अगर आरक्षित वर्ग को कोई व्यक्ति उस वर्ग के लाभ (जैसे परीक्षा शुल्क, आयु आदि) लेते हुए सामान्य वर्ग में आ गया है। बाद में पदोन्नति में भी उसने आरक्षण का लाभ लिया है तो उसे सामान्य वर्ग में माना जाए अथवा आरक्षित वर्ग में। इस बारे में गहन विचार विमर्श के बाद कार्मिक विभाग ने विधि विभाग से राय ली और यह परिपत्र जारी किया है। पदोन्नति में आरक्षण के मामले को लेकर राज्य सरकार ने भटनागर समिति का गठन किया है। इसकी कुछ बैठकें भी हो चुकी है। इसमें दोनों पक्षों की ओर से अपनी बात रखी गई है। 

इस परिपत्र का असर क्या? 
परीक्षा में ज्यादा प्राप्तांकों के आधार पर मैरिट में चयनित होकर आए अधिकारी, कर्मचारियों को आरक्षित वर्ग में शामिल नहीं करने और पदोन्नति में आरक्षित वर्ग का लाभ दिए जाने से नौकरियों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व कम ही दिखेगा। आरक्षित वर्ग के लोग भी यही कह रहे हैं(दैनिक भास्कर,जयपुर,17.5.11)।

ICSE का रिजल्ट घोषित,लड़कियों ने मारी बाजी

Posted: 17 May 2011 09:50 AM PDT

काउंसिल फॉर द बोर्ड इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआईएससीई) 10वीं और (आईसीएसई) 12वीं (आईएससी) के नतीजे मंगलवार को घोषित हो गया है।छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों के लिए यह नतीजे इंटरनेट व एसएमएस के माध्यम से उपलब्ध रहेंगे।

सीआईएससीई के एडिशनल सेक्रेट्री गैरी अराथून के मुताबिक दसवीं के छात्रों को ICSE T के साथ अपना सात अंकों का इनडेक्स नंबर टाइप कर 56388, 54242, 56263, 51818, 58888, 5676750, 56677 व 5782728 नंबरों पर भेजना होगा। इसी तरह, 12वीं के छात्रों को परिणाम पाने के लिए ISC B के साथ इनडेक्स नंबर टाइप कर संदेश भेजना होगा। उदाहरण के तौर पर बारहवीं के छात्रों को ISC B8531009 लिखकर भेजना होगा।

गैरी अराथून ने बताया कि स्कूल प्रिंसिपलों को काउंसिल ने विशेष सुविधा प्रदान करते हुए प्रत्येक प्रिंसिपल को काउंसिल की ई-मेल आईडी प्रदान की है जिससे वे भी रिजल्ट प्राप्त कर सकते हैं।


स्कूलों में छात्रों को इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट (आईएससी-12वीं) और इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन (आईसीएसई-10वीं) का परिणाम उन्हें प्राचार्यो के माध्यम से भी प्राप्त हो सकेगा।

लाईवहिंदुस्तान डॉटकॉम की रिपोर्टः
काउंसिल आफ इंडियन स्कूल आफ सर्टिफिकेट एक्जामिनेशन (सीआईएससीई) के 10वीं एवं 12वीं बोर्ड की परीक्षा में लड़कियों ने लड़कों से मंगलवार को एक बार फिर बाजी मार ली। 10वीं कक्षा में लड़कियों का पास प्रतिशत लड़कों से 0.96 प्रतिशत बेहतर रहा जबकि 12वीं कक्षा में यह 2.10 प्रतिशत बेहतर रहा।

सीआईएससीई के अतिरिक्त सचिव गैरी अराथून ने कहा कि 10वीं और 12वीं बोर्ड दोनों में लड़कियां अव्वल रही। 10वीं कक्षा में लड़कियों का पास प्रतिशत 99.15 रहा जबकि 12वीं कक्षा में यह 98.40 प्रतिशत रहा। वहीं 10वीं कक्षा के लड़कों का पास प्रतिशत 98.19 और 12वीं कक्षा के लड़कों का पास प्रतिशत 96.30 रहा।
10वीं बोर्ड के छात्रों का पास प्रतिशत 98.61 प्रतिशत जबकि 12वीं कक्षा के छात्रों का पास प्रतिशत 97.24 रहा। 10वीं कक्षा के छात्रों का पास प्रतिशत पिछले वर्ष की तुलना में 0.30 प्रतिशत बेहतर रहा जबकि 12वीं कक्षा में छात्रों का पास प्रतिशत 0.13 प्रतिशत बेहतर रहा।

उन्होंने कहा कि 1638 स्कूलों से 10वीं कक्षा के कुल 122347 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए जबकि 764 स्कूलों से 12वीं कक्षा में 57487 विद्यार्थी परीक्षा में बैठे थे। 

नवभारत टाइम्स डॉटकॉम की रिपोर्टः
सीआईएससीई ( काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल ऑफ सटिर्फिकेट एग्जामिनेशन ) के 10 वीं और 12 वीं बोर्ड की परीक्षा में लड़कियों ने लड़कों से एक बार फिर बाजी मार ली। 10 वीं क्लास में लड़कियां का रिजल्ट लड़कों से 0.96 फीसदी बेहतर रहा जबकि 12 वीं क्लास में यह 2.10 फीसदी बेहतर रहा। 

सीआईएससीई के अतिरिक्त सचिव गैरी अराथून ने कहा , ' 10वीं और 12 वीं बोर्ड दोनों में लड़कियां अव्वल रही। 10 वीं कक्षा में लड़कियों का पास प्रतिशत 99.15 रहा जबकि 12 वीं कक्षा में यह 98.40 प्रतिशत रहा। वहीं 10 वीं कक्षा के लड़कों का पास प्रतिशत 98.19 और 12 वीं कक्षा के लड़कों का पास प्रतिशत 96.30 रहा। 

10 वीं बोर्ड के छात्रों का पास प्रतिशत 98.61 प्रतिशत जबकि 12 वीं कक्षा के छात्रों का पास प्रतिशत 97.24 रहा। 10 वीं कक्षा के छात्रों का पास प्रतिशत पिछले वर्ष की तुलना में 0.30 प्रतिशत बेहतर रहा जबकि 12 वीं कक्षा में छात्रों का पास प्रतिशत 0.13 प्रतिशत बेहतर रहा। 

उन्होंने कहा कि 1,638 स्कूलों से 10 वीं क्लास के कुल 1,22,347 स्टूडेंट्स परीक्षा में शामिल हुए जबकि 764 स्कूलों से 12 वीं कक्षा में 57,487 स्टूडेंट्स परीक्षा में बैठे थे।

राजस्थान विश्वविद्यालयःपीजी में सेमेस्टर के बावजूद 10 हज़ार पीरियड रह जाएंगे खाली

Posted: 17 May 2011 09:40 AM PDT

राजस्थान यूनिवर्सिटी के पीजी कोर्स में सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद भी 10 हजार पीरियड खाली चले जाएंगे। यूनिवर्सिटी प्रशासन खुद मान रहा है कि 339 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया 2012 की शुरुआत में ही पूरी हो पाएगी।



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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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