Monday, October 4, 2010

मैं अमेरिका में हिंदुत्‍व बचा रहा हूं, तुम इंडिया में बचाओ

मैं अमेरिका में हिंदुत्‍व बचा रहा हूं, तुम इंडिया में बचाओ

http://mohallalive.com/2010/10/04/kalishwar-das-worried-about-hindutva/

यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो!

3 October 2010 4 Comments

आज से दिल्‍ली में कॉमनवेल्‍थ गेम शुरू हो रहा है। अभी थोड़ी देर पहले शशिकांत से चैट पर कुछ बात हुई। उसमें से अपनी प्रतिक्रिया हटा कर मैं चैट सार्वजनिक कर रहा हूं। साथ ही बाबा नागार्जुन की भी एक कविता याद आ रही है – आओ रानी हम ढोएंगे पालकी। उसे भी पब्लिश कर रहा हूं : मॉडरेटर

ससे बड़ी विडंबना और बेशर्मी क्या होगी कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र ब्रिटेन के गुलाम रहे दुनिया के 54 देशों के खेल का बढ़-चढ़ कर आयोजन करे। 1930 में ब्रिटेन के गुलाम नौ देशों के साथ शुरू हुआ 'ब्रिटिश एंपायर गेम', 'ब्रिटिश एंपायर कॉमनवेल्थ गेम्स' से होता हुआ आज 'कॉमनवेल्थ गेम्स' बन गया है। गुलामी जिंदाबाद। ब्रिटेन के लगभग 200 साल तक गुलाम रहे 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र' भारत की राष्ट्रपति को आज उदघाटन समारोह में इसका उल्लेख करना चाहिए और ' कॉमनवेल्थ गेम्स' के आयोजन को खत्म करने या अगले गेम से भारत को इससे अलग करने की घोषणा करनी चाहिए।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पैदाइश के ठीक अगले दिन ब्रिटिश उपनिवेशवाद के गुलाम 54 देशों के कॉमनवेल्थ गेम्स का गांधी के ही देश के रहनुमाओं के द्वारा भव्यता से आयोजन करने पर हर सच्चे हिंदुस्तानियों को शर्म आ रही है। आज महात्मा गांधी होते तो वे नयी दिल्ली में इस गेम का कतई आयोजन नहीं होने देते।

ब्रिटेन के गुलाम रहे हिंदुस्तान की सरजमीन पर कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन स्वाधीनता आंदोलन में शहीद हुए हजारों स्वाधीनता सेनानियों का अपमान है। क्या आजादी के महज छह दशक बाद ही हम अपने स्वाधीनता सेनानियों को भूल रहे हैं?

कल यदि कोई ब्राह्मणवादी संस्‍था मनु (जिसने शूद्रों को वेद पढ़ने पर उनके कान में पिघला हुआ शीशा डालने की बात कही थी) के नाम पर जलसा का आयोजन करे, तो क्‍या हिंदुस्‍तान के करोड़ों शूद्रों और दलितों को उस जलसे में बढ़-चढ़ कर हिस्‍सा लेना चाहिए? क्‍या भारत सरकार ऐसे जलसे का आयोजन करेगी?

और अब बाबा की कविता…

आओ रानी हम ढोएंगे पालकी

आओ रानी हम ढोएंगे पालकी
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की

आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी !

आओ शाही बैंड बजाएं,
आओ वंदनवार सजाएं,
खुशियों में डूबे उतराएं,
आओ तुमको सैर कराएं

उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी !

तुम मुस्कान लुटाती आओ,
तुम वरदान लुटाती जाओ
आओ जी चांदी के पथ पर
आओ जी कंचन के रथ पर

नजर बिछी है, एक-एक दिक्पाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी !

सैनिक तुम्हें सलामी देंगे,
लोग-बाग बलि-बलि जाएंगे,
दृग-दृग में खुशियां छलकेंगी
ओसों में दूबें झलकेंगी

प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र की भाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी !

बेबस-बेसुध सूखे-रुखड़े,
हम ठहरे तिनकों के टुकड़े
टहनी हो तुम भारी भरकम डाल की
खोज खबर लो अपने भक्तों के खास महाल की !

लो कपूर की लपट
आरती लो सोने की थाल की
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी !

भूखी भारत माता के सूखे हाथों को चूम लो
प्रेसिडेंट के लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो
पद्म भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उदगार लो
पार्लमेंट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो

मिनिस्टरों से शेक हैंड लो, जनता से जयकार लो
दायें-बायें खड़े हजारी आफिसरों से प्यार लो
होठों को कंपित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो
बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो

यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो
एक बात कह दूं मलका, थोड़ी सी लाज उधार लो
बापू को मत छेड़ो, अपने पुरखों से उपहार लो

जय ब्रिटेन की, जय हो इस कलिकाल की !
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!

रफू करेंगे फटे-पुराने जाल की !
यही हुई है राय जवाहरलाल की !
आओ रानी हम ढोएंगे पालकी !

मैं अमेरिका में हिंदुत्‍व बचा रहा हूं, तुम इंडिया में बचाओ

4 October 2010 17 Comments

♦ कालीश्‍वर दास

कालीश्‍वर दास ने हमें फेसबुक के जरिये अपनी प्रति‍क्रिया भेजी है। वे मोहल्‍ला लाइव पर जारी अनुराग भोमिया की कविता से इतने आहत थे कि उनसे रहा नहीं गया। उन्‍हें दुख है कि हम हिंदुत्‍व और राम को समझ नहीं पा रहे। परदेस में इन दो चीजों को बचा पाने की जद्दोजहद करते कालीश्‍वर दास की प्रतिक्रिया हम मोहल्‍ला लाइव पर साझा कर रहे हैं, बिना किसी शुभेच्‍छा के : मॉडरेटर

पको देखने से ऐसा नहीं लगता कि ऐसी अशोधपरक कविता को सरेआम आप इस ख्याल से सार्वजनिक करेंगे कि लोगबाग सत्य समझें तो सच्ची बहुत दुःख होता है। कृपया झूठी आधुनिकता का जामा छोड़ो और सत्य से मिलो। www.PBS.org पर जाकर हिस्टरी ऑफ इंडिया की दो DVD देखो तो पता चले कि विदेश में आपके जैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को किस किस्म का बेवकूफ कहा जाता है। आपकी तरह वे भी सरेआम बता रहे हैं कि ऐसे मूर्ख हिंदुओं के कारण ही यदि भविष्य में हिंदुस्तान से हिंदुत्व जाता रहा तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हिंदुओं को हतोत्साहित करने से बेहतर है, इसके विरोधियों को समझाएं कि मंदिर का बनना ही एकमात्र स्थायी उपाय है। कुछ और जानें…

मेक्सिको की अपनी भाषा कौन सी है, वे नहीं जानते। मैंने अमरीका में भाग कर आये कई mexican लोगों से बातें की है, पर वे इस सवाल का जवाब नहीं जानते। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन सबों ने स्पेन के प्रभाव में पूरी तरह खुद को बिसूर जाने दिया। आधुनिकता की आंधी में उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति का ख्याल नहीं रहा और उनकी अपनी भाषा लुप्त हो गयी।

मेरे बच्चे मेरे साथ वर्षों से अमरीका में हैं पर उन्हें घर में इंग्लिश में बात करना मना है। मेरे पास इंडिया के तकरीबन सारे टीवी चैनल आते हैं और हम आज भी आम अमरीकियों की तरह घर से बाहर नहीं वरन घर में ही खाना खुद बना कर खाते हैं। सारे तो नहीं पर सभी मुख्य त्यौहार हम जरूर मनाते हैं। हमारे गोरे-काले अमरीकी पड़ोसियों की इच्छा रहती है कि हम उन्हें आमंत्रित करें। मैंने बारी-बारी से कइयों को बुलाया भी है और उनमें से अधिकतर लोगों ने इसे सीखने के तौर पर गंभीरता से लिया।

आज भी वे हिंदुत्व को गंभीरता से लेते हैं और पूछते हैं कि आपके अपने लोगों को समझ नहीं है क्या कि वे खुद का नाश करने पर लगे हैं। हमें इस बात पर चुप रहना पड़ता है पर कोई जोर दे तो बताना पड़ता है कि दरअसल इंडिया और हिंदुत्व में ऐसे निंदक लोगों को साथ रखने की भी हमारी पुरानी परंपरा रही है। ऐसे लोग जानते कम हैं पर बोलते ज्यादा हैं और खुद को समझदार साबित करने की कोई कसर नहीं छोड़ते।

यदि मंदिर आज नहीं बना तो सदियों तक हिंदु-मुसलमान एक-दूसरे को काटते रहेंगे। सो डर छोड़ो और सत्य का दामन थामो। एक नहीं दो नहीं, करोड़ों को मरने दो … कोई फर्क नहीं पड़ता मूढों के मरने से। राम क्या थे, आप तब जानोगे, जब संसार की एकमात्र जीवित प्राच्य सभ्यता मर जाएगी। कृपया ऐसा होने से यदि हो सके तो रोको।

(कालीश्‍वर दास। जैसा कि उनकी प्रतिक्रिया से पता चलता है, वे परम हिंदुत्‍ववादी हैं। पटना कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद वे यूनाइटेड स्‍टेट, जॉर्जिया के ईस्‍ट एटलांटा में ट्रेंड्ज क्‍लॉथिंग नाम की कंपनी में बिजनेस अनालिस्‍ट हैं। वे विवाहित हैं और उनके दो बच्‍चे हैं। उनसे kalishwar4@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)


[4 Oct 2010 | 17 Comments | ]
मैं अमेरिका में हिंदुत्‍व बचा रहा हूं, तुम इंडिया में बचाओ
पटना में भगत सिंह की स्‍मृति में कई रंग-नुक्‍कड़
[4 Oct 2010 | Read Comments | ]

अनीश अंकुर ♦ नाटक खत्‍म होने के बाद रंगकर्मियों और आम दर्शकों ने एक मार्च भी निकाला। करीब डेढ़ सौ लोग मार्च में शामिल हुए। नाटक देखने वाले दर्शकों के भी मार्च में शामिल होने से कलाकारों का उत्साह और अधिक बढ़ गया।

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कालीश्‍वर दास ♦ ऐसे मूर्ख हिंदुओं के कारण ही यदि भविष्य में हिंदुस्तान से हिंदुत्व जाता रहा तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हिंदुओं को हतोत्साहित करने से बेहतर है, इसके विरोधियों को मंदिर बनाने की प्रेरणा दें।
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मोहल्ला दिल्ली, विश्‍वविद्यालय »

[4 Oct 2010 | One Comment | ]
निफ्ट में ओबीसी कोटे की सीटें खालीं, पर दाखिला बंद

पशुपति शर्मा ♦ नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलाजी में आरक्षित कोटे की 9 सीटें खाली हैं लेकिन संस्थान के मैनेजमेंट ने मेरिट लिस्ट के छात्रों को ये सीटें ऑफर किये बगैर ही एडमिशन क्लोज कर दिया। हद तो ये है कि साल 2010 में निफ्ट प्रवेश प्रक्रिया का कार्यभार संभाल रहे निफ्ट के निदेशक धनंजय कुमार ये तर्क दे रहे हैं कि निफ्ट कोई डीयू नहीं कि यहां दूसरी और तीसरी लिस्ट निकाली जाए। निफ्ट में हम क्वालिटी से समझौता नहीं कर सकते। निफ्ट 2010 में बी डिजाइन कोर्स की ओबीसी की 7 सीटें, एससी-एसटी की एक सीट खाली है, लेकिन संस्थान ने दूसरी लिस्ट जारी करने से तौबा कर ली है। अदालतें कई बार ये साफ कर चुकी हैं कि आरक्षित कोटे की सीटें खाली न छोड़ी जाएं।

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[4 Oct 2010 | Comments Off | ]

नज़रिया, मोहल्ला दिल्ली »

[3 Oct 2010 | 4 Comments | ]
यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो!

डॉ शशिकांत ♦ इससे बड़ी विडंबना और बेशर्मी क्या होगी कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र ब्रिटेन के गुलाम रहे दुनिया के 54 देशों के खेल का बढ़-चढ़ कर आयोजन करे। 1930 में ब्रिटेन के गुलाम नौ देशों के साथ शुरू हुआ 'ब्रिटिश एंपायर गेम', 'ब्रिटिश एंपायर कॉमनवेल्थ गेम्स' से होता हुआ आज 'कॉमनवेल्थ गेम्स' बन गया है। गुलामी जिंदाबाद। ब्रिटेन के लगभग 200 साल तक गुलाम रहे 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र' भारत की राष्ट्रपति को आज उदघाटन समारोह में इसका उल्लेख करना चाहिए और ' कॉमनवेल्थ गेम्स' के आयोजन को खत्म करने या अगले गेम से भारत को इससे अलग करने की घोषणा करनी चाहिए।

नज़रिया »

[3 Oct 2010 | 27 Comments | ]
इंसाफ को दफनाने के लिए मस्जिद सबसे सही जगह थी

समर ♦ वो कहां जानते थे कि कोर्ट उनका आधा छूट गया काम पूरा करने वाली है। जानते भी कैसे? माननीय न्यायाधीशों के कोट के नीचे वाला हिंदू हृदय उनको कैसे दिखता। उनको कैसे पता चलता कि जिस रामलला का जन्मस्थान इतिहास भी नहीं जानता वो उसे एक फीट के दायरे तक लाके साबित कर देंगे। और साबित करने का आधार क्या होगा? ये कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था है, विश्वास है कि रामलला वहीं पैदा हुए थे। पर ये करोड़ों हिंदू हैं कौन? कहां रहते हैं? और कोर्ट को उनके यकीन का पता ऐसे साफ-साफ कैसे चल गया? कोर्ट ने कम से कम हमें तो नहीं बताया कि इन करोड़ों हिंदुओं ने उनको पोस्टकार्ड भेज के बताया था कि उनका ये यकीन है।

नज़रिया, मीडिया मंडी »

[2 Oct 2010 | 23 Comments | ]
रामभक्ति में डूबे सवर्ण हिंदू मीडिया का घिनौना चेहरा

जनतंत्र डेस्क ♦ बाबरी विध्वंस पर अदालत ने एक बेहद बेतुका फैसला सुना दिया है। ऐसा लग ही नहीं रहा कि इस फैसले से इंसाफ हुआ है, बल्कि यह लग रहा है कि अदालत यह तय करने में नाकाम साबित हुई है कि उस विवादित जमीन पर हक़ किसका है। यही वजह है कि आज यह आरोप लग रहे हैं कि फैसला न्यायिक नहीं राजनीतिक है। अगर उन आरोपों में जरा भी दम है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है। उधर मीडिया ने एक बार फिर इस मामले में दोगलई की है। मीडिया का सवर्ण हिंदुवादी चेहरा सामने आ गया है। साथ ही यह भी कि आज मीडिया कांग्रेस के आगे लोट गया है। कांग्रेस सरकार के विरुद्ध एक भी शब्द बोलने में ज्यादातर मीडिया संस्थानों के उच्च पदों पर बैठे लोगों की हालत ख़राब होने लगती है।

uncategorized, शब्‍द संगत, सिनेमा »

[2 Oct 2010 | 25 Comments | ]
मैंने राम को नहीं देखा

अविनाश ♦ यह कविता मुंबई में रहने वाले एक युवक की है। इस पर अनुराग कश्‍यप की नजर पड़ी और उन्‍होंने फेसबुक पर नारा लगाया, भोमियावाद जिंदाबाद। मैंने कविता पढ़ी और मुझे ठीक लगी। मैंने अनुराग को मैसेज किया मुझे इन सज्‍जन के बारे में बताएं। उन्‍होंने बताया कि होनहार लड़का है – सिनेमा हॉल में रहता है – और सपने देखता है। मैं इसी परिचय के साथ मोहल्‍ला पर उनकी कविता जारी कर रहा हूं। आज दो कविता हमारे हिस्‍से में आयी है और दोनों का स्रोत फेसबुक है। पहली स्‍वानंद की कविता और अब दूसरी अनुराग भोमिया की कविता। हिंदी की त‍थाकथित मुख्‍यधारा में शामिल होने को लेकर निरुत्‍साहित इस किस्‍म की कविताई हमारे समय में अपने मन की सबसे ईमानदार अभिव्‍यक्तियां हैं।

विश्‍वविद्यालय, शब्‍द संगत »

[2 Oct 2010 | 5 Comments | ]
वर्धा में साहित्यिक महाकुंभ, विमल-कमल सब पहुंचे

अभिषेक श्रीवास्‍तव ♦ विभूति नारायण राय के विवादास्‍पद साक्षात्‍कार का जख्‍म अब भी हरा है उन लेखकों-पत्रकारों की चेतना में, जिन्‍होंने दिल्‍ली से लेकर वर्धा तक राय और उनका साक्षात्‍कार छापने वाले नया ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया के खिलाफ पिछले दिनों अपनी आवाज उठायी थी। हिंदी जगत में जैसा कि हमेशा होता आया है, कि छोटे-छोटे सम्‍मान और व्‍याख्‍यान के बहाने विरोध के स्‍वरों को कोऑप्‍ट कर लिया जाता रहा है और जिसकी आशंका विवाद के दौरान भी जतायी ही जा रही थी, आज इसी की शुरुआत महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के परिसर में हो रही है। गौरतलब है कि यह वर्ष अज्ञेय, नागार्जुन, शमशेर व फैज अहमद फैज की जन्‍मशती का है। इस मौके पर एक साथ चारों रचनाकारों का मूल्‍यांकन करने के उद्देश्‍य से विश्‍वविद्यालय ने दो दिन का एक विमर्श आयोजित किया है, जिसमें हिंदी के कई स्‍वनामधन्‍य लेखक शिरकत कर रहे हैं।

पुस्‍तक मेला, मीडिया मंडी »

[2 Oct 2010 | 3 Comments | ]
मीडिया के अंडरवर्ल्‍ड पर दिलीप मंडल की नयी किताब

डेस्‍क ♦ पेड न्यूज वर्तमान मीडिया विमर्श का सबसे चर्चित विषय है। समाचार को लेकर जिस पवित्रता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी की शास्त्रीय कल्पना है, उसका विखंडन हम सब अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। मीडिया छवि बनाता और बिगाड़ता है। इस ताकत के बावजूद भारतीय मीडिया अपनी ही छवि का नाश होना नहीं रोक सका। देखते-देखते पत्रकार आदरणीय नहीं रहे। लोकतंत्र का चौथा खंभा आज धूल धूसरित गिरा पड़ा है। खबरें पहले भी बिकती थीं। सरकार और नेता से लेकर कंपनियां और फिल्में बनाने वाले खबरें खरीदते रहे हैं। बदलाव सिर्फ इतना है कि पहले खेल पर्दे के पीछे था। अब मीडिया अपना माल दुकान खोलकर और रेट कार्ड लगाकर बेच रहा है।

शब्‍द संगत, सिनेमा »

[2 Oct 2010 | 6 Comments | ]
मरा कबीर और मरा रे बुल्‍ला, यहां पे नंगा नाचे दल्‍ला

डेस्‍क ♦ स्‍वानंद किरकिरे हिंदी सिनेमा की फिलहाल सबसे लयबद्ध उपस्थिति हैं। कुमार गंधर्व की जमीन से आये स्‍वानंद को हम सब बावरा मन देखने चला एक सपना और रतिया ये अंधियारी रतिया की वजह से प्‍यार करते हैं। उनके हर सृजन को गौर से देखते हैं। यह गीत, जो हम मोहल्‍ला में पेश कर रहे हैं – उन्‍होंने किसी फिल्‍म के लिए नहीं लिखा। 30 सितंबर को जब अयोध्‍या का फैसला आना था, सुबह-सुबह उन्‍होंने इसे लिखा और फेसबुक पर जारी किया…
मैं निखट्टू, देश निठल्‍ला… दिन भर बेमतलब हो हल्‍ला
भिखमंगों के राम और अल्‍ला
व्‍योपारी का धरम है गल्‍ला

--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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